नई दिल्ली 21 सितंबर 2025
भारत, अपने 77 वर्षों के सफर में कई विरोधाभासों का गवाह रहा है। एक तरफ, हम चंद्रयान-3 की सफलता, G20 की मेजबानी और डिजिटल इंडिया के नारे लगाते हैं, जो देश को एक वैश्विक शक्ति के रूप में प्रस्तुत करते हैं। दूसरी तरफ, करोड़ों लोग गरीबी, भूख और बेरोजगारी की दलदल में फंसे हुए हैं। यह विरोधाभास सिर्फ सरकारी आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हर उस घर की कहानी है जहां गैस सिलेंडर, किराने का बिल और बच्चों की फीस एक बड़ा बोझ बन गई है। ऑक्सफैम (Oxfam) की 2023 की रिपोर्ट बताती है कि देश के शीर्ष 1% अमीरों के पास 40% से अधिक राष्ट्रीय संपत्ति है, जबकि निचली 50% आबादी सिर्फ 3% संपत्ति पर गुजारा कर रही है। यह असमानता एक ऐसी खाई बना रही है जो हमारे समाज और अर्थव्यवस्था को कमजोर कर रही है।
अमीरों का बढ़ता कुनबा और उनकी दुनिया
जहां एक तरफ आम आदमी महंगाई और बेरोजगारी से जूझ रहा है, वहीं दूसरी तरफ भारत में अमीरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। मर्सिडीज-बेंज हुरुन इंडिया वेल्थ रिपोर्ट 2025 के अनुसार, भारत में करोड़पति परिवारों की संख्या 2021 से लगभग दोगुनी होकर 8,71,700 हो गई है। इसका मतलब है कि भारत के 0.31% परिवार ऐसे हैं जिनकी कुल संपत्ति 8.5 करोड़ रुपये या उससे ज्यादा है।
ये करोड़पति परिवार मुख्य रूप से मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरु जैसे शहरों में रहते हैं, लेकिन हैदराबाद, पुणे, अहमदाबाद और चेन्नई भी इस लिस्ट में तेजी से उभर रहे हैं। महाराष्ट्र इस मामले में सबसे आगे है, जहां 1,78,600 करोड़पति परिवार हैं। इसके बाद दिल्ली (79,800) और तमिलनाडु (72,600) आते हैं। यह रिपोर्ट बताती है कि भारत की अर्थव्यवस्था में बढ़ता शेयर बाजार और स्टार्टअप कल्चर इस नई अमीरी का मुख्य कारण है।
महंगाई का कहर और अमीरों का खर्चा
पिछले एक दशक में महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है। 2014 से अब तक, जरूरी चीजों की कीमतें आसमान छू गई हैं। गैस सिलेंडर 430 रुपये से 1200 रुपये से ऊपर हो गया है, और पेट्रोल 70 रुपये से 100 रुपये के पार चला गया है। दाल और तेल जैसी रोजमर्रा की चीजें भी आम आदमी की पहुंच से दूर हो गई हैं। सरकार पर आरोप लगता है कि उसने पेट्रोल और डीजल पर सेस लगाकर 40 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा वसूले, लेकिन इस पैसे का इस्तेमाल गरीबों की भलाई के लिए नहीं किया गया।
दूसरी तरफ, अमीरों के खर्च करने के तरीके बिल्कुल अलग हैं। मर्सिडीज-बेंज हुरुन इंडिया लक्जरी कंज्यूमर सर्वे 2025 के अनुसार, अमीर लोग महंगी लग्जरी गाड़ियां, रियल एस्टेट (फार्महाउस और विला), विदेश यात्रा और महंगे ब्रांड्स पर खूब पैसा खर्च करते हैं। उनके पसंदीदा ब्रांड्स में मर्सिडीज-बेंज, रोलेक्स (घड़ी), तनिष्क (गहने) और गुच्ची शामिल हैं। वे अपनी खुशी को 10 में से 8 से ज्यादा रेटिंग देते हैं और उनका पसंदीदा शौक घूमना, पढ़ना और योग है। यह विरोधाभास दिखाता है कि देश में एक तबका ऐसा है जो समृद्धि और खुशी की चोटी पर है, जबकि एक बड़ा तबका बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहा है।
लोकतंत्र पर बढ़ता खतरा: जुमले और वास्तविकता के बीच का अंतर
आर्थिक असमानता हमारे लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा है। जब धन और अवसर केवल कुछ लोगों के पास होते हैं, तो जनता की आवाज और उनकी जरूरतें हाशिए पर चली जाती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, हर साल हजारों लोग आर्थिक तंगी और बेरोजगारी के कारण आत्महत्या करते हैं। यह आंकड़े सिर्फ संख्या नहीं, बल्कि एक गहरी सामाजिक पीड़ा को दर्शाते हैं। एक तरफ जहां युवा iPhone खरीदने के लिए लाइन में लगे हैं, वहीं दूसरी ओर लाखों लोग सरकारी राशन की दुकानों पर अपनी भूख मिटाने के लिए इंतजार कर रहे हैं। यह स्थिति बताती है कि हमारा समाज दो हिस्सों में बंट रहा है। एक तरफ वो लोग जो अमीरी और सुख-सुविधा में जी रहे हैं, और दूसरी तरफ वो लोग जो जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
एक चेतावनी और बदलाव की जरूरत
भारत को अगर सही मायने में एक विकसित और मजबूत राष्ट्र बनना है, तो उसे इस आर्थिक असमानता को खत्म करना होगा। सिर्फ सड़कों, पुलों और ऊंची इमारतों के विकास से काम नहीं चलेगा, जब तक कि उसका फायदा समाज के हर वर्ग तक न पहुंचे। आर्थिक असमानता, बेरोजगारी और महंगाई की समस्या को नजरअंदाज करना न केवल आर्थिक संकट को बढ़ाएगा, बल्कि हमारे सामाजिक सौहार्द और लोकतंत्र को भी कमजोर करेगा। यह केवल एक आर्थिक मुद्दा नहीं है, बल्कि हमारे भविष्य की दिशा पर एक गंभीर चेतावनी है।