कांग्रेस ने आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से पहले अपनी रणनीति तय करते हुए राजनीतिक गलियारों में बड़े बदलाव का संकेत दे दिया है। दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी की अगुवाई में हुई अहम बैठक ने साफ कर दिया कि पार्टी अब केवल “प्रतिस्पर्धी” नहीं बल्कि “निर्णायक खिलाड़ी” की भूमिका निभाने जा रही है। इस बैठक में बिहार के मौजूदा हालात, सामाजिक-आर्थिक संकट और संगठन को चुस्त-दुरुस्त करने पर लंबी चर्चा हुई।
बिहार की राजनीति में उबाल
बैठक से यह संदेश गया है कि कांग्रेस अब किसी भी सूरत में बिहार की राजनीति में पिछली पंक्ति की पार्टी बनकर नहीं रहना चाहती। दो दशकों से सत्ता के स्वाद चखते आ रहे BJP-JDU पर कांग्रेस ने सीधा हमला बोलते हुए संकेत दिया कि बेरोजगारी, पलायन और शिक्षा जैसी समस्याओं को लेकर जनता में भारी असंतोष है और अब बदलाव की लहर उठ रही है। राहुल गांधी और खड़गे दोनों ने नेताओं को साफ कहा कि यह वक्त जनता का विश्वास जीतने और सत्ता पलटने का सबसे बड़ा अवसर है।
जमीनी समस्याओं पर आक्रामक तेवर
बैठक में सबसे अधिक जोर उन वास्तविक मुद्दों पर रहा जिनसे बिहार की आम जनता जूझ रही है। बेरोजगारी का संकट बढ़ा है, लाखों लोग हर साल रोज़गार की तलाश में दूसरे राज्यों पलायन कर जाते हैं, शिक्षा और स्वास्थ्य ढांचा पूरी तरह चरमरा चुका है और भ्रष्टाचार लगातार प्रशासनिक ढांचे को खोखला करता रहा है। कांग्रेस नेताओं ने माना कि यही वे दर्द हैं जिन्हें जनता सीधे महसूस करती है और यही कांग्रेस का सबसे बड़ा राजनीतिक हथियार होगा।
नए चेहरों और मजबूत उम्मीदवारों पर फोकस
कांग्रेस ने यह भी ठाना है कि इस बार उम्मीदवारों के चयन में कोई समझौता नहीं होगा। प्रभारी भीम सिंह ने यह स्पष्ट किया कि केवल मजबूत, ईमानदार और स्थानीय स्तर पर स्वीकृत उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा जाएगा। चुनावी संगठन, कैंपेन मैनेजमेंट और जनसंपर्क—तीनों स्तरों को रणनीतिक रूप से मजबूत करने की रूपरेखा तय कर दी गई है। आने वाले दिनों में जिला और ब्लॉक स्तर तक बैठकों का दौर शुरू किया जाएगा ताकि चुनावी संदेश निचले स्तर तक पहुंच सके।
जनता की नब्ज और सीधा संवाद
बैठक में कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने कहा कि “20 साल से BJP-JDU की सरकार ने बिहार को पिछड़ेपन की दलदल में धकेल दिया है। अब जनता बदलाव चाहती है और कांग्रेस उस बदलाव की अगुवाई करने को तैयार है।” इस बयान से यह साफ जाहिर है कि कांग्रेस आक्रामक तरीके से चुनावी मैदान में उतरेगी और हर वर्ग के साथ सीधा संवाद कायम करेगी—चाहे वह किसान हों, छात्र, मजदूर या महिलाएं।
गठबंधन और सत्ता में हिस्सेदारी की रणनीति
पार्टी के रणनीतिकारों ने इस बैठक में विपक्षी गठबंधन को लेकर भी चर्चा की। कांग्रेस चाहती है कि गठबंधन में उसकी भूमिका केवल “सहयोगी” तक सीमित न रहे बल्कि निर्णायक और असरदार हो। यही वजह है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस अन्य विपक्षी दलों के साथ सीट शेयरिंग और रणनीति को लेकर दबाव की राजनीति भी कर सकती है। पार्टी का लक्ष्य साफ है—इस बार केवल चुनाव लड़ना नहीं बल्कि राज्य की सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित करना।
बदलाव की लहर पर सवार कांग्रेस
इस बैठक का सबसे अहम संदेश यह निकला कि कांग्रेस बिहार को एक नए विकास मॉडल की ओर ले जाने का दावा कर रही है। पार्टी का पूरा फोकस शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और भ्रष्टाचार-मुक्त शासन जैसे बुनियादी मुद्दों पर होगा। रणनीतिकार मानते हैं कि इन बिंदुओं पर जनता का भरोसा जीतना अपेक्षाकृत आसान होगा क्योंकि मौजूदा सरकार इन मसलों पर पूरी तरह विफल रही है। राहुल गांधी खुद आने वाले समय में बिहार का दौरा करेंगे और बड़े जनसभाओं के ज़रिए इस लहर को और मजबूती देंगे।
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