नई दिल्ली / स्टॉकहोम, 9 अक्टूबर 2025
यह कहानी सिर्फ एक वैज्ञानिक उपलब्धि की नहीं, बल्कि इंसान के अदम्य साहस, संघर्ष और उम्मीद की है। फिलिस्तीन में जन्मे और एक शरणार्थी परिवार में पले-बढ़े उमर यागी (Omar Yaghi) ने 2025 का नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize in Chemistry) जीतकर इतिहास रच दिया है। वे नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले फिलिस्तीनी वैज्ञानिक बन गए हैं। रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ़ साइंसेज़ ने उमर यागी को जापान के सुसुमु कितागावा और ऑस्ट्रेलिया के रिचर्ड रॉबसन के साथ रसायन विज्ञान का यह प्रतिष्ठित सम्मान उनके “आणविक वास्तुकला” (Molecular Architecture) के क्षेत्र में किए गए अभूतपूर्व कार्य के लिए प्रदान किया है।
यह खबर फिलिस्तीन के लिए आशा की एक किरण की तरह आई है, जहां दशकों से युद्ध, बेघरपन और अन्याय की छाया बनी हुई है। उमर यागी ने कहा कि वे “काफी लंबी यात्रा” के बाद अपने पेशे के शिखर पर पहुँचे हैं। उन्होंने कहा, “मेरे माता-पिता मुश्किल से पढ़-लिख पाते थे। लेकिन उन्होंने मुझे सिखाया कि शिक्षा सबसे बड़ा हथियार है। मैंने कभी हार नहीं मानी, चाहे हालात कितने भी कठिन रहे हों। यह पुरस्कार मेरे माता-पिता, मेरे देश और उन सभी शरणार्थियों के नाम है जो सपने देखने की हिम्मत रखते हैं।”
उमर यागी की यह यात्रा संघर्षों और उम्मीदों की एक अनोखी कहानी है। उन्होंने शरणार्थी कैंपों के अंधेरे से निकलकर विज्ञान की प्रयोगशालाओं तक का सफर तय किया। उनके शोध ने रसायन विज्ञान की दिशा ही बदल दी। वे मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क्स (Metal-Organic Frameworks – MOFs) के जनक माने जाते हैं — ऐसे क्रांतिकारी पदार्थ जो प्रदूषण को कम करने, स्वच्छ ऊर्जा को संग्रहित करने, और पर्यावरण की रक्षा में एक नया अध्याय खोलते हैं। उमर यागी का यह आविष्कार दुनिया को स्वच्छ हवा और स्वच्छ ऊर्जा देने के रास्ते खोल चुका है।
उन्होंने “मॉलिक्युलर आर्किटेक्चर” की एक नई अवधारणा दी — यानी परमाणुओं और अणुओं को इस तरह से जोड़ना कि उनसे नए ठोस पदार्थ बन सकें, जिनकी संरचना बेहद हल्की, लचीली और उपयोगी हो। इन पदार्थों में गैसों को सोखने और छोड़ने की क्षमता होती है, जिससे भविष्य में कार्बन डाइऑक्साइड कैप्चर, हाइड्रोजन स्टोरेज, और जल शुद्धिकरण जैसे कार्यों में क्रांति आने की उम्मीद है। आज दुनिया जिस “ग्रीन एनर्जी” और “क्लाइमेट टेक्नोलॉजी” की बात कर रही है, उसके केंद्र में उमर यागी का विज्ञान है।
यागी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि गरीबी और सीमाओं से ऊपर उठकर इंसान सिर्फ अपने काम और समर्पण से दुनिया को बदल सकता है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि ज्ञान की कोई सरहद नहीं होती। फिलिस्तीन, जो दशकों से युद्ध और राजनीतिक अस्थिरता का प्रतीक माना जाता रहा है, आज उमर यागी के माध्यम से शिक्षा, विज्ञान और प्रगति का नया चेहरा बन गया है। यागी ने अपनी सफलता का श्रेय अपने परिवार और अपने देश की उस पीढ़ी को दिया है जिसने कठिनाइयों में भी उम्मीद नहीं छोड़ी।
उन्होंने कहा, “विज्ञान का असली मकसद इंसान की तकलीफों को कम करना है। मैंने अपने जीवन में गरीबी, विस्थापन और डर देखा है। लेकिन मैंने हमेशा विश्वास रखा कि एक दिन शिक्षा इन सब पर जीत हासिल करेगी। आज का यह सम्मान सिर्फ मेरे लिए नहीं, बल्कि हर उस बच्चे के लिए है जो युद्ध क्षेत्र में भी किताबें थामे हुए है।”
उमर यागी के नाम दर्ज उपलब्धियों की सूची इतनी लंबी है कि वह अपने आप में किसी वैज्ञानिक युग की कहानी लगती है। उन्होंने 2007 में Newcomb Cleveland Prize से लेकर 2024 के Balzan Prize और Tang Prize, तथा 2025 के Von Hippel Award तक दुनिया के हर प्रमुख वैज्ञानिक पुरस्कार को अपने नाम किया है। उन्होंने 2015 में King Faisal International Prize और 2018 में Wolf Prize in Chemistry, ENI Award for Energy, और Albert Einstein World Award of Science जैसे सम्मान भी जीते। इन सभी के बाद अब 2025 का Nobel Prize in Chemistry उनकी उपलब्धियों का शिखर बन गया है।
उनके अनुसंधान का असर सिर्फ प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं है — यह आज पूरी दुनिया की पर्यावरण नीति, ऊर्जा रणनीति और औद्योगिक नवाचारों का हिस्सा बन चुका है। भारत से लेकर अमेरिका और जापान तक उनकी तकनीकें उपयोग में लाई जा रही हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने भी उनके शोध को “सस्टेनेबल डेवेलपमेंट के लिए मील का पत्थर” कहा है।
आज ग़ज़ा, रामल्ला और येरूशलम की गलियों में बच्चे उमर यागी की तस्वीरों के साथ “#ProudOfOmarYaghi” और “#PalestineInNobel” जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। फिलिस्तीनी सरकार ने इसे “विज्ञान में स्वतंत्रता की जीत” बताया है। मिस्र, जॉर्डन, लेबनान, और यहां तक कि इज़राइल के कई वैज्ञानिकों ने भी उमर यागी को बधाई दी है — इसे विज्ञान के माध्यम से शांति और सहयोग का एक नया प्रतीक माना जा रहा है।
उमर यागी की यह उपलब्धि पूरी मानवता को यह संदेश देती है कि असंभव कुछ नहीं होता। जब इंसान अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार और समर्पित रहता है, तो वह परिस्थितियों को नहीं, बल्कि इतिहास को बदल देता है। यह कहानी सिर्फ एक वैज्ञानिक की नहीं — बल्कि हर उस इंसान की है जिसने कभी सपनों से समझौता नहीं किया।