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नकली बाबाओं का धंधा और समाज की खामोशी: आखिर कब टूटेगा पाखंड का जाल?

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नई दिल्ली 30 सितंबर 2025

आस्था को व्यवसाय में बदलते नकली संत

हर बार जब किसी नकली बाबा का पाप उजागर होता है, समाज का एक बड़ा हिस्सा चौंक उठता है। लेकिन असली सवाल यह है कि आखिर ये पाखंडी इतने लंबे समय तक बचते कैसे रहते हैं? धर्म और अध्यात्म की आड़ में लोगों की भावनाओं से खेलना आसान हो गया है। दिन में ये तथाकथित बाबा ‘ईश्वर का संदेश’ सुनाते हैं और रात को हवस का शिकार बनाने के लिए मासूम युवतियों को बुलाते हैं। रश्मि, काजल और श्वेता जैसी लड़कियों की गवाही ने साफ कर दिया है कि यह कोई साधारण चूक नहीं, बल्कि एक सुनियोजित अपराध था।

समाज की चुप्पी, सत्ता की ढिलाई

जब ये बाबाएं मंचों से बड़े-बड़े प्रवचन देते हैं, भीड़ तालियां बजाती है। जब ये हवस और अपराध में लिप्त पाए जाते हैं, तो समाज अचानक कह देता है कि “हमें तो पता ही नहीं था।” लेकिन क्या यह सच है? क्या लोगों की आंखों पर इतनी मोटी पट्टी बंधी है कि वे इन ढोंगियों की चाल नहीं देख पाते? और अगर देखते हैं तो सवाल क्यों नहीं उठाते? सबसे बड़ा दोष सत्ता और व्यवस्था का भी है। ऐसे बाबाओं के खिलाफ शिकायतें दबा दी जाती हैं, कार्रवाई में देरी होती है और परिणाम यह होता है कि उनकी हिम्मत और बढ़ती जाती है।

पीड़िताओं की बहादुरी और हमारी जिम्मेदारी

रश्मि, काजल और श्वेता जैसी युवतियों ने जिस साहस से आगे आकर बाबा के काले चेहरे का पर्दाफाश किया है, वह काबिल-ए-तारीफ है। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या हम समाज के तौर पर उनकी पीड़ा को समझने और उनका साथ देने के लिए तैयार हैं? अक्सर ऐसी पीड़िताओं को ही बदनाम कर दिया जाता है, जबकि अपराधी बाबा बच निकलता है। यह मानसिकता तभी टूटेगी जब हम आस्था और पाखंड के बीच फर्क करना सीखेंगे।

 सरकार और कानून से सवाल

यह सिर्फ पुलिस की कार्रवाई भर नहीं है। यह कानून व्यवस्था की एक बड़ी परीक्षा है। आखिर क्यों हर कुछ सालों में एक नया नकली बाबा सामने आता है और जनता की आस्था को कलंकित करता है? सरकार और न्याय व्यवस्था को इस पर सख्ती दिखानी होगी। दोषियों को ऐसी सजा दी जानी चाहिए कि भविष्य में कोई और ‘बाबा’ आस्था के नाम पर अपराध करने की हिम्मत न जुटा सके। साथ ही, ऐसे संस्थानों और आश्रमों की नियमित निगरानी होनी चाहिए ताकि अपराध पनपने का मौका ही न मिले।

आस्था नहीं, सच पर भरोसा करें

इस पूरे मामले का सबसे बड़ा सबक यह है कि आस्था कभी भी आंख मूंदकर नहीं होनी चाहिए। धर्म का असली उद्देश्य आत्मा को मजबूत करना है, न कि किसी पाखंडी के हाथों अपने जीवन को बर्बाद करना। समाज को जागरूक होना होगा, सवाल पूछने होंगे और ऐसे बाबाओं की पोल खोलनी होगी। अगर हम चुप रहेंगे, तो हर बार कोई न कोई रश्मि, काजल और श्वेता अपनी जिंदगी का दर्द लेकर सामने आती रहेंगी।

 

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