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तेजस्वी बनाम सिस्टम — सियासत का शिकार या न्याय की जंग?

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नई दिल्ली 13 अक्टूबर 2025

बिहार चुनाव से पहले सियासी झटका: अदालत, आरोप और एजेंसियों की सक्रियता

बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दिल्ली की राउज़ एवेन्यू कोर्ट द्वारा लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव के खिलाफ़ IRCTC घोटाले में आरोप तय किए जाना केवल एक कानूनी कार्रवाई नहीं — यह एक राजनीतिक विस्फोट है। समय की संवेदनशीलता इस घटना को सामान्य मुकदमे से कहीं बड़ा बना देती है। जहां RJD इसे “राजनीतिक बदले की कार्रवाई” बता रही है, वहीं बीजेपी इसे “भ्रष्टाचार के खिलाफ़ न्याय की जीत” कह रही है। लेकिन असली सवाल यह है — क्या यह न्यायिक प्रक्रिया का परिणाम है या सिस्टम का राजनीतिक इस्तेमाल, जिसमें हर उभरते विपक्षी चेहरे को कुचलने की परंपरा दोहराई जा रही है? यह मामला अब “तेजस्वी बनाम सिस्टम” की लड़ाई बन गया है — एक ऐसा टकराव, जिसमें न्याय, सत्ता और नैरेटिव तीनों आमने-सामने हैं।

तेजस्वी बनाम सिस्टम: जब युवा राजनीति ‘एजेंसियों’ के घेरे में हो

तेजस्वी यादव, जो बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं, ने हमेशा खुद को “युवा और सिस्टम से टकराने वाले नेता” के रूप में प्रस्तुत किया है। उनका दावा है कि यह केस केवल भ्रष्टाचार का नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रतिशोध का हिस्सा है। उन्होंने कहा — “जिन्होंने लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किया है, वे अब विपक्ष को डराने की कोशिश कर रहे हैं।” यह सीधा हमला केंद्र सरकार और उसकी जांच एजेंसियों — CBI, ED और IT — पर है, जिन्हें विपक्ष लंबे समय से “राजनीतिक हथियार” कहता रहा है। RJD समर्थक इसे “तेजस्वी बनाम सिस्टम” की लड़ाई बता रहे हैं, जहां सिस्टम का मतलब सिर्फ़ कानून नहीं, बल्कि सत्ता का पूरा ढांचा है जो विपक्ष को हाशिए पर डालना चाहता है।

दूसरी ओर, बीजेपी और एनडीए का तर्क है कि यह न्याय की प्रक्रिया है, न कि साजिश। बीजेपी नेता मुक्तार अब्बास नकवी ने कहा — “यह अपराध और भ्रष्टाचार का परिवार अब कानून की पकड़ में है।” उनका दावा है कि लालू परिवार ने “गरीबों के नाम पर अपनी तिजोरी भरी” और अब “न्याय का वक्त आ गया है।” मगर सवाल उठता है कि अगर यह न्याय है, तो चुनाव से ठीक पहले आरोप तय करने की यह ‘राजनीतिक टाइमिंग’ क्यों? विपक्षी नेता क्लाइड क्रैस्टो का कहना है — “जब भी चुनाव आते हैं, ईडी और सीबीआई को नया जोश आ जाता है।” यह संयोग नहीं, बल्कि सिस्टमेटिक पैटर्न है, जो अब जनता के बीच भी चर्चा का विषय बन चुका है।

टाइमिंग और सियासत: जब अदालत के फैसले चुनावी मंच बन जाएं

IRCTC घोटाले की जड़ें 2006 तक जाती हैं — यानी लगभग दो दशक पुराना मामला। लालू प्रसाद यादव तब रेल मंत्री थे और CBI का आरोप है कि उन्होंने होटल टेंडर के बदले परिवार को जमीन का लाभ दिलाया। लेकिन अब, 2025 में, जब बिहार में महागठबंधन मज़बूत हो रहा है, तेजस्वी की लोकप्रियता बढ़ रही है, और बीजेपी सत्ता विरोधी लहर झेल रही है, तब यह मुकदमा एक बार फिर सुर्खियों में लाया जा रहा है। क्या यह महज़ संयोग है कि यह फैसला ठीक चुनाव के मौसम में आया है? अगर इसे राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए, तो यह क्लासिक उदाहरण है कि कैसे ‘कानून की प्रक्रिया’ को ‘चुनावी रणनीति’ में बदला जा सकता है।

तेजस्वी यादव की छवि एक “साहसी, बोल्ड और जमीनी” नेता की बन चुकी है। ऐसे में यह कार्रवाई उन्हें विपक्ष का “सिस्टम से टकराने वाला चेहरा” बनाती है, जिससे सहानुभूति वोट जुटने की संभावना भी है। यह वही फार्मूला है जो पहले राहुल गांधी के मामले में दिखा था — जहां सज़ा के बाद उनकी लोकप्रियता अचानक बढ़ गई।

तेजस्वी के लिए यह मामला एक जोखिम और अवसर दोनों है।

बिहार चुनाव पर असर: भ्रष्टाचार बनाम राजनीतिक प्रतिशोध की लड़ाई

आगामी विधानसभा चुनाव में यह केस बड़ा मुद्दा बनना तय है। एनडीए इसे “भ्रष्टाचार की वापसी” के रूप में पेश करेगा। बीजेपी पहले से ही लालू-राज को “जंगलराज” कहकर प्रचारित करती रही है, और अब अदालत के आदेश से उसे एक नया हथियार मिल गया है। यह नैरेटिव ऊपरी जातियों, शहरी मतदाताओं और मध्यमवर्ग में असर डाल सकता है — जहाँ “कानून और व्यवस्था” का मुद्दा निर्णायक होता है।

दूसरी तरफ, RJD और महागठबंधन इस मुद्दे को “राजनीतिक शिकार” बनाकर पेश करेंगे। तेजस्वी यादव युवाओं, पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों के बीच पहले से लोकप्रिय हैं। वे इस केस को “बीजेपी की साजिश” बताकर भावनात्मक नैरेटिव बना सकते हैं — “जब हम जीतने लगते हैं, तब सिस्टम हमें फँसाने की कोशिश करता है।” यह रणनीति पहले भी सफल रही है। 2020 के चुनाव में भी जांच एजेंसियों की सक्रियता के बावजूद RJD सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इस बार भी जनता एजेंसियों की “टाइमिंग” को समझती है — और यह सहानुभूति लहर महागठबंधन के पक्ष में जा सकती है।

न्याय बनाम राजनीति — जनता की अदालत में फैसला

कानूनी तौर पर, अदालत ने भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश की धाराओं में आरोप तय किए हैं, जो गंभीर हैं। अगर ट्रायल में ठोस सबूत सामने आते हैं, तो तेजस्वी यादव की राजनीतिक यात्रा को गहरी चोट लग सकती है। लेकिन अगर यह केस साबित नहीं हो पाया या “राजनीतिक टाइमिंग” की कहानी जनता के दिल तक पहुंच गई, तो यही मामला बीजेपी के खिलाफ़ पलटवार का हथियार बन सकता है। तेजस्वी अब “आरजेडी के वारिस” से आगे बढ़कर “राजनीतिक शिकार” की छवि में उभर रहे हैं —एक ऐसा युवा नेता जो सिस्टम से टकरा रहा है, और यही टकराव उन्हें बिहार की राजनीति में नायक बना सकता है।

बिहार की राजनीति अब अदालत से नहीं, नैरेटिव से तय होगी

IRCTC केस अब केवल एक भ्रष्टाचार मामला नहीं रहा — यह बिहार की राजनीति का ‘लिटमस टेस्ट’ बन चुका है।

एक तरफ सिस्टम है, जो सत्ता के प्रभाव में कानून का उपयोग करता दिखता है; दूसरी तरफ तेजस्वी यादव हैं, जो खुद को “न्याय के खिलाफ़ संघर्ष” का प्रतीक बना रहे हैं।

अगर जनता ने इसे राजनीतिक साजिश के रूप में देखा, तो RJD को फायदा मिलेगा।

लेकिन अगर अदालत ने ठोस सबूतों के साथ लालू परिवार को दोषी ठहराया, तो यह बिहार की राजनीति में “भ्रष्टाचार के अंत” की नई शुरुआत होगी। इसलिए असली फैसला अदालत में नहीं, बल्कि जनता की अदालत में होगा — जहां हर मतदाता तय करेगा कि यह मुकदमा सत्य की जीत है या सत्ता की चाल।

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