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टाटा ग्रुप में फूट? ट्रस्टी बोले – ‘ऐसा पहले कभी नहीं हुआ…’

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नई दिल्ली 11 अक्टूबर 2025

टाटा ग्रुप के सबसे बड़े हिस्सेदार Tata Trusts के एक ट्रस्टी विजय सिंह ने हाल ही में यह खुलासा किया है कि उन्हें Tata Sons बोर्ड से बाहर कर दिया गया है — और इस निर्णय के पीछे उन्होंने एक गहरी दरार की ओर इशारा किया है। Singh ने कहा है कि Trusts के भीतर किसी मसले पर वोटिंग करना पहले “अनूठा” माना जाता था और यह परंपरा Ratan Tata द्वारा स्थापित “सम्मति और सर्वसम्मति” के सिद्धांत के खिलाफ है। 

विजय सिंह की यह अपमानजनक अनुभूति उस समय और गहरी हो जाती है, जब Tata Trusts में चार ट्रस्टी (Mehli Mistry समूह से जुड़े) ने Singh की पुनर्नियुक्ति का विरोध किया। Singh ने मीडिया से कहा कि वह उस मीटिंग में मौजूद नहीं थे, इसलिए उनके मत देने का सवाल ही नहीं उठता। 

यह घटना केवल एक व्यक्ति की लड़ाई नहीं है — यह उस मौजूदा संघर्ष का प्रतीक है जो समूह की विरासत और भविष्य की दिशा को लेकर Trusts के अंदर गहराता जा रहा है। चल रही लड़ाई में मुख्य विवाद बिंदु शामिल हैं:

Tata International Ltd (TIL) में निवेश का मसला — Noel Tata द्वारा समर्थित ₹1,000 करोड़ की फंडिंग पर कुछ ट्रस्टियों ने उचित परामर्श न किए जाने का आरोप लगाया है। 

Mehli Mistry समूह की शक्ति प्रस्तावना — उनका सुझाव है कि वह अपनी मर्ज़ी से Tata Sons बोर्ड में अपनी पैठ बढ़ाना चाहते हैं, जिसे Noel Tata समर्थक ट्रस्टियों ने विरोध किया है। 

Tata Sons की पब्लिक लिस्टिंग — शापूरजी पल्लोंजी समूह और अन्य हिस्सेदारों द्वारा Tata Sons को सार्वजनिक कंपनी बनाने का दबाव है, जबकि Trusts इसे नियंत्रित रखने में रुचि दिखा रहा है। 

इस आंतरिक संघर्ष ने अब केंद्र सरकार को भी सामने ला दिया है। गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने Tata Trusts और Tata Sons के वरिष्ठ नेतृत्व से मुलाकात की है, और स्पष्ट किया है कि समूह की स्थिरता बहाल करना आवश्यक है। 

अब सवाल यह उठता है — क्या Tata Trusts की भीतरू लड़ाई उस प्रतिष्ठा को हिला सकती है, जो दशकों से ‘मोरल कैपिटलिज़्म’ की मिसाल रहा है?

 

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