नई दिल्ली, 30 जुलाई 2025 — विशेष रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा की उस याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है, जिसमें उन्होंने इन-हाउस जांच प्रक्रिया की वैधता को चुनौती दी है। इस जांच में उनके सरकारी आवास से बड़ी मात्रा में नकदी मिलने की पुष्टि हुई थी और इसके बाद उनके खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया है।
संविधान के दायरे से बाहर है इन-हाउस प्रक्रिया?
जस्टिस वर्मा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा विकसित की गई इन-हाउस जांच प्रक्रिया संविधान के तहत संसद को प्रदत्त न्यायाधीश हटाने की शक्ति को कमज़ोर करती है। उन्होंने इसे “एक समानांतर और अलोकतांत्रिक प्रणाली” बताया।
सिब्बल ने यह भी कहा कि इस प्रक्रिया में संवैधानिक अनुच्छेद 21 के तहत उचित प्रक्रिया का पालन नहीं होता, और जांच समिति द्वारा दोषी ठहराने की सिफारिश सार्वजनिक विश्वास को प्रभावित करती है।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया:
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह की पीठ ने कपिल सिब्बल से यह पूछा कि यदि उन्हें जांच प्रणाली असंवैधानिक लगी तो उन्होंने शुरुआत में ही इसका विरोध क्यों नहीं किया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इन-हाउस प्रक्रिया तीन दशकों से अधिक समय से प्रचलित है और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के जरिए स्थापित है, इसलिए यह “देश का कानून” मानी जाती है।
जस्टिस दत्ता ने यह भी कहा कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) की सिफारिश संसद पर बाध्यकारी नहीं होती, और अंतिम निर्णय सांसदों के विवेक पर निर्भर करता है।
जांच रिपोर्ट का लीक और सार्वजनिक छवि
सिब्बल ने आरोप लगाया कि कैश रिकवरी का वीडियो लीक होना इन-हाउस जांच की गोपनीयता का उल्लंघन है और इसने जनता के बीच पहले ही न्यायाधीश की छवि को नुकसान पहुंचाया है। इस पर कोर्ट ने सवाल उठाया कि इस लीक का कानूनी प्रभाव क्या है, और क्या यह संसद के निर्णय को प्रभावित कर सकता है।
FIR और सार्वजनिक बहस
एक अलग याचिका में अधिवक्ता मैथ्यूज जे. नेदुमपारा ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी। कोर्ट ने उनसे सवाल किया कि उन्होंने पहले पुलिस में औपचारिक शिकायत क्यों नहीं की। साथ ही कोर्ट ने यह भी पूछा कि उन्हें जांच रिपोर्ट की कॉपी कैसे प्राप्त हुई, जबकि यह गोपनीय दस्तावेज है।
संसद की तैयारी और विपक्ष की रणनीति
इस बीच संसद में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर चर्चा की तैयारी चल रही है। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने बताया कि 152 सांसदों ने प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों शामिल हैं। कांग्रेस ने 15 जुलाई को रणनीति तय करते हुए पहल की थी ताकि सरकार अकेले इस कार्रवाई का श्रेय न ले सके।
इस पूरे मामले ने न्यायपालिका की पारदर्शिता, संवैधानिक प्रक्रिया और संसद की भूमिका को लेकर एक महत्वपूर्ण बहस खड़ी कर दी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसला सुरक्षित रखने से पहले जो सवाल उठे, वे भारत की न्यायिक और संवैधानिक संरचना के भविष्य को लेकर गंभीर संकेत दे रहे हैं। अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर टिकी हैं जो यह तय करेगा कि क्या एक न्यायाधीश की जवाबदेही तय करने के लिए इन-हाउस जांच प्रणाली संवैधानिक सीमाओं में फिट बैठती है या नहीं।