दिल्ली | रिपोर्ट: विशेष ब्यूरो 17 अक्टूबर 2025
यह एक चौंकाने वाला विरोधाभास है जो भारत के मौजूदा राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य को नग्न करता है: एक तरफ़ जहाँ देश की आम जनता हर रोज़ भीषण आर्थिक तंगी से गुज़र रही है, जहाँ किसान क़र्ज़ के बोझ तले दबकर आत्महत्या करने पर मजबूर हैं, और जहाँ लाखों मध्यमवर्गीय परिवार अपने जीवन की जमापूंजी या जेवर गिरवी रखकर किसी तरह घर का खर्च चला रहे हैं — वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रभावशाली सांसद निशिकांत दुबे और उनकी पत्नी अनामिका गौतम की संपत्ति अकल्पनीय गति से एक लक़्ज़री और लूट की मिसाल बन चुकी है। कांग्रेस प्रवक्ता और AICC सोशल मीडिया व डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की चेयरपर्सन सुप्रिया श्रीनेत ने आज दिल्ली में एक विस्फोटक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करते हुए इस पूरे घोटाले का भंडाफोड़ किया। सुप्रिया श्रीनेत ने तीखे शब्दों में कहा — “जब देश की जनता भूख, महंगाई और क़र्ज़ से मर रही है, तब निशिकांत दुबे की पत्नी की संपत्ति 2009 के 50 लाख रुपए से बढ़कर 2024 तक 32 करोड़ रुपए हो जाना सिर्फ़ शर्मनाक नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ नीति पर एक सीधा और खुला भ्रष्टाचार का सबूत है!” यह वृद्धि न केवल अनैतिक है, बल्कि यह सीधे तौर पर सत्ता में रहते हुए पद का दुरुपयोग करने की ओर इशारा करती है।
रहस्यमय कर्ज़ का खेल: ₹8.28 करोड़ का लोन, जहाँ न गिरवी है, न कोई ईमानदार देनदार
सुप्रिया श्रीनेत द्वारा किए गए खुलासे इस मामले को एक सामान्य संपत्ति वृद्धि से हटाकर एक गंभीर वित्तीय घोटाले की ओर ले जाते हैं। उन्होंने दस्तावेज़ी प्रमाणों के आधार पर बताया कि सांसद की पत्नी अनामिका गौतम ने चार अलग-अलग व्यक्तियों से कुल ₹8.28 करोड़ का भारी-भरकम लोन लिया है। इनमें अभिषेक झा से ₹1.20 करोड़, गुरिंदर सिक्का से ₹3.24 करोड़, जसविंदर कौर से ₹1.34 करोड़ और योगेश कुमार से ₹2.50 करोड़ शामिल हैं। इस पूरे लेन-देन में सबसे बड़ी और चौंकाने वाली विसंगति यह है कि इतनी बड़ी रकम के लोन के बदले में कुछ भी गिरवी नहीं रखा गया है! लोन की दुनिया में यह लगभग असंभव है, जब तक कि लेन-देन का उद्देश्य कुछ और न हो। लेकिन इस पूरे मामले में सबसे बड़ा धमाका तब हुआ जब लोन देने वाले व्यक्तियों में से एक, अभिषेक झा, ने सार्वजनिक बयान दिया कि उन्होंने निशिकांत दुबे की पत्नी को “कोई कर्ज़ दिया ही नहीं!” अब सवाल यह उठता है कि यदि लोन दिया ही नहीं गया, तो ₹8.28 करोड़ की यह विशाल रक़म कागज़ों पर कैसे दिखाई गई और यह पैसा वास्तव में आया कहाँ से? क्या यह सीधे तौर पर ब्लैक मनी को सफेद करने का एक संगठित हथकंडा है? या फिर चुनावी फंड या किसी गुप्त फंडिंग का घोटाला, जिसका पर्दाफाश होना ज़रूरी है?
15 साल में संपत्ति का विस्फोटक उछाल: 6000% से अधिक का इजाफा और अनसुलझे सवाल
निशिकांत दुबे और उनकी पत्नी की संपत्ति के आंकड़े पिछले पंद्रह सालों में जिस दर से बढ़े हैं, वह किसी भी अर्थशास्त्री के लिए अकल्पनीय है और किसी भी ईमानदार नागरिक के लिए अस्वीकार्य। 2009 में उनकी संपत्ति जहाँ मात्र 50 लाख रुपए थी, वह 2014 तक उछलकर 6.5 करोड़ रुपए हुई, 2019 में 13.06 करोड़ रुपए और 2024 के चुनाव आते-आते यह बढ़कर 31.32 करोड़ रुपए तक पहुँच गई। यानी, 2009 के बाद से यह वृद्धि 6000% से अधिक की है! 2009 में जिस परिवार की वार्षिक आय मात्र 15 लाख रुपए थी, उनकी पत्नी अनामिका गौतम की व्यक्तिगत वार्षिक आय 2013-14 के 4 लाख रुपए से बढ़कर 2017-18 तक ₹2.16 करोड़ हो गई — यह 54 गुना उछाल है।
कांग्रेस प्रवक्ता ने तीखा सवाल किया: “आखिर कौन-सा ऐसा पारदर्शी, नैतिक और लीगल कारोबार है जो मोदी राज में बिना किसी निवेश या सार्वजनिक प्रकटीकरण के इतनी तेज़ी से 6000% का इज़ाफ़ा कर सकता है?” यह संपत्ति वृद्धि किसी व्यापार की नहीं, बल्कि सत्ता की सीढ़ियाँ चढ़ने के दौरान भ्रष्टाचार की सीढ़ियाँ चढ़ने का स्पष्ट और निर्विवाद सबूत है।
लोकपाल का नोटिस, मगर मोदी सरकार की रहस्यमय चुप्पी — क्या गृहमंत्री का ‘वरद हस्त’ है?
इस मामले की गंभीरता को एक और तथ्य रेखांकित करता है: 24 मई 2025 को लोकपाल के समक्ष इस पूरे मामले की शिकायत विधिवत दर्ज कराई गई थी, जो भारत में भ्रष्टाचार निरोधक सबसे बड़ी संस्था है। 24 जुलाई 2025 को लोकपाल की बेंच ने स्वतः संज्ञान लेते हुए एक गंभीर आदेश पारित किया, जिसमें सांसद निशिकांत दुबे को इस पूरे मामले पर चार हफ़्तों के भीतर अपना विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा गया। लेकिन अब तीन महीने से अधिक का समय बीत चुका है — न तो निशिकांत दुबे की ओर से लोकपाल को कोई संतोषजनक जवाब दाखिल किया गया है, और न ही ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’ का दावा करने वाली मोदी सरकार की ओर से कोई बयान या कार्रवाई देखने को मिली है! सुप्रिया श्रीनेत ने सीधे सवाल पूछा: “आखिर लोकपाल जैसी संवैधानिक संस्था किसके दबाव में है?
क्या गृहमंत्री अमित शाह का ‘वरद हस्त’ और राजनीतिक संरक्षण निशिकांत दुबे पर है, जिसके कारण कानून की कार्यवाही ठप पड़ी है?” यह पूरा मामला दर्शाता है कि अगर यही शिकायत किसी विपक्षी सांसद के ख़िलाफ़ होती, तो प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), और आयकर विभाग (इनकम टैक्स) की टीमें अब तक उसके घर में डेरा डाल चुकी होतीं और ‘मीडिया ट्रायल’ शुरू हो चुका होता। मगर बीजेपी के ‘प्रिय सांसद’ के ख़िलाफ़ कानून और एजेंसियों की यह चुप्पी, सीधे सत्ता के गलियारों में पनप रहे भ्रष्टाचार की ओर इशारा करती है।
विपक्ष पर ‘ग़द्दार’ का आरोप लगाने वाले दुबे — अब खुद घोटाले के दलदल में धँसे!
यह विडंबना और नैतिक पतन की मिसाल है कि निशिकांत दुबे वही सांसद हैं, जो भारतीय संसद में बैठकर विपक्ष के नेताओं पर “ग़द्दार,” “देशद्रोही,” और “राष्ट्र-विरोधी” जैसे अपमानजनक शब्द फेंकते हैं और मोदी सरकार के लिए आक्रामक रूप से बचाव करते हैं। मगर आज, उन्हीं का अपना दामन करोड़ों के वित्तीय घोटाले और अनैतिक संपत्ति वृद्धि के कारण काला पड़ गया है।
मोदी और शाह जिनके ज़रिए विपक्ष पर राजनीतिक वार करवाते थे, वो आज खुद भ्रष्टाचार के दलदल में गर्दन तक धँसे हुए दिखाई दे रहे हैं। यह दोहरा मापदंड न केवल निंदनीय है, बल्कि यह लोकतंत्र और नैतिक शासन के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है। देश का हर ईमानदार नागरिक आज सवाल पूछ रहा है: “जो सांसद दूसरों को गद्दार कहते थे, जो हर मंच से ईमानदारी का पाठ पढ़ाते थे, अब वो अपनी पत्नी की इस 32 करोड़ की संपत्ति का हिसाब कब देंगे और अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी से कब भागना बंद करेंगे?” यह मामला सिर्फ़ एक सांसद का नहीं, बल्कि बीजेपी के अंदरूनी भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग की संस्कृति का पर्दाफाश है।