लेखक:
डॉ. जितेन्द्र भंडारी, एसोसिएट प्रोफेसर, अर्थशास्त्र, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज़, क्राइस्ट विश्वविद्यालय, दिल्ली-एनसीआर
डॉ. शिवानी चौधरी, एसोसिएट प्रोफेसर, अर्थशास्त्र, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज़, क्राइस्ट विश्वविद्यालय, दिल्ली-एनसीआर
नई दिल्ली
30 जुलाई 2025
भारत की व्यापार नीति: अमेरिका की अनिश्चितता के बीच वैश्विक व्यापार संबंधों का पुनर्संतुलन
जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी 5 देशों—घाना, त्रिनिदाद एवं टोबैगो, अर्जेंटीना, ब्राज़ील और नामीबिया—की उच्चस्तरीय यात्रा पूरी करते हैं, और ब्राज़ील में आयोजित 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेते हैं, ये कूटनीतिक प्रयास रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण हो जाते हैं। इन यात्राओं के पीछे केवल राजनयिक शिष्टाचार नहीं, बल्कि भारत की व्यापार नीति में एक गहरा पुनरुद्धारण छिपा है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की “टैरिफ राष्ट्रवाद” की वापसी और एकतरफा व्यापार कदमों की आशंका के बीच, भारत भी अमेरिका के साथ व्यापार संतुलन बनाने के लिए कड़ा मोलभाव कर रहा है और समान शर्तों वाला समझौता चाहता है। इन अनिश्चित समयों में भारत एक सक्रिय “व्यापार विविधीकरण रणनीति” अपना रहा है ताकि किसी एक बाज़ार या व्यापारिक ब्लॉक पर अत्यधिक निर्भरता से बचा जा सके।
अमेरिका की व्यापारिक अनिश्चितता: जोखिम और विवशता
साल 2024 में भारत और अमेरिका के बीच कुल वस्तु व्यापार लगभग $129.2 बिलियन था। भारत से अमेरिका को निर्यात $41.8 बिलियन रहा, जबकि भारत में अमेरिका से आयात $87.4 बिलियन तक पहुँचा। अमेरिका को भारत के साथ $45.7 बिलियन का व्यापार घाटा हुआ—जो 2023 की तुलना में 5.4% अधिक है। यह आंकड़ा अमेरिका के भीतर राजनीतिक विवाद का विषय बना हुआ है, खासकर ट्रंप की सत्ता में वापसी के बाद। याद दिला दें, 2019 में ट्रंप प्रशासन ने भारत की GSP (Generalized System of Preferences) स्थिति को समाप्त कर दिया था, जिससे लगभग $5.6 बिलियन के भारतीय निर्यात प्रभावित हुए थे। ट्रंप की यह नीति एक स्पष्ट संकेत है कि अमेरिका अब व्यापारिक समझौतों में पारस्परिक लाभ के बजाय एकतरफा लाभ को प्राथमिकता दे रहा है।
भारत की रणनीतिक व्यापार विविधता नीति
इन हालातों को देखते हुए भारत अब अपनी व्यापारिक रणनीति को “एकध्रुवीय निर्भरता” से हटाकर “बहुध्रुवीय सहयोग” की दिशा में मोड़ रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की हालिया यात्राएँ इस नीति का प्रमाण हैं, जिसमें भारत अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे नए उभरते क्षेत्रों की ओर बढ़ रहा है। ये देश न केवल संसाधन-समृद्ध हैं बल्कि उनके बाज़ार आयात-प्रधान हैं, जो भारत के लिए अवसर का द्वार खोलते हैं। भारत-यूएई CEPA (2022) के तहत व्यापार में 15% की वृद्धि हुई है। भारत-ऑस्ट्रेलिया ECTA (2022 के अंत में लागू) ने 96% भारतीय उत्पादों पर शुल्क समाप्त कर दिए हैं। भारत-यूरोपीय संघ व्यापार समझौता अंतिम चरण में है, जबकि ब्रिटेन के साथ समझौता हाल ही में संपन्न हुआ है।
ब्रिक्स और साउथ-साउथ व्यापार की नई धुरी
ब्रिक्स अब वैश्विक व्यापार में एक नया केंद्र बनता जा रहा है। 2023 में ब्रिक्स देशों के बीच आपसी व्यापार $422 बिलियन तक पहुँचा। नए सदस्य—सऊदी अरब, मिस्र, यूएई, इंडोनेशिया, इथियोपिया और ईरान—इसके कद को और बढ़ा रहे हैं। ब्रिक्स के साझेदार देशों में अब वियतनाम को भी शामिल कर लिया गया है, जिससे यह संख्या दस हो गई है। ब्रिक्स देश अब डॉलर-केंद्रित वैश्विक व्यापार ढांचे को चुनौती देने लगे हैं। स्थानीय मुद्राओं में व्यापार, वैकल्पिक भुगतान प्रणालियाँ (SWIFT के बजाय), और क्षेत्रीय वैल्यू चेन का विकास इस दिशा में कुछ अहम कदम हैं। हालांकि ट्रंप पहले ही ब्रिक्स देशों को चेतावनी दे चुके हैं कि यदि वे इन व्यवस्थाओं को अपनाते हैं तो अमेरिका अतिरिक्त शुल्क थोप सकता है।
रणनीतिक हेजिंग: पश्चिमी साझेदारों के साथ भी, नए बाज़ारों की तलाश भी
भारत अब “रणनीतिक हेजिंग” की नीति पर काम कर रहा है, जिसमें पारंपरिक पश्चिमी साझेदारों (जैसे अमेरिका और यूरोप) के साथ भी व्यापारिक संबंध बनाए रखते हुए, नए निर्यात-बाजारों और आयात-स्रोतों की तलाश जारी है। यह नीति भारत की विदेश व्यापार नीति 2023 के लक्ष्य के अनुरूप है, जिसमें 2030 तक $2 ट्रिलियन के वस्तु एवं सेवा निर्यात का संकल्प लिया गया है। इसका फोकस केवल कच्चे माल के बजाय मूल्य वर्धित और उच्च तकनीकी व्यापार पर है। प्रधानमंत्री की विदेश यात्राएं और BRICS मंच पर नेतृत्व इस बात की पुष्टि करते हैं कि भारत अब एक निष्क्रिय खिलाड़ी नहीं, बल्कि विश्व व्यापार व्यवस्था के पुनर्गठन का सक्रिय भागीदार बन रहा है।
भारत का आत्मविश्वासी वैश्विक व्यापार चेहरा
जब वैश्विक राजनीति और व्यापार में राष्ट्रवाद हावी हो रहा है और वैश्वीकरण संकट में है, भारत अपनी व्यापार नीति को नए सिद्धांतों पर पुनर्निर्मित कर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की हालिया कूटनीतिक सक्रियता न केवल सद्भावना का प्रदर्शन है, बल्कि यह एक स्पष्ट संदेश है—भारत अब जोखिम से घबराने वाला नहीं, बल्कि व्यापार संबंधों को अपने पक्ष में मोड़ने वाला राष्ट्र बन रहा है। चाहे अमेरिका के साथ नए व्यापार समझौतों की सख्त बातचीत हो, या BRICS और Global South के साथ मजबूत भागीदारी—भारत का लक्ष्य अब “न्यायसंगत, बहुध्रुवीय और नियम आधारित वैश्विक व्यापार प्रणाली” की दिशा में नेतृत्व करना है।