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खाने में छुपा आत्म-संवेदना का रहस्य: जब भगवद गीता की भोजन नीति मिलती है आधुनिक विज्ञान से

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डॉ. नीरज पंवार, असिस्टेंट प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ साइकोलॉजी, क्राइस्ट यूनिवर्सिटी, दिल्ली एनसीआर

नई दिल्ली

5 अगस्त 2025

डिजिटल युग में भोजन का अर्थ बदलता जा रहा है 

आज का समय अत्यधिक व्यस्तता और तकनीकी गति से भरा हुआ है। मोबाइल ऐप्स, फास्ट फूड, और इंस्टेंट स्नैक्स ने हमारे रसोईघर की जगह ले ली है। इस बदलाव के बीच हम यह भूल गए हैं कि भोजन सिर्फ शरीर को ऊर्जा देने का साधन नहीं, बल्कि आत्मा और चित्त को भी प्रभावित करने वाला अनुभव है। हमारे पूर्वजों ने भोजन को एक आध्यात्मिक कर्म माना, न कि केवल उपभोग की वस्तु। भगवद गीता इसी सच्चाई को पुनः हमारे सामने लाती है। यह सिर्फ एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक जीवनदर्शी है, जो हमें बताता है कि हम जैसा खाएंगे, वैसा ही सोचेंगे, और वैसा ही जीवन जिएंगे।

प्राचीन भोजन नीति और आधुनिक विज्ञान का संगम

गीता में भोजन को तीन भागों में बाँटा गया है: सात्विक, राजसिक और तामसिक। यह वर्गीकरण आज के पोषण विज्ञान से चौंकाने वाली समानता रखता है। आधुनिक अध्ययनों से यह प्रमाणित हो चुका है कि प्रोसेस्ड और फास्ट फूड न केवल हमारे शरीर को हानि पहुँचाते हैं, बल्कि मानसिक बीमारियों जैसे डिप्रेशन, बेचैनी और चिड़चिड़ापन को भी जन्म देते हैं। वहीं दूसरी ओर, सात्विक भोजन — जैसे फल, सब्ज़ियां, अनाज, दालें और मेवे — मानसिक स्पष्टता, ऊर्जा और संतुलन को बढ़ावा देते हैं। Deakin University की एक रिसर्च बताती है कि इस तरह के भोजन से डिप्रेशन के लक्षणों में 33% तक की कमी आ सकती है।

सात्विक भोजन: ऊर्जा, संतुलन और प्रसन्नता का मार्ग

गीता के अनुसार, सात्विक भोजन वह है जो जीवन को बढ़ाता है, रोगों से बचाता है, और मन को प्रसन्नता देता है। NIH की 2023 की स्टडी बताती है कि सात्विक तत्वों से भरपूर भोजन मस्तिष्क के स्वास्थ्य को सुधारता है, दिमाग की शक्ति बढ़ाता है और उम्र बढ़ने के साथ होने वाले मानसिक अवरोध को कम करता है। Silicon Valley के टेक उद्यमी भी अब इस तरह के ‘बायोहैकिंग’ आहार को अपना रहे हैं। इसका सीधा अर्थ है: सात्विक भोजन कोई पुरानी परंपरा नहीं, बल्कि आज की टेक्नोलॉजी से जुड़ी दुनिया के लिए भी उपयोगी है।

राजसिक भोजन: स्वाद के पीछे छुपा असंतुलन राजसिक भोजन तीखा, खट्टा, गरम, अधिक मसालेदार और अत्यधिक स्वादयुक्त होता है। गीता बताती है कि इस प्रकार का भोजन शरीर में बेचैनी, चिंता और लालच को जन्म देता है। McKinsey की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में फास्ट फूड इंडस्ट्री $800 अरब डॉलर से अधिक की हो चुकी थी — यह इस बात का प्रमाण है कि दुनिया किस तरह स्वाद की लत में डूबती जा रही है। इतना ही नहीं, The Lancet की रिपोर्ट कहती है कि जो किशोर और युवा राजसिक भोजन ज्यादा करते हैं, उनमें चिड़चिड़ापन और मानसिक विकार अधिक देखने को मिलते हैं।

तामसिक भोजन: शरीर और आत्मा का पतन गीता में कहा गया है कि बासी, सड़ा, दुर्गंधयुक्त, अत्यधिक शक्करयुक्त या बार-बार गरम किया हुआ भोजन तामसिक होता है। FAO के अनुसार, हर साल 60 करोड़ लोग खाद्य प्रदूषण की वजह से बीमार होते हैं। CDC का अध्ययन कहता है कि ऐसा भोजन मानसिक सुस्ती, निर्णय की कमी और आलस्य को जन्म देता है। गीता इस बारे में हज़ारों साल पहले ही चेतावनी दे चुकी थी — आज विज्ञान भी इसी निष्कर्ष पर पहुँच रहा है।

 यज्ञ, तप और दान: भोजन के माध्यम से धर्म का पालन

गीता के तीन मुख्य धर्मपथ — यज्ञ (संकल्प), तप (अनुशासन), और दान (सेवा) — हमारे भोजन में भी उतर सकते हैं। जब हम पर्यावरण और पशु कल्याण को ध्यान में रखकर भोजन चुनते हैं, तो वह यज्ञ होता है। जब हम खुद पर नियंत्रण रखकर संयमित, पौष्टिक और शुद्ध आहार लेते हैं, तो वह तप होता है। और जब हम किसी भूखे को भोजन कराते हैं या दूसरों को सही खाने की प्रेरणा देते हैं, तो वह दान बन जाता है। भोजन को इन तीनों रूपों में अपनाना केवल एक आध्यात्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारी भी है।

मीडिया और भोजन चेतना का निर्माण 

आज का मीडिया न सिर्फ यह दिखाता है कि लोग क्या खा रहे हैं, बल्कि यह भी तय करता है कि लोग क्या खाएँगे। OTT प्लेटफॉर्म पर आ रहे फूड डॉक्यूमेंट्री (जैसे The Game Changers) या FSSAI की ‘Eat Right India’ मुहिम इस चेतना को सही दिशा देने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं सोशल मीडिया पर जंक फूड की अत्यधिक मौजूदगी राजसिक और तामसिक प्रवृत्तियों को और बढ़ावा दे रही है। अब समय आ गया है कि मीडिया को इस दिशा में जागरूक भूमिका निभानी चाहिए — ताकि संतुलित और सात्विक आहार को समाज में एक नई प्रतिष्ठा मिले।

‘हम वही हैं जो हम खाते हैं’ 

भगवद गीता हमें यह सिखाती है कि भोजन केवल शरीर के लिए नहीं, आत्मा और चेतना के लिए भी महत्वपूर्ण है। जब हम भोजन को समझदारी, श्रद्धा और संतुलन के साथ ग्रहण करते हैं, तो वह स्वास्थ्य, सुख और संतोष का स्रोत बन जाता है। आज की दुनिया में, जब मानसिक तनाव, बीमारियाँ और असंतुलन बढ़ रहे हैं, तब यह प्राचीन ज्ञान हमारी सबसे बड़ी औषधि बन सकता है। सच्चाई यह है कि हमारे प्लेट में रखा भोजन हमारे विचारों, हमारे कर्मों और अंततः हमारे भाग्य का भी निर्धारण करता है।

 

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