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सुप्रीम कोर्ट सख्त: अदालतों में टॉयलेट की स्थिति पर नाराज़गी

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नई दिल्ली

17 जुलाई 2025

20 हाईकोर्ट को 8 हफ्ते में जवाब देने का आदेश

देशभर की अदालतों में टॉयलेट जैसी बुनियादी सुविधा की खराब हालत पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने नाराज़गी जताई है कि देश के 25 में से 20 हाईकोर्ट अब तक यह नहीं बता सके कि उन्होंने टॉयलेट सुविधाएं सुधारने के लिए क्या कदम उठाए हैं।

15 जनवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट, राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को आदेश दिया था कि अदालतों में पुरुष, महिला, दिव्यांग और ट्रांसजेंडर्स के लिए अलग-अलग टॉयलेट होने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उचित स्वच्छता संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है। अब कोर्ट ने 8 हफ्ते का अंतिम समय दिया है। यदि रिपोर्ट नहीं दी गई, तो संबंधित हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को सुप्रीम कोर्ट में पेश होना पड़ेगा। अब तक केवल 5 हाईकोर्ट ने सौंपी रिपोर्ट, बाकी 20 हाईकोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट की नजर है। 

सुप्रीम कोर्ट को अब तक जिन 5 हाईकोर्ट से रिपोर्ट मिली है, वे हैं:

  1. झारखंड हाईकोर्ट
  2. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
  3. कलकत्ता हाईकोर्ट
  4. दिल्ली हाईकोर्ट
  5. पटना हाईकोर्ट

बाकी 20 हाईकोर्ट अब तक चुप हैं। कोर्ट ने चेतावनी दी है कि रिपोर्ट जमा न करना अवमानना मानी जा सकती है। यह मामला वकील राजीब कलिता की जनहित याचिका से शुरू हुआ था, जिन्होंने अदालतों में टॉयलेट की खराब हालत पर ध्यान दिलाया। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा कि सम्मान के साथ जीने का अधिकार, स्वस्थ जीवन और साफ-सफाई की पहुंच जीवन के अधिकार का हिस्सा है। कोर्ट के स्पष्ट निर्देश था कि टॉयलेट हर नागरिक का हक है। तीन बड़े आदेश दिए गए, समिति भी बनाने को कहा गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट और राज्य सरकारों को 3 प्रमुख निर्देश दिए हैं:

  1. हर हाईकोर्ट में विशेष समिति बने, जिसकी अध्यक्षता एक सीनियर जज करें। इसमें सरकार, बार एसोसिएशन और संबंधित कर्मचारी शामिल हों।
  1. समिति यह मूल्यांकन करे कि प्रतिदिन कितने लोग अदालतों में आते हैं, और उसी हिसाब से टॉयलेट्स की संख्या निर्धारित की जाए।
  1. राज्य सरकारें बजट दें, ताकि टॉयलेट निर्माण, साफ-सफाई और रखरखाव सुनिश्चित किया जा सके।

कोर्ट ने कहा कि सिर्फ टॉयलेट बनाना काफी नहीं, उनकी नियमित सफाई और उपयोग में सुविधा होना ज़रूरी है। ऐसा नहीं हुआ तो सरकारें कल्याणकारी राज्य कहलाने के लायक नहीं रहेंगी।

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