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खाड़ी में असुरक्षा की आहट: दोहा पर इज़रायली हमले ने तोड़ी अमेरिकी भरोसे की दीवार

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नई दिल्ली 14 सितम्बर 2025

स्थिरता का भ्रम और नया यथार्थ

खाड़ी क्षेत्र को अब तक एक स्थिर भू-राजनीतिक इकाई की तरह देखा जाता था। तेल संपदा, रणनीतिक स्थान और अमेरिकी छतरी ने दशकों तक इस क्षेत्र को युद्ध से अपेक्षाकृत सुरक्षित रखा। लेकिन कतर की राजधानी दोहा पर इज़रायली हमले ने यह यथार्थ तोड़ दिया है। यह घटना साफ़ संकेत है कि अब खाड़ी में युद्ध और कूटनीति के बीच की दूरी मिट चुकी है। यह सिर्फ़ एक सैन्य कार्रवाई नहीं थी, बल्कि खाड़ी की सामूहिक सुरक्षा और वैश्विक संतुलन पर सीधा प्रहार था।

हमले का संदेश: सुरक्षित दूरी का भ्रम टूटा

गाज़ा संघर्ष को पहले एक भौगोलिक रूप से सीमित युद्ध माना जा रहा था, लेकिन जब उसका असर सीधे कतर तक पहुँचा, तो यह भ्रम चकनाचूर हो गया। कतर ने वर्षों से मध्यस्थ और संतुलनकारी शक्ति की हैसियत बनाई थी। लेकिन ये हमला यह बताने के लिए काफी है कि मध्यस्थता की ताक़त भी तब बेमानी हो जाती है जब आपकी खुद की संप्रभुता ही सुरक्षित न हो। सवाल यही है कि क्या आज के बाद कोई भी खाड़ी राजधानी ख़ुद को पूरी तरह सुरक्षित मान सकती है?

एकता की मजबूरी, विकल्पों की सीमाएँ

जीसीसी (GCC) देशों ने दोहा हमले की निंदा की और एकता की बात कही, लेकिन व्यावहारिक धरातल पर उनके पास सीमित विकल्प हैं। वे राजनयिक दबाव बना सकते हैं, निवेशों को हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं और सामूहिक सुरक्षा बल को सक्रिय कर सकते हैं, लेकिन हर विकल्प की अपनी सीमाएँ हैं। जिस GCC सेना को Peninsula Shield Force कहा जाता है—उसकी क्षमता अब तक केवल औपचारिक समझौतों और अभ्यासों तक ही सिमटी रही है। सैन्य वास्तविकता यह है कि खाड़ी की पूरी रक्षा अब भी अमेरिकी अड्डों और हथियारों पर टिकी है। यानी घोषणाएँ ज़ोरदार हो सकती हैं, पर कार्रवाई अभी भी कठिन है।

अमेरिका पर भरोसे का संकट

खाड़ी की सुरक्षा गारंटी का आधार वर्षों से अमेरिका रहा है। लेकिन क्या यह भरोसा वास्तव में स्थायी है? इतिहास गवाह है कि अमेरिका की प्राथमिकताएँ बार-बार बदली हैं। कभी आतंकवाद विरोध अमेरिका की नीति का केंद्र रहा, फिर तेल पर नियंत्रण उसके लिए प्राथमिक रहा, और आज इज़रायल की सुरक्षा उसकी निर्णायक प्राथमिकता बन चुकी है। ऐसे में खाड़ी यह समझने लगी है कि अमेरिकी गारंटी हित-आधारित है, स्थायी नहीं। दोहा पर हमला इस सच्चाई को और उजागर करता है।

अमेरिकी गारंटी की सीमाएँ और आत्मचिंतन

दोहा का अनुभव यह बताता है कि अमेरिकी सुरक्षा गारंटी एक conditional promise है, जो किसी भी क्षण अमेरिकी चुनावी राजनीति या रणनीतिक संतुलन का शिकार हो सकती है। खाड़ी देशों का सबसे बड़ा भ्रम यही था कि अमेरिकी छतरी उन्हें हर हाल में बचाएगी। अब तक वे अपनी सैन्य स्वायत्तता के बजाय अमेरिकी बेसों और हथियारों में निवेश करते रहे। लेकिन दोहा ने दिखा दिया कि यदि अमेरिका अपने घरेलू दबाव में पीछे हट जाए, तो पूरी संरचना रेत की दीवार की तरह गिर सकती है।

आत्मनिर्भर रक्षा क्षमता की आवश्यकता

किसी भी देश की राह सुरक्षित तभी होती है, जब उसके पास खुद की रक्षा व्यवस्था हो। खाड़ी देशों के लिए यह अब विकल्प नहीं, बल्कि ज़रूरत है। महंगे हथियार खरीदने से वास्तविक सुरक्षा नहीं मिलती, जब तक स्थानीय प्रशिक्षित सेनाएँ, स्पष्ट कमांड ढाँचे और रणनीतिक स्वतंत्रता न हो। दोहा ने यह जता दिया है कि आत्मनिर्भर सेना ही वह ताक़त है, जो खाड़ी की कूटनीति को वजनदार बनाएगी। जिस दिन ये देश अपनी सुरक्षा पर दूसरों से ज़्यादा खुद भरोसा करेंगे, उसी दिन उनकी अंतरराष्ट्रीय स्थिति भी मज़बूत होगी।

आर्थिक और सॉफ्ट पावर पर असर

खाड़ी की असली ताक़त केवल तेल या हथियारों में नहीं, बल्कि उसकी सॉफ्ट पावर—निवेशों और मध्यस्थ की पहचान—में रही है। कतर ने विशेषकर मध्यस्थता और खेल कूटनीति के जरिए वैश्विक साख बनाई थी। लेकिन यदि घरेलू सुरक्षा ढाँचा कमजोर साबित हुआ, तो यह सॉफ्ट पावर भी खोखली हो सकती है। निवेशकों और राजनयिक भागीदारों के लिए सबसे पहला सवाल यही होगा—”क्या यहाँ स्थिरता है?”। दोहा पर हमला इस स्थिरता की छवि को बुरी तरह प्रभावित करता है।

चुनौतियाँ और बाधाएँ

खाड़ी में आत्मनिर्भर रक्षा के रास्ते में अनेक बाधाएँ हैं। अपार संसाधन होने के बावजूद राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी बार-बार दिखती है। आपसी अविश्वास और वर्चस्व की होड़ सहयोगी रक्षा बल की संभावना को कमजोर करती है। सबसे कठिन चुनौती यह है कि क्या ये देश अमेरिका और पश्चिम की नाराज़गी मोल लेकर आत्मनिर्भरता की राह पर बढ़ेंगे? अमेरिकी उद्योग और हथियार लॉबी इसकी राह में सबसे बड़ा अवरोध होंगी। फिर भी यह फैसला खाड़ी को लेना ही होगा।

निर्णायक मोड़ और एकता की परीक्षा

दोहा हमला खाड़ी को एक निर्णायक मोड़ पर लाता है। या तो वह प्रतिक्रियाशील क्षेत्र बनकर रह जाए, जो हमेशा किसी न किसी वैश्विक शक्ति पर निर्भर हो, या फिर आत्मनिर्भर होकर दुनिया के सामने अपने सुरक्षा मॉडल का निर्माण करे। यह एकता की भी परीक्षा है—क्या जीसीसी देशों की एकता केवल बयानबाज़ी तक सीमित रहेगी या वास्तविक सैन्य और कूटनीतिक कदमों में बदलेगी। इतिहास को यह तय करना है कि खाड़ी भविष्य की दिशा कैसे चुनता है।

निष्कर्ष: भविष्य का रास्ता

दोहा पर हमला सिर्फ़ एक घटना नहीं, बल्कि पूरे खाड़ी के लिए चेतावनी साबित हुआ है। यह बताता है कि स्थिरता का भ्रम जितना आकर्षक हो, असल हक़ीक़त उतनी ही कठोर होती है। अमेरिकी भरोसा बदलते समय में भरोसेमंद नहीं रह सकता। आत्मनिर्भर सुरक्षा ढाँचा, पेशेवर सेनाएँ, राजनीतिक इच्छाशक्ति और साझा रणनीति—यही वह तत्व हैं, जो खाड़ी के भविष्य को तय करेंगे।

आज खाड़ी के सामने सीधा विकल्प है—या तो वह सुरक्षा के लिए दूसरों पर निर्भर रहने वाला असुरक्षित क्षेत्र बने रह जाए, या फिर आत्मनिर्भर होकर विश्व राजनीति में ताक़तवर खिलाड़ी की तरह उभरे। दोहा पर हमला इस दिशा में पहला स्पष्ट संकेत है कि आत्मनिर्भरता ही असली सुरक्षा है।

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