पटना
8 अगस्त 2025
पटना। बिहार की सियासत इन दिनों एक बार फिर से गरमा गई है, और इस बार केंद्र में हैं राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव। उन्होंने हाल ही में चुनाव आयोग पर सीधा निशाना साधते हुए कहा— “हमलोग छोड़ने वाले नहीं हैं चुनाव आयोग को। कोई गलतफहमी में न रहे। सब उपाय है हमलोगों के पास। ये बिहार है और एक बिहारी सब पर भारी। ये चुनाव आयोग कौन सी बड़ी चीज है।” तेजस्वी का यह बयान सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हुआ और विपक्ष-समर्थकों के बीच यह संदेश गया कि वे आयोग की किसी भी कथित धांधली के खिलाफ खुलकर लड़ने को तैयार हैं। इस बयान ने न केवल बिहार के राजनीतिक माहौल को गर्मा दिया है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा छेड़ दी है कि एक शीर्ष विपक्षी नेता का इस तरह सीधे चुनाव आयोग को चुनौती देना लोकतांत्रिक मर्यादाओं के दायरे में किस हद तक सही है।
तेजस्वी यादव का यह हमला उस समय सामने आया है जब वे लगातार दावा कर रहे हैं कि उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग की विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई है। उनके मुताबिक, सिर्फ उनका ही नहीं बल्कि हजारों मतदाताओं के नाम बिना किसी स्पष्ट कारण के हटा दिए गए हैं, जो मताधिकार के हनन के बराबर है। उन्होंने यह भी कहा कि यह प्रक्रिया सत्ता पक्ष की मिलीभगत से विपक्षी मतों को कमजोर करने की कोशिश है। तेजस्वी के इन आरोपों के बाद RJD और महागठबंधन के अन्य नेताओं ने भी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाना शुरू कर दिया है।
दूसरी ओर, चुनाव आयोग ने तेजस्वी के दावे को पूरी तरह खारिज कर दिया है। आयोग का कहना है कि उनका नाम मतदाता सूची की ड्राफ्ट कॉपी में मौजूद है और उन्हें वोट देने में कोई बाधा नहीं होगी। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि SIR प्रक्रिया के तहत नए मतदाताओं को जोड़ा गया है, मृतकों के नाम हटाए गए हैं और दोहरे पंजीकरण को समाप्त किया गया है। यही नहीं, इस विवाद के बीच एक और बड़ा मुद्दा सामने आया—तेजस्वी के नाम पर दो EPIC (Electors Photo Identity Card) नंबर दर्ज होने का मामला। इनमें से एक नंबर (RAB2916120) अस्तित्वहीन पाया गया, जिसके बाद चुनाव आयोग ने तेजस्वी को नोटिस जारी कर उनसे स्पष्टीकरण मांगा।
तेजस्वी यादव ने इस पर पलटवार करते हुए कहा कि यदि EPIC नंबरों में कोई गलती है तो यह चुनाव आयोग की गलती है, न कि उनकी। उन्होंने कहा—“गलती उनकी है, जवाब भी हम देंगे और अच्छा देंगे।” इस बयान ने न केवल उनकी चुनौतीपूर्ण मुद्रा को और स्पष्ट किया बल्कि समर्थकों के बीच यह संदेश भी दिया कि वे पीछे हटने वाले नहीं हैं। वहीं, भाजपा ने इस मुद्दे पर तेजस्वी की आलोचना करते हुए कहा कि संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा बनाए रखना सभी नेताओं का कर्तव्य है और इस तरह के बयानों से जनता में गलत संदेश जाता है।
बिहार में इस पूरे प्रकरण का असर राजनीतिक समीकरणों पर भी पड़ रहा है। RJD और महागठबंधन इसे चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी में हैं, जबकि NDA इसे विपक्ष की ‘बेबुनियाद बयानबाज़ी’ करार दे रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तेजस्वी का यह आक्रामक रुख उनके कोर वोट बैंक को मजबूत करने और सत्ता पक्ष पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है। यह बयानबाज़ी विशेष रूप से बिहार की उस राजनीतिक संस्कृति में फिट बैठती है, जहां नेताओं की दृढ़ और चुनौतीपूर्ण भाषा को जनता में ताकत और नेतृत्व क्षमता का प्रतीक माना जाता है।
अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि चुनाव आयोग तेजस्वी यादव को भेजे गए नोटिस पर उनकी ओर से क्या आधिकारिक जवाब आता है, और क्या यह विवाद आगे किसी कानूनी या संवैधानिक टकराव में बदलता है। इतना तय है कि यह मुद्दा फिलहाल ठंडा होने वाला नहीं है और आने वाले चुनावी मौसम में यह बिहार की राजनीति का एक अहम हथियार बन सकता है।