पश्चिम बंगाल की राजनीति एक बार फिर चौराहे पर खड़ी है — और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दुर्गापुर दौरा महज़ विकास योजनाओं की घोषणा नहीं था, यह सत्ता परिवर्तन की गूंज थी। इस मंच से एक तरफ उन्होंने स्टील सिटी को विकास सिटी में बदलने की योजना का रोडमैप जनता को सौंपा, तो दूसरी ओर ममता बनर्जी सरकार को सीधे चुनौती दी — मुद्दा चाहे महिला सुरक्षा हो, घुसपैठ हो, या बेरोजगारी।
प्रधानमंत्री ने मंच से एक वाक्य में बहुत कुछ कह दिया — “जो सरकार वोट बैंक के लिए घुसपैठियों को शह दे, वो बंगाल की जनता का भला नहीं कर सकती।” यह वाक्य अब बंगाल के गांव-गांव में चर्चा का विषय बनेगा।
सवाल विकास का है, लेकिन जवाब राजनीतिक
5,400 करोड़ की योजनाएं, गैस पाइपलाइन से लेकर एयरपोर्ट और रेलवे ओवरब्रिज तक… ये सब पश्चिम बंगाल को ‘इंफ्रास्ट्रक्चर सुपरपावर’ बनाने के लिए ज़रूरी हैं। लेकिन पीएम ने इस मंच का इस्तेमाल सिर्फ योजनाओं के शिलान्यास तक सीमित नहीं रखा। उनका असल लक्ष्य था — राज्य की जनता को यह याद दिलाना कि केंद्र सरकार तो दौड़ा रही है, पर राज्य सरकार ब्रेक लगा रही है।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि 2026 का विधानसभा चुनाव तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच एक निर्णायक युद्ध की शक्ल ले चुका है। लेकिन जो बात बंगाल की राजनीतिक पिच पर सबसे अलग दिख रही है, वह है ‘विकसित भारत’ का विमर्श।
मोदी सरकार अब बंगाल में भी वही नैरेटिव सेट कर रही है, जो देश के बाकी हिस्सों में काम कर चुका है — “वोट बैंक नहीं, विकास चाहिए।”
घुसपैठ, बेरोजगारी और महिला असुरक्षा: सीधा आरोप
- बंगाल में घुसपैठियों को दी जा रही शह
- महिला सुरक्षा के मोर्चे पर राज्य सरकार की लाचारी
- युवाओं के पलायन को राज्य सरकार की विफलता बताया
इन सभी बिंदुओं में सबसे अहम था घुसपैठ का मुद्दा, जिसे भाजपा एक लंबे समय से राष्ट्रीय सुरक्षा और पहचान से जोड़कर पेश करती रही है। जब प्रधानमंत्री इस बात को चुनाव से ठीक पहले दुर्गापुर से दोहराते हैं, तो यह महज़ चुनावी भाषण नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा बन जाता है।
क्या तृणमूल कांग्रेस की ज़मीन खिसक रही है?
ममता बनर्जी की सरकार अब एक दशक से ज़्यादा समय से सत्ता में है। लेकिन बीते कुछ सालों में जिस तरह हिंसा, भ्रष्टाचार, टीचर भर्ती घोटाले, और अब घुसपैठ जैसे मुद्दों पर सवाल खड़े हुए हैं — उससे ये साफ है कि सत्ता की जमीन हिल रही है। दुर्गापुर में प्रधानमंत्री का भाषण इस संदेश के साथ आया: “अब बंगाल का विकास दिल्ली से होकर आएगा, न कि कोलकाता के पार्टी दफ्तर से।” भाषण का प्रभाव केवल राजनीतिक नहीं, मनोवैज्ञानिक भी है। जब जनता यह महसूस करती है कि “देश आगे बढ़ रहा है, पर हम पीछे रह गए”, तो बदलाव की भावना और तेज़ होती है। यानी चुनावी बिगुल बज चुका है। मोदी का दुर्गापुर दौरा चुनावी घोषणापत्र नहीं, बल्कि चुनौती-पत्र था। ममता बनर्जी की चुप्पी या जवाबी रैली अब अहम होगी। विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के लिए भी यह चेतावनी है कि बंगाल अब उतना सहज नहीं रह गया जितना 2021 में था। इस वक्त मैदान तैयार है, घुसपैठ से लेकर गैस पाइपलाइन तक मुद्दे साफ हैं।
बंगाल का चुनाव अब महज़ राजनीतिक सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि दो विज़न की टक्कर बन चुका है। एक तरफ “विकास आधारित, सुरक्षा-केंद्रित, राष्ट्रवादी शासन” है — दूसरी ओर “स्थानीय पहचान, क्षेत्रीय स्वाभिमान और ममता स्टाइल राजनीति”। 2026 में बंगाल क्या चुनेगा, यह तो भविष्य बताएगा, लेकिन इतना तय है कि दुर्गापुर से जो बिगुल फूंका गया है — वो दीदी राज की नींव को हिला जरूर रहा है।