नई दिल्ली | 1 अक्टूबर 2025
सिंगापुर में मौत और असम में उठता तूफ़ान
असम के महान गायक और सांस्कृतिक प्रतीक जुबिन गर्ग की सिंगापुर में हुई संदिग्ध मौत ने पूरे राज्य को गहरे सदमे और अविश्वास में डाल दिया है। असम की जनता के लिए जुबिन सिर्फ़ एक गायक नहीं थे, बल्कि उनकी आत्मा, उनकी बोली और उनकी संस्कृति की जीवित पहचान थे। शुरुआत में जब यह खबर आई कि उनकी मौत अचानक हुई है, तो इसे एक सामान्य हादसा मानकर प्रस्तुत किया गया। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता और सूचनाएं सामने आती गईं, संदेह गहराता गया कि मामला केवल एक हादसे से कहीं अधिक बड़ा और गंभीर है। असम की जनता पहले से ही संशय और अविश्वास में थी, लेकिन जुबिन के करीबी मित्र और सहयोगी अंकुर हजारिका द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत ने इस मामले को पूरी तरह विस्फोटक बना दिया। उनकी शिकायत में मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की पत्नी रिनिकी भuyan शर्मा और चर्चित पत्रकार अर्नब गोस्वामी जैसे बड़े नामों के साथ-साथ श्यामकानु महंता और सिद्धार्थ सरमा का भी उल्लेख किया गया। इससे यह मामला सीधे असम की सत्ता और मीडिया के सबसे ऊँचे गलियारों तक पहुँच गया।
अंकुर हजारिका की शिकायत और मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप
अंकुर हजारिका ने बिस्था पुलिस स्टेशन में जो शिकायत दर्ज कराई है, उसमें साफ-साफ कहा गया है कि जुबिन गर्ग की मौत किसी हादसे का परिणाम नहीं थी। उनका दावा है कि यह मौत एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा है, जिसके पीछे फंड मिसमैनेजमेंट, मनी लॉन्ड्रिंग और सिंगापुर में हुए नॉर्थईस्ट फेस्टिवल की कथित लापरवाही जैसे गंभीर मुद्दे जुड़े हुए हैं। उनका कहना है कि जुबिन ने इन घोटालों से जुड़ी कई अहम जानकारियां हासिल कर ली थीं और वे इस बारे में बोलने या कदम उठाने की तैयारी में थे। यही बात कई लोगों के लिए खतरा बन गई थी। अंकुर का आरोप है कि इसी वजह से जुबिन को रास्ते से हटा दिया गया और उनकी मौत को नेचुरल बताने का पूरा इंतज़ाम किया गया। शिकायत में मुख्यमंत्री परिवार का नाम आने के बाद राजनीतिक हलकों में हड़कंप मचना स्वाभाविक था, क्योंकि आरोप सीधे सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों तक पहुंचते हैं।
मुख्यमंत्री परिवार के नाम से बढ़ता तूफ़ान और विपक्ष का हमला
किसी भी लोकतंत्र में यह अत्यंत गंभीर और असामान्य स्थिति होती है जब मुख्यमंत्री या उनके परिवार पर किसी साजिश या वित्तीय घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया जाए। असम में यही स्थिति बनी हुई है। जैसे ही रिनिकी भuyan शर्मा का नाम सार्वजनिक हुआ, विपक्ष ने सरकार को घेरने का काम तेज़ कर दिया। विपक्षी नेताओं ने सवाल उठाना शुरू कर दिया है कि जब जांच के घेरे में सत्ता के सबसे ताकतवर लोग आएंगे, तो क्या यह जांच निष्पक्ष रह पाएगी? विपक्ष का कहना है कि सरकार अपने प्रभाव और रसूख का इस्तेमाल करके सच्चाई को दबाने और मामले को मोड़ने की कोशिश कर सकती है। बीजेपी सरकार पहले से ही बोडोलैंड चुनावों में करारी हार से जूझ रही थी, और अब यह नया विवाद उसकी राजनीतिक साख को और कमजोर कर रहा है। जनता का गुस्सा इस बात से भी और भड़क रहा है कि जुबिन गर्ग जैसे लोकप्रिय और प्रिय कलाकार की मौत को हल्के में लिया जा रहा है और सच्चाई सामने लाने की बजाय सत्ता पक्ष इसे दबाने में लगा है।
पुलिस और केंद्र सरकार की भूमिका, अंतरराष्ट्रीय जांच की ज़रूरत
असम पुलिस ने इस हाई-प्रोफाइल शिकायत को दर्ज किए जाने की पुष्टि की है और कहा है कि मामले की जांच शुरू कर दी गई है। हालांकि, मुख्यमंत्री परिवार का नाम सामने आने के कारण इस केस पर राजनीतिक दबाव और संवेदनशीलता दोनों बेहद बढ़ गए हैं। असम की जनता और विपक्षी दलों को आशंका है कि पुलिस पर ऊपर से दबाव बनाकर जांच को कमजोर किया जा सकता है। इसी बीच केंद्र सरकार ने भी इस मामले में कदम उठाए हैं और सिंगापुर के साथ MLAT (Mutual Legal Assistance Treaty) लागू कर दिया है ताकि वहां से मेडिकल रिपोर्ट, घटनास्थल की जानकारियां और अन्य आवश्यक दस्तावेज़ भारत को मिल सकें। इसका मतलब है कि यह केस अब राज्य पुलिस की सीमा से बाहर जाकर अंतरराष्ट्रीय जांच का विषय बन गया है। जनता को उम्मीद है कि विदेशी एजेंसियों के सहयोग से असली सच्चाई सामने आएगी और दोषियों को बचाया नहीं जा सकेगा।
जुबिन की पत्नी गरिमा का बड़ा बयान और फास्ट-ट्रैक जांच की मांग
इस पूरे विवाद के बीच जुबिन गर्ग की पत्नी गरिमा गर्ग का बयान भी सामने आया, जिसने मामले को और संवेदनशील बना दिया। गरिमा ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि उन्हें हर उस शख्स पर शक है जो जुबिन की मौत के समय उनके आस-पास था। उन्होंने अपने पति के मैनेजर तक पर गंभीर सवाल उठाए और फास्ट-ट्रैक जांच की मांग की। गरिमा ने कहा कि “हमें सब पर शक है, हमें हर पहलू की सच्चाई जाननी है और हमें जल्द से जल्द न्याय चाहिए।” News18 और Navbharat Times की रिपोर्ट्स के मुताबिक, गरिमा ने साफ कहा है कि अगर सरकार सचमुच निर्दोष है तो उसे तुरंत पारदर्शी जांच के लिए कदम उठाना चाहिए। उनकी अपील ने जनता की भावनाओं को और ज्यादा भड़का दिया है क्योंकि जनता भी चाहती है कि जुबिन की मौत के पीछे की असली वजह सामने आए और दोषियों को कठोर सज़ा मिले।
जनता का गुस्सा और विपक्ष के सवाल
असम की गलियों, चौपालों और सभाओं में अब सिर्फ एक ही सवाल गूंज रहा है – “जुबिन के गुनहगार कौन हैं?”। जनता यह मानने को तैयार नहीं है कि इतनी बड़ी हस्ती की मौत केवल एक सामान्य हादसा थी। विपक्ष का आरोप है कि यह मौत सत्ता और पैसे के खेल की कीमत थी। विपक्षी नेताओं ने कहा है कि अगर सरकार निर्दोष है तो उसे इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में या सीबीआई से करानी चाहिए। लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता, जनता का शक और गुस्सा दोनों बढ़ता रहेगा। असम की जनता अब इस मामले को केवल जुबिन के परिवार का निजी संघर्ष नहीं, बल्कि अपने अधिकार और न्याय की सामूहिक लड़ाई के रूप में देख रही है।
लोकतंत्र और राजनीति की बड़ी परीक्षा
जुबिन गर्ग की रहस्यमय मौत अब केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं रही। यह मामला असम की राजनीति, लोकतंत्र और प्रशासनिक पारदर्शिता की सबसे बड़ी परीक्षा बन चुका है। सवाल यह है कि क्या सच सामने आएगा या सत्ता की ताकत सबूतों और न्याय दोनों को दबा देगी? जुबिन गर्ग का जाना असम के लिए एक सांस्कृतिक धरोहर की क्षति है, लेकिन उनकी मौत की सच्चाई दबाई गई तो यह लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था की सबसे बड़ी हार होगी।
जुबिन गर्ग की मौत ने पूरे असम को भावनात्मक रूप से झकझोरा है। यह केस अब सिर्फ़ एक गायक की मौत का नहीं, बल्कि जनता बनाम सत्ता की पारदर्शिता की लड़ाई बन चुका है। जनता की गूंज है – “जुबिन के गुनहगार कौन? और सच्चाई कब सामने आएगी?”