नई दिल्ली 8 अक्टूबर 2025
दुनिया आज उस ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ी है जहाँ पहली बार नवीनीकरणीय ऊर्जा स्रोतों ने कोयले को पछाड़कर वैश्विक बिजली उत्पादन में शीर्ष स्थान हासिल कर लिया है। यह कोई मामूली उपलब्धि नहीं, बल्कि मानव सभ्यता के ऊर्जा इतिहास का एक नया अध्याय है। 2025 की पहली छमाही में, वैश्विक स्तर पर सौर और पवन ऊर्जा से उत्पन्न बिजली ने कोयले से ज्यादा योगदान दिया। आँकड़े बताते हैं कि नवीनीकरणीय ऊर्जा ने लगभग 5,072 टेरावॉट-घंटे (TWh) बिजली दी, जबकि कोयले से 4,896 TWh। यह एक प्रतीकात्मक जीत है—एक संकेत कि भविष्य अब जीवाश्म ईंधनों पर नहीं, बल्कि प्रकृति की अनंत शक्तियों पर निर्भर है।
इस वैश्विक परिवर्तन के पीछे चीन, भारत, अमेरिका और यूरोप की भूमिका प्रमुख रही है। चीन ने पवन ऊर्जा संयंत्रों में दुनिया का सबसे बड़ा विस्तार किया है, जबकि भारत ने सौर ऊर्जा में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की है। अमेरिका और यूरोप ने पर्यावरणीय नीतियों के दबाव में अक्षय स्रोतों को तेजी से अपनाया, हालांकि प्राकृतिक अनिश्चितताओं—जैसे कम हवा चलना या बादल रहना—ने उत्पादन पर असर डाला। लेकिन इसके बावजूद, दुनिया ने यह साबित कर दिया कि अब ऊर्जा का भविष्य साफ़ (Clean), हरित (Green) और टिकाऊ (Sustainable) होगा।
ऊर्जा की माँग और जिम्मेदारी का विस्तार
विश्व स्तर पर ऊर्जा की माँग में 2025 की पहली छमाही में लगभग 2.6% की वृद्धि दर्ज की गई। वैश्विक स्तर पर इस बढ़ती मांग को अक्षय ऊर्जा ने ही पूरा किया—कोयला, गैस या तेल पर अतिरिक्त दबाव नहीं बढ़ा। सौर और पवन ऊर्जा ने अकेले लगभग 403 TWh की नई बिजली प्रदान की। इसने न केवल जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता को घटाया, बल्कि यह भी दर्शाया कि अक्षय ऊर्जा अब केवल “पूरक” स्रोत नहीं रही, बल्कि मुख्यधारा की शक्ति बन गई है।
हालांकि, इस क्रांति के बीच चुनौतियाँ भी हैं। अक्षय ऊर्जा की सबसे बड़ी कमजोरी उसकी प्राकृतिक निर्भरता है—जब सूरज नहीं निकलता या हवा नहीं चलती, तब उत्पादन गिर जाता है। इसलिए, ऊर्जा भंडारण तकनीक (Battery Storage), स्मार्ट ग्रिड सिस्टम, और बेहतर पारेषण नेटवर्क अनिवार्य बन गए हैं। अमेरिका और यूरोप ने इस दिशा में पर्याप्त निवेश किया है, लेकिन अफ्रीका और दक्षिण एशिया के देशों के लिए यह अभी लंबी यात्रा है।
भारत की कहानी: सूरज से सशक्त होता राष्ट्र
भारत इस वैश्विक ऊर्जा क्रांति में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। 2025 की पहली छमाही में भारत का नवीनीकरणीय बिजली उत्पादन 24.4% बढ़ा, जो पिछले तीन वर्षों में सबसे तेज़ वृद्धि है। इसी अवधि में, अक्षय स्रोतों की हिस्सेदारी 31% तक पहुँच गई, जबकि कोयला आधारित बिजली का हिस्सा 70% से नीचे चला गया—यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। सौर ऊर्जा ने भारत की हरित क्रांति का नेतृत्व किया है, जिसकी स्थापित क्षमता अब 123 गीगावॉट (GW) को पार कर चुकी है। भारत सरकार ने 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा है, और इसमें तेज़ी से प्रगति हो रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने “वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड” जैसी अवधारणा रखी, जो यह बताती है कि सौर ऊर्जा को वैश्विक स्तर पर साझा कर, पूरे विश्व को स्वच्छ ऊर्जा दी जा सकती है। इसी दिशा में, राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्य नवीनीकरणीय ऊर्जा के केंद्र बन गए हैं। राजस्थान में सूर्य की प्रचंड गर्मी अब विकास की ताकत बन चुकी है, और गुजरात के तटों पर पवन चक्कियाँ नई उम्मीदें जगा रही हैं।
विरोधाभास: कोयले की छाया अब भी लंबी
भारत की ऊर्जा तस्वीर में विरोधाभास हैं। कोयला अब भी बिजली उत्पादन का प्रमुख स्रोत है, जिसकी हिस्सेदारी 70% के आसपास है। कई राज्यों ने हाल के महीनों में 7 गीगावॉट नए कोयला आधारित संयंत्रों के लिए अनुबंध किए हैं, ताकि बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके। यह एक “डुअल एनर्जी स्ट्रक्चर” की स्थिति पैदा करता है—जहाँ एक ओर भारत स्वच्छ ऊर्जा के नए आयाम छू रहा है, वहीं दूसरी ओर वह कोयले से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पा रहा है।
इस विरोधाभास की एक बड़ी वजह ऊर्जा भंडारण की कमी है। अक्षय स्रोत तब तक पूर्ण समाधान नहीं बन सकते जब तक उनके उतार-चढ़ाव को संभालने के लिए मजबूत बैटरी सिस्टम न हो। भारत इस दिशा में धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहा है, लेकिन निवेश की कमी, नीति अस्थिरता और तकनीकी निर्भरता इसकी रफ्तार को सीमित करती है। इसी तरह, बिजली वितरण कंपनियों (DISCOMs) की अक्षमता, ट्रांसमिशन लॉस और बिजली चोरी जैसे मुद्दे भी बड़ी बाधाएँ हैं।
भारत के सामने चुनौती: विकास और पर्यावरण का संतुलन
भारत के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वह विकास और पर्यावरणीय दायित्वों में संतुलन बना पाएगा? एक तरफ 2070 तक नेट-जीरो (Net Zero) उत्सर्जन का लक्ष्य है, तो दूसरी तरफ आर्थिक वृद्धि की जरूरतें हैं। कोयला उद्योग में लाखों लोगों की आजीविका जुड़ी है, और अचानक बदलाव सामाजिक असंतुलन पैदा कर सकता है। इसलिए, भारत को “Just Transition” यानी न्यायसंगत परिवर्तन की राह अपनानी होगी—जहाँ पर्यावरण की रक्षा के साथ लोगों का रोजगार और जीवन भी सुरक्षित रहे।
इसके अलावा, भारत को स्मार्ट ग्रिड, हाइड्रोजन फ्यूल, और बायो-एनर्जी जैसी तकनीकों में भी तेजी से निवेश बढ़ाना होगा। ऊर्जा सुरक्षा, स्वदेशी तकनीक और नीति स्थिरता—ये तीन स्तंभ भारत की हरित यात्रा को स्थायी बना सकते हैं।
वैश्विक संदर्भ में भारत: आशा का सूर्य
आज जब पूरी दुनिया जलवायु संकट और प्रदूषण से जूझ रही है, भारत एक आशा के प्रतीक के रूप में उभर रहा है। यह वह देश है जो न केवल विकास की रफ्तार बनाए रखना चाहता है, बल्कि पर्यावरणीय जिम्मेदारी भी निभाना चाहता है। भारत की ऊर्जा नीति “सस्टेनेबल डेवेलपमेंट” की दिशा में है—जहाँ गाँव-गाँव में बिजली पहुँचना, हर घर में सौर पैनल लगना, और शहरों में इलेक्ट्रिक वाहनों की चार्जिंग स्टेशनों का विस्तार होना, यह सब एक नए भारत की कहानी लिख रहे हैं।
रोशनी की राह पर बढ़ता मानव समाज
मानवता अब उस राह पर है जहाँ सूरज और हवा उसकी सबसे बड़ी ऊर्जा बन चुके हैं। कोयले का युग धीरे-धीरे ढलान पर है और नवीनीकरणीय ऊर्जा का युग उदय पर।
यह परिवर्तन सिर्फ तकनीकी नहीं बल्कि सभ्यता के स्तर पर नैतिक परिवर्तन भी है—जहाँ प्रकृति के साथ संघर्ष नहीं, बल्कि सहअस्तित्व की भावना केंद्र में है। भारत के लिए यह एक अवसर भी है और जिम्मेदारी भी। यदि वह इस दिशा में बुद्धिमत्ता, नीति स्थिरता और सामाजिक संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ता रहा, तो आने वाला दशक न केवल हरित भारत का बल्कि हरित विश्व का दशक कहलाएगा।