नई दिल्ली, 16 अक्टूबर 2025
कांग्रेस पार्टी की मुखर राष्ट्रीय प्रवक्ता और AICC सोशल मीडिया एवं डिजिटल प्लेटफॉर्म की चेयरपर्सन, सुप्रिया श्रीनेत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर एक तीखा और व्यंग्यपूर्ण हमला बोलते हुए कहा है कि जिस नारे “मोदी है तो मुमकिन है” को भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सफलताओं और संकल्पों की पहचान बताया था, आज वही नारा भारत की दुर्दशा, सामाजिक असमानता और संस्थागत अव्यवस्था का प्रतीक बन चुका है। अपने कठोर वक्तव्य में, सुप्रिया श्रीनेत ने आरोप लगाया कि सत्ता के मद में डूबी मोदी सरकार ने भारतीय लोकतंत्र को खोखला कर दिया है और अब उसकी राजनीति केवल अथक प्रचार, भय के वातावरण और विभाजनकारी एजेंडे पर टिकी हुई है। उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा, “आज भारत में अन्याय मुमकिन है, झूठ मुमकिन है, दमन मुमकिन है, और देश की बर्बादी भी मुमकिन है — क्योंकि मोदी हैं।” उनके अनुसार, यह नारा अब किसी उपलब्धि का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय विनाश और संवैधानिक संकट का प्रतीक बन चुका है, जिसने हर असंभव बुराई को संभव कर दिखाया है।
दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों पर अत्याचार: मोदी राज में न्याय की जगह अत्याचार का बोलबाला
सुप्रिया श्रीनेत ने देश में दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों की वर्तमान स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि मोदी सरकार के शासन में अगर कोई वर्ग सबसे ज़्यादा असुरक्षित और प्रताड़ित महसूस कर रहा है, तो वह यही समाज है। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी के शासनकाल में इन वंचित वर्गों पर होने वाले अत्याचारों में बेतहाशा वृद्धि हुई है, जहाँ न्याय का स्थान क्रूरता और अत्याचार के बोलबाले ने ले लिया है।
सुप्रिया ने कहा, “संविधान पर प्रहार मुमकिन है, नफ़रत का माहौल मुमकिन है, और समाज में भेदभाव की दीवारें खड़ी करना मुमकिन है।” उन्होंने मणिपुर में हुई भयावह हिंसा का उल्लेख करते हुए इसे “मोदी शासन की असंवेदनशीलता का जीवंत उदाहरण” बताया, जहाँ सरकार ने महीनों तक जलते हुए राज्य पर चुप्पी साधे रखी। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि प्रधानमंत्री खुद को भले ही “सबका साथ, सबका विकास” के सिद्धांत का पालन करने वाला नेता बताते हों, लेकिन उनके राज में वास्तविकता इसके बिल्कुल विपरीत है, जहाँ ‘सबका उत्पीड़न’ और केवल ‘कुछ खास लोगों का विकास’ ही हो रहा है।
विदेश नीति में विफलता और विकास के ढकोसले की पोल
कांग्रेस प्रवक्ता ने मोदी सरकार की विदेश नीति को राष्ट्रीय सम्मान के लिए एक चुनौती बताया। उन्होंने कहा कि एक तरफ़ चीन ने लद्दाख की भूमि पर अवैध कब्ज़ा कर लिया है और सरकार इस पर कोई स्पष्ट जवाब देने के बजाय चुप है, वहीं दूसरी ओर सरकार की विदेश नीति पूरी तरह से अमेरिकी प्रभाव और पश्चिमी दबाव के सामने झुक चुकी है, जिसने भारत की गरिमा और संप्रभुता को गिरवी रख दिया है। उन्होंने तंज़ कसते हुए कहा कि “चीन की घुसपैठ मुमकिन है, पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मुमकिन है, और आतंकवादियों के सामने झुकना भी मुमकिन है।”
इसके अतिरिक्त, सुप्रिया श्रीनेत ने मोदी सरकार के ‘विकास मॉडल’ की कड़ी आलोचना की, जिसका वास्तविक चेहरा उद्घाटन के कुछ ही महीनों बाद ढहते हुए इन्फ्रास्ट्रक्चर के रूप में सामने आता है। उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा कि “नई संसद की छत चूना मुमकिन है, एयरपोर्ट उद्घाटन के बाद टूटना मुमकिन है, फ्लाईओवर धंसना मुमकिन है, और रेल हादसों की भरमार मुमकिन है।” उनके अनुसार, यह सरकार केवल रिबन काटने, प्रचार करने और कैमरे के सामने मुस्कुराने में कुशल है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर न तो इन्फ्रास्ट्रक्चर सुरक्षित बचा है और न ही जनता का भरोसा, जो यह साबित करता है कि यह सरकार ‘विकास की बात’ करके ‘विनाश का परिणाम’ देती है।
किसान, युवा और महिला: सपनों का ‘अंतिम संस्कार’ और कर्ज़ में डूबा देश
सुप्रिया श्रीनेत ने मोदी शासन को किसानों, युवाओं और महिलाओं के लिए सबसे बड़ा संकट बताते हुए आरोप लगाया कि इस सरकार में किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर किया जा रहा है, महिलाएँ हिंसा और हवस का शिकार बन रही हैं, और युवा नौकरी माँगने के बदले लाठी खा रहे हैं। उन्होंने देश में 5 दशकों की सबसे ऊँची बेरोजगारी दर का उल्लेख करते हुए सरकार के “अमृतकाल” के जश्न पर सवाल उठाया और कहा, “MBA और PhD वाले चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन दे रहे हैं — यही है मोदीराज की ‘रोज़गार क्रांति’।”
उन्होंने अर्थव्यवस्था के भयानक हाल पर प्रकाश डालते हुए बताया कि आज देश 205 लाख करोड़ रुपये के कर्ज़ में डूबा हुआ है, जिसका मतलब है कि हर भारतीय पर औसतन 4.5 लाख रुपये का बोझ है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि जब आम परिवार अपनी आय का 25% हिस्सा सिर्फ़ कर्ज़ चुकाने में खर्च कर रहा हो और सरकार “5 ट्रिलियन इकोनॉमी” के हवाई सपने बेच रही हो, तो यह केवल जुमलेबाज़ी नहीं, बल्कि जनता के विश्वास की हत्या है, जिसके परिणामस्वरूप इन तीनों वर्गों के सपनों का ‘अंतिम संस्कार’ मुमकिन हो गया है।
घोटालों और दमन का ‘स्वर्णकाल’: लोकतंत्र की नीलामी और संवैधानिक संस्थाओं की धज्जियाँ
अपने अंतिम और सबसे गंभीर आरोपों में, सुप्रिया श्रीनेत ने मोदी सरकार पर संविधान की हत्या और लोकतंत्र की नीलामी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ED), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) और आयकर विभाग (Income Tax) जैसे संवैधानिक संस्थान आज भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक हथियार बनकर रह गए हैं। उन्होंने कहा कि “बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारी मुमकिन है, पत्रकारों की हत्या मुमकिन है, और संवैधानिक संस्थाओं की धज्जियाँ उड़ना मुमकिन है।” उन्होंने इलेक्टोरल बांड घोटाला, अडानी महाघोटाला और कथित ‘वोट चोरी’ जैसे अपराधों को मोदी शासन की पहचान बताया।
उनके अनुसार, “चुनाव आयोग अब ‘वोट चोरी आयोग’ बन गया है, और लोकतंत्र अब ‘इवेंट मैनेजमेंट’ में बदल गया है,” जहाँ सत्ताधारी पार्टी ने संविधान को गिरवी रखकर घोटालों और दमन का एक ऐसा ‘स्वर्णकाल’ स्थापित कर दिया है, जिसमें हर अराजकता और अन्याय मुमकिन है। अपने बयान का समापन करते हुए, सुप्रिया श्रीनेत ने तंज़ कसते हुए दोहराया, “देश का बर्बाद होना, मोदी है तो मुमकिन है,” और यह प्रण लिया कि कांग्रेस इस अंधकार के ख़िलाफ़ सच्चाई, संविधान और जनता के अधिकारों की लड़ाई हर स्तर पर लड़ेगी, क्योंकि “लोकतंत्र बिकाऊ नहीं, बल्कि बचाने योग्य है।”