अगर कोई पूछे कि “क्या बॉलीवुड फिल्मों से बड़ी कहानियाँ इस देश में होती हैं?” — तो अमोल मजूमदार की ज़िंदगी उसका सबसे बड़ा जवाब है। यह कहानी शुरू होती है 1994 में, जहां एक 19 साल का युवा मुंबई की रणजी टीम के लिए मैदान में उतरता है। उसके अंदर कुछ अलग था — आत्मविश्वास, साहस, और एक अडिग जिद। और उसी जिद ने डेब्यू मैच में उसे 260 रन दिलाए। अख़बारों में सुर्खियाँ, कमेंट्री बॉक्स में चर्चा — “भारतीय क्रिकेट का अगला तेंदुलकर आ गया है।” उनका नाम रखा गया “New Tendulkar”। हर विशेषज्ञ ने कहा — यह लड़का भारतीय टीम के लिए तैयार है, बस कुछ ही दिन की बात है। लेकिन किस्मत के खेल भी अजीब होते हैं — वहाँ से शुरू हुआ इंतज़ार खत्म ही नहीं हुआ।
अमोल मजूमदार ने 21 साल तक भारतीय घरेलू क्रिकेट में राज किया। 11,167 रन, औसत करीब 50, 30 से अधिक शतक — आंकड़े इस बात का सबूत हैं कि वह भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे महान बल्लेबाज़ों में से एक थे। पर कड़वा सच यह रहा कि उन्हें नीली जर्सी पहनने का एक भी मौका नहीं मिला। जहां कई ऐसे खिलाड़ी भी भारतीय टीम का हिस्सा बने जिनके नाम आज लोगों को याद भी नहीं — शिव सुंदर दास, गगन खोडा जैसे नाम उनके सामने फीके थे — वहीं अमोल, जो हर स्तर पर काबिल थे, बस ड्रेसिंग रूम के बाहर खड़े रह गए। यह उस व्यवस्था की त्रासदी थी जिसमें कभी-कभी प्रतिभा से ज़्यादा किस्मत का सिक्का उछलकर गिरता है। वे देश के लिए खेलने का सपना आँखों में लिए खेले, हर सीज़न में प्रमाणीकरण दिया, लेकिन दरवाज़ा न खुला। क्रिकेटर अमोल मजूमदार थककर नहीं, टूटकर रिटायर हुए — पर हार स्वीकार नहीं की।
जुनून अभी ज़िंदा था — इस बार कोचिंग के रूप में। वे मैदान से हटे, पर खेल से नहीं। वर्षों तक युवा खिलाड़ियों का मार्गदर्शन करते हुए वे धीरे-धीरे एक बड़े मुकाम की तरफ बढ़ रहे थे। और फिर, अक्टूबर 2023, भारतीय महिला क्रिकेट टीम संघर्ष के दौर में थी — बार-बार कोशिश, बार-बार निराशा। तभी अमोल मजूमदार को टीम का मुख्य कोच बनाया गया। यह वही टीम थी जिसके पास प्रतिभा तो बहुत थी, लेकिन आत्मविश्वास में कमी और स्थिरता से दूरी। अमोल ने खिलाड़ियों के मन से डर निकाला और उनकी हथेलियों में विश्वास रख दिया। उन्होंने हर खिलाड़ी को यह समझाया कि टीम इंडिया सिर्फ नाम नहीं — यह एक जिम्मेदारी और गर्व है।
फिर वह आया, जो भारतीय क्रिकेट का स्वर्णिम अध्याय बन गया — भारत की बेटियों का पहला महिला विश्व कप ख़िताब। अमोल ने न केवल टीम को 8 साल बाद फाइनल में पहुँचाया, बल्कि दुनिया को हराकर भारत को पहली बार विश्व विजेता बनाया। वह दृश्य अद्भुत था — मैदान पर जश्न, खिलाड़ियों की आँखों में सपनों की चमक, और कोच अमोल मजूमदार के चेहरे पर संतुष्टि की मुस्कान, जो किसी भी अंतरराष्ट्रीय शतक से कहीं बड़ी जीत थी। यह उस आदमी की जीत थी जिसे कभी मौका नहीं मिला, पर जिसने मौका मिलने पर पूरी पीढ़ी को जीतना सिखा दिया।
अगर चक दे! इंडिया पार्ट-2 की स्क्रिप्ट लिखनी हो — तो किसी काल्पनिक कहानी की ज़रूरत नहीं। यह कहानी पहले से तैयार है: एक ऐसा खिलाड़ी जो अपने देश के लिए एक भी अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेल पाया, लेकिन अंत में वही अपने देश की बेटियों को दुनिया की चैंपियन बना गया।
अमोल मजूमदार ने साबित कर दिया — कभी-कभी गॉड नहीं, कहानी खुद स्क्रिप्ट बदलती है। जिन्हें टीम इंडिया में शामिल नहीं किया गया, आज वही टीम इंडिया को इतिहास दिला रहे हैं। अगर यह प्रेरणा नहीं तो फिर और क्या है?
 

 


