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कनाडा का काला चेहरा: सपनों की नहीं, अब डर की धरती बनी विदेश

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ओटावा 20 अक्टूबर 2025

सपनों की धरती अब डर और अनिश्चितता की प्रतीक

कभी अपने बेहतर भविष्य, उज्जवल करियर और सुरक्षित जीवन के सपनों को लेकर कनाडा पहुँचे हज़ारों भारतीयों के लिए अब वही ‘सपनों की धरती’ गहरे डर और अनिश्चितता की प्रतीक बन गई है। जिस भूमि पर कभी प्रचुर अवसरों और सम्मान की रोशनी थी, वहाँ अब बेबसी और निराशा का अंधेरा तेज़ी से गहराने लगा है। पिछले छह वर्षों से जबरन निकासी (Deportation) की घटनाओं में हो रही अनवरत वृद्धि इस बात का स्पष्ट और दर्दनाक प्रमाण है कि कनाडा में प्रवासी भारतीयों की स्थिति कितनी गंभीर और चुनौतीपूर्ण हो गई है। कई भारतीय नागरिक, जो अपनी मेहनत और ईमानदारी से कनाडाई समाज में योगदान दे रहे थे, वे अब एक ऐसी प्रशासनिक और कानूनी दुविधा में फँस गए हैं, जहाँ उनके वर्षों का संघर्ष और जमा-पूंजी एक झटके में शून्य में बदल सकती है, जिससे उनका कनाडा में रहने का पूरा सपना ही खतरे में पड़ गया है।

Deport की दर ने तोड़े पिछले सभी रिकॉर्ड

कनाडा बॉर्डर सर्विस एजेंसी (CBSA) के आधिकारिक और अत्यंत चौंकाने वाले आंकड़े इस मानवीय संकट की गंभीरता को स्पष्ट रूप से उजागर करते हैं। 

  1. वर्ष 2019 में, जब निष्कासन की दर अपेक्षाकृत कम थी, तब भी लगभग 625 भारतीयों को कनाडा से वापस भेजा गया था। 
  1. यह संख्या उसके बाद के वर्षों में लगातार बढ़ती चली गई, और 2023 में यह आँकड़ा लगभग तीन गुना होकर 1,888 तक पहुँच गया। 
  1. लेकिन 2024 में तो स्थिति ने रिकॉर्ड तोड़ दिए, जब 1,997 भारतीयों को जबरन देश से बाहर भेजा गया, जो पिछले सभी वर्षों से अधिक था।
  1. चिंताजनक बात यह है कि 2025 में सिर्फ जुलाई महीने तक ही 1,891 भारतीयों की निकासी दर्ज की जा चुकी है, जो स्पष्ट संकेत है कि पूरे वर्ष का आँकड़ा पिछले सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर सकता है। 
  1. ये आंकड़े किसी सामान्य सरकारी रिपोर्ट का हिस्सा नहीं हैं, यह दर्शाते हैं कि कनाडाई प्रवासन नीति किस कदर कठोर होती जा रही है और भारतीय नागरिक, जो सबसे बड़े प्रवासी समूह में से एक हैं, किस प्रकार इस सख़्त कार्रवाई का सबसे बड़ा शिकार बन रहे हैं।

कठोर इमिग्रेशन पॉलिसी: मामूली त्रुटियों पर ‘गंभीर उल्लंघन’ की मुहर

कनाडा सरकार ने हाल के वर्षों में अपनी इमिग्रेशन पॉलिसी (आप्रवासन नीति) को जानबूझकर और रणनीतिक रूप से काफी सख्त बना दिया है। पहले जिन मामलों में मामूली चूक या प्रशासनिक गलती मानकर जुर्माना लगाया जाता था, अब उन्हें ‘अवैध ठहराव’, ‘एक्सपायर वर्क परमिट’ या ‘स्टूडेंट वीज़ा’ की मामूली त्रुटियों के रूप में देखकर गंभीर उल्लंघन माना जा रहा है। CBSA के निर्देशों के तहत, किसी भी विदेशी नागरिक को, जिसके पास किसी भी कारण से “कानूनी स्थिति” (Legal Status) नहीं है, उसे तुरंत देश से बाहर भेजने का अधिकार है। इस सख्त, शून्य-सहिष्णुता वाली नीति का सीधा और सबसे कठोर असर उन हज़ारों भारतीयों पर पड़ा है, जो या तो वर्क परमिट के नवीनीकरण की लंबी और उलझी हुई प्रक्रिया में फँसे हुए हैं, या जिन्होंने जटिल कागज़ी प्रक्रियाओं में अनजाने में कोई छोटी सी चूक कर दी है। इन त्रुटियों को अब एक आपराधिक कृत्य के समान मानकर उनके भविष्य को अंधकार में धकेला जा रहा है।

 छात्रों और अस्थायी कामगारों की सबसे बड़ी मुश्किलें: प्रशासनिक जाल में फंसे सपने

कनाडा में भारतीय समुदाय का एक बड़ा हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय छात्रों और अस्थायी कामगारों (Temporary Foreign Workers) का है। इन दोनों समूहों के लिए वीज़ा और परमिट नवीनीकरण की प्रक्रिया पढ़ाई और नौकरी के दबाव के बीच बेहद लंबी, जटिल और नौकरशाही से भरी हुई है। कई ईमानदार छात्रों ने अपनी फीस समय पर भरी, लेकिन वीज़ा नवीनीकरण या पोस्ट-ग्रेजुएशन वर्क परमिट के लिए समय पर आवेदन करने के बावजूद, प्रशासनिक देरी के कारण उन्हें महीनों तक इंतज़ार करना पड़ा। इस देरी के चलते उन्हें अनजाने में “ग़ैरकानूनी ठहराव” की श्रेणी में डाल दिया गया। उनकी वर्षों की मेहनत, माता-पिता की गाढ़ी कमाई से भरी हुई लाखों की फ़ीस, और कनाडा में बसने के उनके सभी सपने, एक अदृश्य और क्रूर प्रशासनिक गलती के कारण एक ही पल में धराशायी हो गए हैं। यह स्थिति एक बड़ी विडंबना है, क्योंकि ये वही लोग हैं जो कनाडाई अर्थव्यवस्था और श्रम बाजार को सहयोग दे रहे थे।

 राजनीति और सामाजिक दबाव का दुखद असर: प्रवासी बने राजनीतिक मोहरा

कनाडा की आंतरिक राजनीति में प्रवासी मुद्दा हाल के दिनों में एक गर्म और संवेदनशील विषय बन चुका है। बढ़ते आर्थिक दबाव (जैसे आवास संकट) और सुरक्षा चिंताओं के चलते, कनाडाई सरकार ने “विदेशी अपराधियों और अवैध प्रवासियों” पर सख्त कार्रवाई का अभियान शुरू किया है। हालाँकि इस अभियान का उद्देश्य सुरक्षा बनाए रखना है, लेकिन इसका खामियाजा भारतीय समुदाय को भुगतना पड़ रहा है, जो कनाडा में सबसे बड़ा और सबसे अधिक दिखाई देने वाला प्रवासी वर्ग है। यह समुदाय इस अभियान की सीधी मार झेल रहा है। इसके अतिरिक्त, भारत-कनाडा के बीच खालिस्तान समर्थक गतिविधियों और दोनों देशों के बीच उपजे राजनैतिक तनाव ने भी इस पूरे माहौल को और अधिक विषाक्त बना दिया है। भारतीय प्रवासियों की कानूनी त्रुटियों को अब एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे वे दोनों देशों के बीच राजनीतिक खींचतान में कुचले हुए आम आदमी बन गए हैं।

 टूटे सपनों की करुण कहानी: ‘मौन विलोपन’ और 48 घंटे की मोहलत

निष्कासन की प्रक्रिया अपने आप में एक करुण और हृदय विदारक मानवीय त्रासदी है। भारत में पंजाब, हरियाणा, गुजरात और आंध्र प्रदेश के कई परिवारों ने अपने बच्चों की पढ़ाई और उन्हें कनाडा में बसावट सुनिश्चित करने के लिए अपनी ज़मीन-जायदाद तक बेच दी थी। अब वही माता-पिता हर रोज़ फोन या वीडियो कॉल पर अपने बच्चों की सिसकियाँ सुन रहे हैं। कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहाँ अप्रवासियों को अचानक डिपोर्टेशन (Deportation) की सूचना मिली और उन्हें महज 48 घंटे के भीतर देश छोड़कर जाने का आदेश दे दिया गया—बिना किसी पर्याप्त कानूनी मदद या अपनी अपील दायर करने के अवसर के। यह केवल एक प्रशासनिक कार्रवाई नहीं है; यह हज़ारों भारतीय सपनों का मौन विलोपन (Silent Annihilation) है, जहाँ एक कागज़ी गलती एक पूरे परिवार के भविष्य को हमेशा के लिए तोड़ देती है, जिससे उनका विश्वास और मनोबल पूरी तरह से चकनाचूर हो जाता है।

भारत-कनाडा रिश्तों पर असर और आगे का रास्ता

भारत सरकार ने इस बढ़ती हुई घटना को एक गंभीर चिंता का विषय बताया है और कहा है कि वह इन घटनाओं की “निगरानी” कर रही है। हालाँकि ज़मीनी स्तर पर दूतावासों द्वारा दी जाने वाली राहत और कानूनी मदद सीमित बनी हुई है। दूसरी ओर, कनाडा का दृढ़ रुख है कि वह केवल अपनी “कानूनी प्रक्रिया” का पालन कर रहा है और देश की सुरक्षा व अखंडता सुनिश्चित कर रहा है। लेकिन इस पूरे संकट का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि भारत और कनाडा के बीच हालिया राजनीतिक तनाव—खासकर खालिस्तान और आतंकवाद के मुद्दे पर—भारतीय प्रवासियों की स्थिति को और भी अधिक असुरक्षित और संदिग्ध बना रहा है। विशेषज्ञ स्पष्ट रूप से मानते हैं कि भारत को तत्काल कनाडा में एक व्यापक कानूनी सहायता प्रकोष्ठ (Legal Aid Cell) सक्रिय करना चाहिए, जो छात्रों और कामगारों को तत्काल सलाह, कागज़ी मदद और कुशल वकीलों की पहुँच सुनिश्चित कर सके। साथ ही, कनाडा सरकार को अपनी नीति में मानवीय दृष्टिकोण लाना होगा, यह समझना होगा कि हर वीज़ा गलती कोई गंभीर अपराध नहीं होती। दोनों देशों को संवाद और राजनयिक समाधान के रास्ते से इस गंभीर मानवीय संकट को प्राथमिकता के आधार पर सुलझाने की सख़्त ज़रूरत है।

सपनों का सफर अधूरा और अनिश्चितता का बोझ

कनाडा जाने का सपना लाखों भारतीय युवाओं की आँखों में पल रहा होता है—यह सपना केवल पैसा कमाने का नहीं, बल्कि बेहतर भविष्य, सम्मान और सुरक्षा पाने का होता है। लेकिन अब यह सपना तेज़ी से टूटता हुआ और अनिश्चित दिखाई दे रहा है। पिछले छह साल से लगातार बढ़ते ये निष्कासन के आंकड़े सिर्फ सरकारी रिपोर्ट या सांख्यिकी नहीं हैं, बल्कि उन हज़ारों टूटे दिलों और उजड़े अरमानों की एक करुण दास्तान हैं। यह कहानी उन सभी प्रवासियों के लिए एक मौन और मार्मिक चेतावनी है जो यह कह रहे हैं “कभी किसी देश में बसने की चाह में अपनी पहचान मत खो देना, और अपने कागज़ात में कोई चूक मत करना, क्योंकि जब पहचान और कानूनी स्थिति मिटती है, तो देश की सरहदें इंसानियत और सपनों पर भारी पड़ जाती हैं।”

Uयह ज़रूरी है कि इस मानवीय त्रासदी को राजनीति से ऊपर उठकर देखा जाए और प्रभावित परिवारों को जल्द से जल्द राहत प्रदान की जाए।

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