पटना/ नई दिल्ली 17 अक्टूबर 2025
तेजस्वी यादव ने जैसे ही नौकरी देने का ऐलान किया, बीजेपी नेताओं की आत्मा तक हिल गई। अचानक वही लोग, जिन्होंने कभी हर खाते में 15 लाख डालने और हर साल दो करोड़ नौकरियाँ देने का वादा किया था, अब बिहार की आर्थिक गणित समझाने लगे हैं। जो खुद वायदे की फैक्ट्री और जुमलों की प्रयोगशाला चलाते हैं, वे अब दूसरों के घोषणापत्र में झूठ ढूंढ रहे हैं। तेजस्वी यादव का बयान बिहार के युवाओं के हक़ और उम्मीद का प्रतीक है, पर बीजेपी को यह बात पच नहीं रही। क्योंकि इस घोषणा ने उनके झूठे दावों के ताबूत पर आखिरी कील ठोंक दी है।
15 लाख का झूठ — जनता के विश्वास की डकैती
बीजेपी का सबसे बड़ा छल, सबसे बड़ा झूठ, और सबसे बड़ी ठगी रही है — हर खाते में 15 लाख रुपये डालने का वादा। यह वही वादा था जिसने देश की भोली जनता को सपनों में सोने की लकीरें दिखाईं। पर जब सत्ता मिली, तो हकीकत सामने आई — “वो तो चुनावी जुमला था।” मोदी जी ने खुद यह कबूल किया। करोड़ों लोगों ने बैंक खाते खोले, कागज़ जमा किए, कतारों में खड़े रहे, लेकिन एक पैसा तक नहीं मिला। ये सिर्फ एक झूठ नहीं, बल्कि करोड़ों गरीबों के आत्मसम्मान के साथ किया गया मज़ाक था। यह वह पल था जब विश्वास मरा, और जुमले का युग जन्मा।
2 करोड़ नौकरियाँ हर साल — अब बेरोज़गारी का समंदर
जब नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वे हर साल दो करोड़ नौकरियाँ देंगे, तो युवाओं ने उम्मीदों के दीप जलाए थे। लेकिन आज, 11 साल बाद, सच्चाई यह है कि भारत में बेरोज़गारी दर 5.2% (सितंबर 2025) पर पहुँच चुकी है। ग्रामीण बेरोज़गारी अपने उच्चतम स्तर पर है। 22 करोड़ नौकरियों का वादा, 22 करोड़ सपनों का मज़ाक बन गया। सरकारी नौकरियाँ घट गईं, ठेकेदारी बढ़ गई, और प्राइवेट सेक्टर ने भर्ती रोक दी। यह वो “अच्छे दिन” हैं जहाँ डिग्रीधारक चाय बेच रहे हैं, और डिग्निटी वाले लोग ठेले।
काला धन वापसी — वादा स्विस बैंकों में दफ़न हुआ
बीजेपी ने कहा था कि वे काला धन वापस लाएँगे, और हर नागरिक को उसका हिस्सा देंगे। पर अब आँकड़े कहते हैं कि 2014 की तुलना में 2024 में स्विस बैंकों में भारतीयों का जमा धन तीन गुना बढ़ा है। यानी धन वापस नहीं आया, उल्टा और भाग गया। यह साबित करता है कि काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक नहीं, बल्कि झूठ की नोटबंदी हुई थी।
काला धन वापस लाने की बात तो दूर, सरकार ने कभी यह तक नहीं बताया कि उसका अनुमान कितना है। यह सिर्फ एक जुमला था, चुनावी मंच का हथियार था, और जनता के विश्वास पर किया गया एक सुनियोजित हमला।
मेक इन इंडिया — पर रोजगार “टेक इन चाइना”
2014 में मोदी जी ने बड़े-बड़े मंचों से कहा था कि भारत को “मैन्युफैक्चरिंग हब” बनाएंगे। मेक इन इंडिया का शेर उछाला गया, पर नतीजा यह हुआ कि देश में फैक्टरियाँ बंद हुईं और मोबाइल तक चीन में बनने लगे। सरकारी डेटा बताता है कि “मेक इन इंडिया” के तहत कोई बड़ा निवेश नहीं आया। Manufacturing GDP 17% से घटकर 14% तक आ गया। यानी “मेक इन इंडिया” नहीं, “Fake in India” निकला। विदेशी कंपनियाँ भागीं, देशी उद्योग ठप हुए, और रोजगार के नाम पर कागज़ी बुलेटिन ही छपे।
किसानों की आय दोगुनी — वादों की मौत की घोषणा
बीजेपी ने 2016 में कहा था कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी कर देंगे। अब 2025 है — किसान की आय नहीं, बल्कि उसकी हताशा दोगुनी हो चुकी है। PM किसान योजना की किस्तें कई राज्यों में अटकी पड़ी हैं। खेती का खर्च बढ़ गया, डीज़ल, खाद, बीज सब महंगे हो गए।
साल 2024 की NCRB रिपोर्ट बताती है कि किसान आत्महत्याएँ बढ़ी हैं। जो पार्टी किसानों को “अन्नदाता” कहती है, उसने उन्हें “आत्महत्या का आंकड़ा” बना दिया।
यह वही पार्टी है जिसने दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसानों को आतंकवादी कहा था।
महंगाई — अच्छे दिन का जला हुआ विज्ञापन
बीजेपी ने कहा था “महंगाई घटाएँगे” — पर जनता को मिला महंगाई का पहाड़। गैस सिलेंडर ₹410 से ₹1200, पेट्रोल ₹54 से ₹98, डीज़ल ₹46 से ₹92, और दाल ₹60 से ₹190 किलो। महिलाओं की रसोई जल रही है, और सरकार “विकास” का नारा लगा रही है। गरीब की थाली से दाल गायब है, और मंत्री जी विदेश में निवेशकों को बुला रहे हैं। “अच्छे दिन” की जगह अब “महंगाई वाले दिन” चल रहे हैं। बीजेपी के झूठ ने जनता की रसोई का स्वाद छीन लिया।
हर घर में पक्का मकान — कागज़ पर बने सपनों के घर
“प्रधानमंत्री आवास योजना” के तहत हर घर में पक्का मकान देने की बात कही गई थी — 2022 तक। लेकिन 2025 तक लाखों आवेदन अब भी लंबित हैं। जिन्हें घर चाहिए, उन्हें सर्वे का वादा मिला। जिनके पास पहले से घर हैं, उन्हें सर्टिफिकेट मिला। योजना पर प्रचार ज़्यादा, काम कम हुआ। बीजेपी ने “हर घर मकान” को “हर चैनल विज्ञापन” में बदल दिया। यह विकास नहीं, प्रोपेगेंडा का कंक्रीट जंगल था।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ — लेकिन सुरक्षा कहाँ है?
बीजेपी ने इस नारे को सबसे ऊँचा बनाया। पर सच ये है कि 2024 की NCRB रिपोर्ट के मुताबिक, हर दिन 90 बलात्कार दर्ज होते हैं। महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर ₹1800 करोड़ प्रचार पर खर्च हुए, पर रक्षा पर नहीं। 5rकिसी बेटी को पढ़ाई या सुरक्षा नहीं मिली, सिर्फ पोस्टर और फोटोशूट मिले। हाथरस, उन्नाव, मनिपुर — सब जगह बेटियों की चीखें “बेटी बचाओ” की पॉलिसी को शर्मिंदा करती हैं। यह नारा अब “बेटी बचाओ, बीजेपी से बचाओ” में बदल गया है।
अमित शाह जी, सवालों से भागिए मत
आज जब तेजस्वी यादव नौकरी की बात करते हैं, तो बीजेपी नेता आंकड़े गिनाने लगते हैं। पर जब मोदी जी ने 15 लाख और 2 करोड़ नौकरियों की बात की थी, तब कौन सा “बजट विश्लेषण” किया गया था? तेजस्वी जी से पूछने से पहले, अमित शाह जी को यह जवाब देना चाहिए —
15 लाख कहाँ गए? काला धन किस खाते में पहुँचा?
22 करोड़ नौकरियाँ कहाँ हैं? बुलेट ट्रेन कहाँ दौड़ी?
किसान की आय कहाँ दोगुनी हुई? महंगाई क्यों तीन गुनी हुई? यह वही सवाल हैं जो अब देश पूछ रहा है — और जवाब सिर्फ “मौन” है।
जुमलों की सरकार, जवाबदेही की कब्रगाह
बीजेपी ने देश को नारा दिया — “सबका साथ, सबका विकास” पर अब नारा बन गया है — “सबका विश्वास, सबका विनाश।” जनता अब समझ चुकी है कि यह पार्टी जुमलों से चलती है, जवाबदेही से नहीं। तेजस्वी यादव के रोजगार वादे से जिन्हें दर्द हो रहा है, वे वही हैं जिनके अंदर 72 छेद हैं — छलनी से ज़्यादा छलावे वाले। बीजेपी अब जुमलों के बोझ तले दब चुकी है। देश का युवा अब पूछ रहा है — ‘ मेंटर हमें रोजगार चाहिए, नारे नहीं; विकास चाहिए, विश्वासघात नहीं।”