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छत्तीसगढ़ में शिक्षा से सशक्तिकरण की “साय” गाथा

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रायपुर, छत्तीसगढ़ 

22 जुलाई 2025

छत्तीसगढ़ की धरती ज्ञान की परंपरा से कभी अछूती नहीं रही। यहाँ की लोककथाओं, परंपराओं और शिल्पकलाओं में शिक्षा जीवन का अभिन्न अंग रही है। लेकिन औपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में यह राज्य दशकों तक पीछे छूटता रहा — खासकर आदिवासी और दूरदराज़ के क्षेत्रों में स्कूलों की कमी, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की अनुपलब्धता और डिजिटल संसाधनों का अभाव इसे देश के औसत से नीचे बनाए रखता था। इस ऐतिहासिक अंतर को मिटाने का बीड़ा भाजपा शासन, विशेषकर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने उठाया — और आज छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था पुनर्रचना, पुनर्निर्माण और पुनर्परिभाषा के चरण में है।

भाजपा शासन की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि उसने शिक्षा को सिर्फ प्रमाणपत्र प्राप्त करने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि व्यक्तित्व विकास, कौशल निर्माण और आत्मनिर्भरता का आधार माना। “पढ़े छत्तीसगढ़, बढ़े छत्तीसगढ़” अभियान से लेकर “मुख्यमंत्री शिक्षा नवाचार योजना” तक, हर नीति का केंद्र छात्र रहा और हर योजना का उद्देश्य शिक्षार्थी का सशक्तिकरण।

स्कूल शिक्षा के स्तर पर भाजपा सरकार ने व्यापक सुधार किए — बस्तर से बलौदाबाजार तक नए स्कूल भवन, स्मार्ट क्लास की स्थापना, बालिकाओं के लिए अलग शौचालय, पाठ्यपुस्तकों की समय पर आपूर्ति, और शिक्षकों की नियमित भर्ती व प्रशिक्षण जैसी पहलें आज सरकारी स्कूलों को निजी विकल्पों की बराबरी पर ला रही हैं। विशेष रूप से “स्कूल चलें हम” अभियान, जिसमें स्वयं मुख्यमंत्री ने आदिवासी अंचलों में जाकर स्कूलों का दौरा किया, ने जन-जागरूकता और नामांकन दर दोनों में आशातीत वृद्धि की है।

छत्तीसगढ़ सरकार ने यह भी समझा कि केवल कक्षा में पढ़ाना पर्याप्त नहीं, छात्रों को डिजिटल युग के योग्य बनाना ज़रूरी है। इसी सोच के तहत “ई-क्लास प्रोजेक्ट, राज्य एजुकेशन पोर्टल, डिजिटल लाइब्रेरी, और ऑनलाइन मूल्यांकन प्रणाली” को सक्रिय किया गया। अब राज्य के दूरस्थ विद्यालयों में भी स्मार्ट बोर्ड, प्रोजेक्टर और इंटरनेट आधारित अध्ययन सामग्री उपलब्ध है — यह सब भाजपा शासन की डिजिटल समानता नीति का हिस्सा है।

उच्च शिक्षा में भी अभूतपूर्व क्रांति आई है। भाजपा शासन में नए विश्वविद्यालय, नए कॉलेज, तकनीकी संस्थान, और रिसर्च केंद्रों की स्थापना ने राज्य को शैक्षणिक हब के रूप में विकसित किया है। “अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय”, “बस्तर विश्वविद्यालय” और “गुरुघासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय” को बेहतर संसाधनों और अनुसंधान सहयोग से जोड़कर युवाओं को राज्य में ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो रही है।

सबसे उल्लेखनीय परिवर्तन कौशल विकास और व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में हुआ है। भाजपा शासन ने छत्तीसगढ़ को हुनर का गढ़ बनाने के लिए “मुख्यमंत्री कौशल विकास मिशन”, “ड्रोन प्रशिक्षण केंद्र”, “आईटीआई आधुनिकीकरण योजना”, और “रोज़गार मेलों” की शुरुआत की। अब युवा केवल नौकरी मांगने वाला नहीं, रोजगार देने वाला बन रहा है। यह बदलाव केवल डिग्री से नहीं, बल्कि उद्यमिता, नवाचार और हाथ के हुनर से संभव हुआ है।

बालिकाओं की शिक्षा को भाजपा शासन ने प्राथमिकता दी है। “सुकन्या शिक्षा योजना”, “साइकिल वितरण योजना”, “दूरी पर छात्रावास सुविधा”, और कन्या प्रवेशोत्सव ने लड़कियों को न केवल शिक्षा से जोड़ा, बल्कि पारिवारिक सोच में भी बदलाव लाया। अब गांव की बेटी केवल चौका-चूल्हा नहीं, कॉलेज, कंप्यूटर और करियर की भाषा बोल रही है।

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने हर मंच से यह संदेश दिया है कि “छत्तीसगढ़ का भविष्य केवल खनिज नहीं, ज्ञान है। शिक्षा ही राज्य की सबसे बड़ी पूंजी बनेगी।” यही कारण है कि आज शिक्षा को राजनीतिक नारा नहीं, बल्कि जननीति का मूल तत्व माना जा रहा है।

निष्कर्षतः, भाजपा शासन में छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था अब केवल किताबी नहीं, कौशल, करियर और कर्मशीलता से जुड़ी हुई है। यहाँ की कक्षाओं में अब केवल पाठ नहीं पढ़ाए जाते, संभावनाएँ तैयार की जाती हैं। यह बदलाव केवल आंकड़ों का नहीं, एक समूचे राज्य की सोच का बदलाव है — जो छत्तीसगढ़ को गर्व, गरिमा और ज्ञान के रास्ते पर ले जा रहा है।

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