नई दिल्ली
5 अगस्त 2025
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की उस कड़ी टिप्पणी पर ज़ोरदार पलटवार किया जिसमें राहुल गांधी को उनके “चीन ने भारतीय भूमि पर कब्जा कर लिया” वाले बयान के लिए फटकार लगाई गई थी। प्रियंका ने स्पष्ट कहा कि न्यायपालिका के प्रति उनका आदर अटल है, लेकिन किसी भी न्यायाधीश को यह अधिकार नहीं है कि वह यह तय करे कि कौन सच्चा भारतीय है और कौन नहीं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में विपक्ष की यह नैतिक ज़िम्मेदारी है कि वह सरकार से राष्ट्रीय सुरक्षा सहित तमाम मुद्दों पर सवाल पूछे और जवाब मांगे। उनके अनुसार, राहुल गांधी देश की सेना को अत्यंत सम्मान की दृष्टि से देखते हैं और उन्होंने कभी भी देश की सुरक्षा या सैनिकों का अपमान नहीं किया।
प्रियंका गांधी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि राहुल गांधी की आलोचना दरअसल एक गलत व्याख्या पर आधारित है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका भाई हर मंच पर देश की सेना की सराहना करता रहा है। उनका उद्देश्य सरकार से जवाबदेही सुनिश्चित करना है, न कि सेना की छवि को ठेस पहुंचाना। उन्होंने कहा कि अगर सेना की गलवान में शहादत या अरुणाचल में चीनी घुसपैठ जैसे मुद्दों पर विपक्ष सवाल न पूछे तो यह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी होगी। ऐसे में राहुल गांधी का बयान भारतीय सुरक्षा व्यवस्था की कमजोरी पर नहीं, बल्कि सरकार की चुप्पी और निष्क्रियता पर सवाल उठाने का प्रयास था।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ए. जी. मसीह शामिल थे, ने राहुल गांधी के खिलाफ लखनऊ की अदालत में चल रही कार्यवाही पर तो रोक लगा दी, लेकिन उनकी भाषा और शैली पर सख्त टिप्पणी भी की। बेंच ने सवाल उठाया कि यदि राहुल गांधी खुद को सच्चा भारतीय मानते हैं, तो उन्हें इस तरह के बयान नहीं देने चाहिए थे। अदालत ने यह भी पूछा कि उन्हें कैसे पता चला कि चीन ने 2000 वर्ग किलोमीटर भारतीय भूमि पर कब्जा कर लिया है? न्यायालय का यह रुख इस बात को लेकर था कि सोशल मीडिया पर बयानबाज़ी करना संसद की गरिमा के खिलाफ है, खासकर तब जब राहुल गांधी अब विपक्ष के नेता हैं।
कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि राहुल गांधी जो मुद्दे उठा रहे हैं, वे केवल उनके नहीं बल्कि हर जागरूक नागरिक की चिंता हैं। उन्होंने सवाल किया कि जब संसद में विपक्ष सवाल पूछता है तो जवाब नहीं मिलता, और जब वही सवाल जनता के सामने पूछे जाते हैं तो उन्हें राष्ट्रविरोधी कहा जाता है। यह लोकतंत्र की मूल आत्मा के खिलाफ है। कांग्रेस के नेताओं ने यह स्पष्ट किया कि देशभक्ति का मतलब आंख मूंदकर सरकार की प्रशंसा करना नहीं है, बल्कि जनता की ओर से जवाबदेही मांगना भी एक प्रकार की राष्ट्रसेवा है।
राहुल गांधी का यह बयान दिसंबर 2022 में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सामने आया था, जब उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, “लोग गहलोत-पायलट विवाद पर तो सवाल करते हैं, लेकिन कोई नहीं पूछता कि चीन ने 2000 वर्ग किलोमीटर जमीन कैसे कब्जा ली? हमारे 20 जवान शहीद हो गए, और अरुणाचल प्रदेश में हमारे सैनिकों को पीटा गया, पर मीडिया चुप है।” यह बयान तब दिया गया था जब भारत-चीन सीमा विवाद और गलवान घाटी की घटनाएं राष्ट्रीय चिंता का विषय बनी हुई थीं। अब उसी बयान को लेकर अदालत में कानूनी कार्यवाही चल रही है, जो आगे राजनीतिक मोड़ भी ले रही है।
यह विवाद अब केवल राहुल गांधी के एक बयान की प्रतिक्रिया नहीं रह गया है, बल्कि यह एक गहरी वैचारिक बहस में बदल गया है — लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका क्या होनी चाहिए, सवाल पूछने की आज़ादी कहां तक सीमित हो, और सच्ची राष्ट्रभक्ति की परिभाषा क्या है। सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई अब न सिर्फ कानूनी दृष्टिकोण से बल्कि राजनीतिक और संवैधानिक दृष्टि से भी बेहद अहम मानी जा रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अदालतें आलोचना को राष्ट्रविरोध की कसौटी पर परखेंगी या लोकतंत्र में बहस की गुंजाइश को और सशक्त बनाएंगी।
यह मामला लोकतांत्रिक मूल्यों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर एक गंभीर परीक्षा बन चुका है। राहुल गांधी पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और प्रियंका गांधी का पलटवार न सिर्फ एक परिवार या पार्टी की लड़ाई है, बल्कि यह पूरे भारतीय लोकतंत्र के चरित्र को परिभाषित करने वाली लड़ाई बन गई है – जिसमें सवाल उठाना अधिकार भी है और ज़िम्मेदारी भी।