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वेस्ट बैंक और गाज़ा में आंसुओं का सैलाब, 2000 फ़िलिस्तीनी कैदियों की रिहाई से संघर्ष भूमि पर जश्न

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इस्राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष के इतिहास में यह दिन मानवीय राहत और गहरे राजनीतिक अंतर्विरोधों की एक नई गाथा लेकर आया। लगभग 2,000 फ़िलिस्तीनी बंदियों को इस्राइली जेलों से रिहा किया गया, जिसने वेस्ट बैंक और गाज़ा की संघर्ष-ग्रस्त गलियों में एक साथ आँसू और जश्न का सैलाब ला दिया। यह क्षण केवल जेल की सलाखों से मुक्ति का नहीं था, बल्कि दशकों से अपने बेटों, पतियों और भाइयों का इंतज़ार कर रहे परिवारों के लिए एक भावनात्मक पुनर्जन्म था। सड़कों पर उतरे हज़ारों लोगों के चेहरे पर एक तरफ़ मातम के बीच मिली स्वतंत्रता की राहत थी, तो दूसरी तरफ़ संघर्ष के अनगिनत अध्यायों की कसक साफ़ झलक रही थी। यह रिहाई उस उम्मीद की पहली किरण है जो अक्सर युद्ध की काली छाया में गुम हो जाती है, जिसने एक बार फिर इस क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की नज़रों में ला दिया है।

मध्यस्थता का फल: सीज़फ़ायर के तहत रिहा हुए प्रशासनिक बंदी

यह ऐतिहासिक रिहाई दरअसल एक जटिल मानवीय और राजनीतिक समझौते का परिणाम है, जिसे क़तर, मिस्र और संयुक्त राष्ट्र जैसे प्रमुख वैश्विक मध्यस्थों ने महीनों की अथक कूटनीति के बाद अंतिम रूप दिया। यह कदम वर्तमान सीज़फ़ायर (संघर्षविराम) को मज़बूती प्रदान करने के उद्देश्य से उठाया गया है, जिसके तहत दोनों पक्षों ने सद्भावना दिखाते हुए एक-दूसरे के प्रति सकारात्मक कदम उठाए हैं। रिहा किए गए लगभग 1,700 बंदी वे थे जिन्हें इस्राइल ने ‘प्रशासनिक हिरासत’ (Administrative Detention) के तहत बिना किसी औपचारिक आरोप या मुक़दमे के अनिश्चितकाल तक जेलों में रखा हुआ था। शेष 250 बंदियों को, जिन पर कठोर अपराधों के आरोप थे, उन्हें भी विशेष ‘पुनर्वास प्रक्रिया’ के तहत छोड़ा गया। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन इस कदम को इस्राइली नीति में एक दुर्लभ बदलाव के रूप में देख रहे हैं, जबकि कई राजनीतिक विश्लेषक इसे स्पष्ट तौर पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय और राजनयिक दबाव का सीधा परिणाम मानते हैं।

गाज़ा से रामल्ला तक उमड़ा जनसैलाब, माताओं की आँखों में इंतज़ार का समंदर

रिहाई की खबर आग की तरह फैली और तुरंत ही गाज़ा सिटी, रफाह, ख़ान यूनिस, तथा वेस्ट बैंक के नाबलुस और हिब्रोन जैसे प्रमुख इलाकों की सड़कें जनसैलाब से भर गईं। बसों से उतरते कैदियों का स्वागत फूलों की मालाओं, फ़िलिस्तीनी झंडों और पारंपरिक लोकगीतों के साथ किया गया, जिसने हर तरफ एक उत्सव का माहौल बना दिया। सबसे मार्मिक दृश्य तब सामने आया जब कई बुज़ुर्ग माताओं ने दशकों बाद अपने बेटों को छूकर रोना शुरू कर दिया – उनका रुदन खुशी और कष्ट का एक मिला-जुला भाव था। कई उत्साहित युवाओं ने अपनी स्वतंत्रता को ज़ाहिर करते हुए बसों की छतों पर चढ़कर ‘फ़िलिस्तीन ज़िंदाबाद’ के नारे लगाए, जो वर्षों के दमन के बाद एक सामूहिक अभिव्यक्ति थी। यह पल किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं था, बल्कि यह उस संघर्षग्रस्त समाज की गहरी सच्चाई थी जहाँ परिवारों को अपने सदस्यों की एक झलक के लिए सालों तक तड़पना पड़ता है, और आज उन्हें यह राहत मिली है।

जेल की यातनाएँ: ‘हमने नर्क झेला, अब सांस लेना सीख रहे हैं’

रिहा हुए बंदियों द्वारा सुनाई गई कहानियाँ दिल दहला देने वाली हैं, जो इस्राइली जेलों के भीतर यातना, भूख और अमानवीय अपमान की दास्ताँ बयां करती हैं। 35 वर्षीय फ़ैसल अल-खलीफ़ी ने भावुक होते हुए बताया कि, “हमारा हर दिन मौत से भी बदतर था। हमें अकारण पीटा जाता था, गंभीर रूप से बीमार होने पर भी दवाएँ नहीं मिलती थीं। हम बस इतना गिनते थे कि क्या हम अगला दिन देख पाएंगे या नहीं।” एक अन्य रिहा हुए बंदी अहमद अवाद ने भी जेल गार्डों द्वारा बिना किसी कारण क्रूरता किए जाने का उल्लेख किया और कहा कि, “वे हमें इंसान नहीं, बस एक बोझ समझते थे।” कई बंदी घायल अवस्था में लौटे हैं, जिनके शरीर पर जेल में लगी गंभीर चोटों के निशान साफ़ दिखाई दे रहे थे। फ़िलिस्तीनी मानवाधिकार आयोग ने इस्राइली जेल सेवा पर अमानवीय व्यवहार और ‘टॉर्चर’ के संगीन आरोप लगाए हैं। हालाँकि, इस्राइली जेल सेवा ने इन सभी आरोपों को सिरे से ‘राजनीतिक प्रचार’ कहकर खारिज कर दिया है, लेकिन ज़मीन पर दिखाई दे रहे ये ज़ख्म एक अलग ही कहानी बयां कर रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया: राहत का इज़हार, भविष्य को लेकर सशंकता

इस्राइल द्वारा उठाए गए इस कदम का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक स्वागत हुआ है। क़तर, मिस्र, तुर्की और संयुक्त राष्ट्र ने इस पहल को मध्य-पूर्व में तनाव कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने एक बयान में कहा कि, “यह मानवता की एक छोटी जीत है, लेकिन हमें याद रखना होगा कि असली और स्थायी शांति अभी भी हमसे बहुत दूर है।” अमेरिका ने भी इसे “मध्य-पूर्व में शांति बहाली के प्रयासों में एक सकारात्मक संकेत” बताया है, हालांकि वाशिंगटन ने गाज़ा पर हावी हामास जैसे संगठनों पर भरोसा करने को लेकर अपनी सशंकता भी ज़ाहिर की है। वहीं, इस्राइल के भीतर दक्षिणपंथी राजनीतिक दलों और कुछ सुरक्षा विशेषज्ञों ने इस बड़े पैमाने की रिहाई को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक संभावित ख़तरा बताया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह कदम आंतरिक रूप से भी विवादास्पद बना हुआ है।

आगे का रास्ता: क्या यह क्षणिक राहत स्थायी शांति का संकेत बनेगी?

इस रिहाई को मध्य-पूर्व के विशेषज्ञ ‘मानवीय दबाव और जटिल राजनीतिक सौदेबाज़ी’ का एक दुर्लभ संगम बता रहे हैं। वे इस बात पर जोर दे रहे हैं कि यह कदम केवल एक अस्थायी राहत साबित हो सकता है यदि इसके बाद दोनों पक्षों के बीच वास्तविक शांति संवाद शुरू नहीं होता है। गाज़ा में हालात अब भी विकट बने हुए हैं — बिजली संकट, दवाई की कमी और युद्ध के मलबे से भरे हुए घर, रिहा हुए बंदियों के सामने अब एक नई चुनौती खड़ी कर रहे हैं। उन्हें न सिर्फ अपनी आज़ादी के साथ तालमेल बिठाना है, बल्कि अपने परिवारों के साथ सामंजस्य बिठाना और संघर्ष के निशान वाले समाज में अपनी जगह फिर से तलाशनी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह रिहाई, आशा और यथार्थ के बीच की एक कड़ी है। फिलहाल, गाज़ा और वेस्ट बैंक की धरती पर जो दृश्य हैं, वे उम्मीद और मुस्कान की पहली लहर का प्रतीक हैं – जो यह दर्शाता है कि एक घायल भूमि में भी शांति की चाह अब भी जीवित है।

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