चंडीगढ़/ नई दिल्ली 11 अक्टूबर 2025
शव के चार दिन — और ‘सिस्टम’ की चुप्पी का शवदाह!
चार दिन हो गए, हरियाणा के आईपीएस वाई पूरन कुमार का शव मॉर्चरी में पड़ा है — पर अंतिम संस्कार नहीं हुआ।
क्यों? क्योंकि उनकी पत्नी, सीनियर आईएएस अधिकारी अमनीत पी कुमार जानती हैं — जैसे ही चिता जलेगी, सच की आग बुझा दी जाएगी। वो डरी नहीं हैं — वो डट गई हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि यह मौत “आत्महत्या” नहीं, सिस्टम के हाथों की हत्या है। आईएएस अमनीत ने मांग की है कि जांच हाईकोर्ट के सीटिंग जज से कराई जाए। उन्होंने FIR में संशोधन और परिवार की सुरक्षा की भी मांग की है। क्योंकि हरियाणा की ब्यूरोक्रेसी में जातिवाद और गिरोहबाजी की बदबू इतनी गहरी है कि अगर न्याय की डोरी एक बार ढीली पड़ गई, तो सच हमेशा के लिए दफन हो जाएगा।
सत्ता के महलों में अपराधियों की दावत — न्याय के दरवाज़े बंद!
इन 15 चेहरों को पहचान लीजिए —
यही हैं हरियाणा की सत्ता के संरक्षक, कानून के व्यापारी और प्रशासन के अपराधी। मुख्य सचिव, डीजीपी, एडीजीपी, आईजी, एसपी — सब इस ‘सिस्टम सिंडिकेट’ के सदस्य हैं। इन सभी के खिलाफ आईपीएस वाई पूरन कुमार की खुदकुशी के लिए उकसाने और एससी-एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज है। क्या आपने कभी सुना कि किसी राज्य के मुख्य सचिव और डीजीपी पर ऐसी धाराएं लगी हों? और क्या आपने कभी देखा कि उनमें से कोई जेल गया हो? कभी नहीं! क्योंकि कानून इनके लिए नहीं लिखा गया — ये लोग ही कानून लिखते हैं, मिटाते हैं, और फिर खुद को निर्दोष घोषित करते हैं। हरियाणा में अब न्याय नहीं, जातीय गठजोड़ की राजनीति और प्रशासनिक तानाशाही का शासन है।
एक दलित आईएएस की चीख — दमन की दीवारों में गूंजती सिसकियां!
आईपीएस पूरन कुमार की विधवा, आईएएस अमनीत जब प्रेस कॉन्फ्रेंस करना चाहती थीं, तो उनके मकान को पुलिस ने घेर लिया!
क्या यही लोकतंत्र है? एक वरिष्ठ महिला अधिकारी, जो न्याय की मांग कर रही है, उसे सत्ता की पुलिस ने बंदी बना दिया। ये सिर्फ एक परिवार की लड़ाई नहीं — ये हर उस इंसान की लड़ाई है जो सिस्टम से इंसाफ चाहता है। जब सत्ता अपराधियों के साथ खड़ी हो जाए और पीड़ितों की आवाज़ दबा दी जाए — तो समझ लीजिए, कानून नहीं, सत्ता का डर देश पर राज कर रहा है।
हम चुप रहे, तो कल हमारी बारी होगी।
जांच या मज़ाक? आरोपी के अधीन ही बैठी है जांच समिति!
हरियाणा सरकार ने बड़ा तमाशा किया — 6 सदस्यीय SIT बना दी।
पर ध्यान दीजिए — इस SIT का मुखिया आईजी पुष्पेंद्र कुमार बनाया गया है, जबकि आरोपी हैं मुख्य सचिव और डीजीपी! यानि कि जांच करने वाला अफसर खुद उन्हीं के मातहत है जिन पर आरोप हैं! क्या ऐसी जांच में निष्पक्षता की उम्मीद की जा सकती है? सभी सदस्य आरोपी अधिकारियों से जूनियर हैं। यानी सिस्टम ने खुद ही गवाही लिख दी — “साबित नहीं हुआ, केस खत्म।”
आईएएस एसोसिएशन ने भी समर्थन दिया, मुलाकात की, पर सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। डीजीपी छुट्टी पर जाने को तैयार हैं, लेकिन शर्त रखते हैं कि उनकी जगह कोई स्थाई डीजीपी न लगाया जाए! क्या अब अपराधी अपनी पोस्टिंग की शर्तें भी तय करेंगे? हरियाणा अब लोकतंत्र नहीं, ब्यूरोक्रेटिक माफिया का अड्डा बन चुका है।
एक्शन या एक्सक्यूज़ — चार दिन बाद की लाज बचाने वाली लीपापोती!
चार दिन तक सरकार सोई रही। जब जनाक्रोश भड़का, तब जाकर रोहतक के एसपी नरेंद्र बिजारणिया को हटा दिया गया।
क्योंकि उनका नाम भी FIR में था। पर हटाना सज़ा नहीं होता — ये सिर्फ सिस्टम की रणनीति होती है ताकि जनता ठंडी पड़ जाए। जिन पर केस दर्ज है, वे सब अभी भी कुर्सी पर बैठे हैं। क्योंकि हरियाणा में न्याय की परिभाषा बदल गई है — जिसके पास कुर्सी है, वही निर्दोष है। इस केस में अगर दोषियों को सज़ा मिल जाए, तो ये चमत्कार होगा, क्योंकि यह लड़ाई सच की नहीं, सत्ता की सुरक्षा की है।
हरियाणा की नौकरशाही का काला सच — “गनमैन, शराब और माफिया का नेटवर्क”
जो आईपीएस पूरन कुमार आज नहीं रहे, उनके गनमैन खुद शराब माफिया से उगाही में जेल जा चुके हैं।
सीसीटीवी फुटेज और ऑडियो रिकॉर्डिंग तक मौजूद हैं,
लेकिन हरियाणा पुलिस अपने सिपाही तक को बचा लेती है। पूरा तंत्र अपने मुखिया को बचा रहा है! यह आत्महत्या नहीं, एक संगठित हत्या है — साजिश के साए में, सत्ता के आशीर्वाद से। हरियाणा की जनता अब पूछ रही है —
क्या इस प्रदेश का संविधान अब सिर्फ अफसरों और अपराधियों की जेब में रह गया है?
नतीजा क्या होगा? वही जो हर बार होता है — “कुछ नहीं।”
हरियाणा में न कानून की जीत होती है, न नैतिकता की।
यहां सत्ता दोषियों की ढाल है, और सच बोलने वाला अपराधी ठहराया जाता है। आईपीएस पूरन कुमार की मौत ने सिर्फ एक अधिकारी नहीं छीना —
उसने भारत की न्याय व्यवस्था पर सबसे बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। अगर इस केस में सज़ा नहीं हुई, तो याद रखिए — भारत के हर ईमानदार अफसर की लाश अगला सबूत होगी।