Home » National » सर सैयद डे: एक रोशनी जिसने पूरे हिंदुस्तान को जगाया — ज्ञान और इंसानियत के मशालची की कहानी

सर सैयद डे: एक रोशनी जिसने पूरे हिंदुस्तान को जगाया — ज्ञान और इंसानियत के मशालची की कहानी

Facebook
WhatsApp
X
Telegram

अलीगढ़/ नई दिल्ली 17 अक्टूबर 2025

 17 अक्टूबर — जब ज्ञान की मशाल ने एक नई सुबह की घोषणा की

हर साल 17 अक्टूबर का दिन भारत और दुनिया भर के इतिहास में ज्ञान, साहस और दूरदर्शिता के एक अमर प्रतीक को समर्पित है — सर सैयद अहमद ख़ान। यह दिन मात्र एक जन्मदिन नहीं है; यह एक शक्तिशाली विचार का पुनरुत्थान है, यह एक क्रांति का उत्सव है, और उस असाधारण आंदोलन की याद है जिसने उन्नीसवीं सदी के भारत के मुसलमानों और व्यापक रूप से वंचित समाज के लिए एक नई सुबह की शुरुआत की। आज, चाहे आप लंदन के साहित्यिक मंचों पर हों, लाहौर की अकादमिक बहसों में, दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में, या दुबई के व्यापारिक केंद्रों में, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) से जुड़े छात्र, शिक्षक और पूर्व छात्र एक ही भावना और संकल्प से कहते हैं — “हम हैं सर सैयद के सिपाही, और कलम हमारी सबसे बड़ी तलवार है।” यह दिन हमें याद दिलाता है कि शिक्षा एक धर्मनिरपेक्ष उपकरण है, और ज्ञान की मशाल से बड़ी कोई ताकत दुनिया में नहीं है।

 सर सैयद अहमद ख़ान — अंधेरे में दीपक जलाने वाला दूरदर्शी और समाज सुधारक

साल 1817 में दिल्ली की उस धरती पर एक ऐसे बच्चे ने जन्म लिया, जिसने आगे चलकर भारत के इतिहास की दिशा बदल दी और अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में अमर कर दिया। वह दौर बेहद निराशाजनक था; भारत ब्रिटिश गुलामी की जंजीरों में कसकर बंधा हुआ था, आधुनिक शिक्षा का उजाला केवल उच्च वर्ग के कुछ सीमित लोगों तक ही पहुँचता था, और भारतीय समाज धार्मिक कट्टरता, अंधविश्वास और सामाजिक जड़ता के घने कोहरे में उलझा हुआ था। सर सैयद ने अपनी दूरदर्शी आँखों से यह कड़वी सच्चाई पहचान ली थी कि अगर मुसलमान समुदाय को 1857 के विद्रोह की विफलता के बाद खुद को निराशा और पिछड़ेपन के गर्त से बाहर निकालना है, तो उन्हें अनिवार्य रूप से आधुनिक विज्ञान, तकनीक और पश्चिमी दर्शन को अपनाना होगा। उन्होंने एक सरल लेकिन क्रांतिकारी संदेश दिया: “किताबें हमारी बंद आँखें खोल सकती हैं, अगर हम उन्हें पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर पढ़ें।” इसी विश्वास के साथ, उन्होंने अलीगढ़ आंदोलन की शुरुआत की — एक ऐसा महान आंदोलन जिसने ज्ञान की क्रांति छेड़ी और सदियों के अंधकार को चुनौती दी।

अलीगढ़ आंदोलन — शिक्षा को पूजा का दर्जा देने वाली बदलाव की मज़बूत बुनियाद

सर सैयद अहमद ख़ान को यह भली-भाँति पता था कि केवल भाषणों और आश्वासनों से समाज आगे नहीं बढ़ता। इसलिए, उन्होंने सबसे पहले शिक्षा को समाज सुधार का सबसे शक्तिशाली उपकरण बनाया। इसी दूरदर्शिता के तहत, उन्होंने 1875 में एक छोटे से लेकिन ऐतिहासिक स्कूल की नींव रखी, जिसे मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल स्कूल (MAO School) के नाम से जाना गया। इस स्कूल की स्थापना का उद्देश्य केवल पढ़ाई कराना नहीं था, बल्कि पश्चिमी विज्ञान को इस्लामी मूल्यों के साथ एकीकृत करके एक नया शिक्षित वर्ग तैयार करना था। यह छोटा स्कूल आगे चलकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) बना — एक ऐसी पवित्र जगह जहाँ धर्म, जाति या पंथ के बजाय केवल ज्ञान और इंसानियत को ही सर्वोपरि माना गया। सर सैयद ने अपने इस संस्थान के माध्यम से यह साबित कर दिया कि कलम की ताकत किसी भी शासक की तलवार से कहीं अधिक शक्तिशाली होती है, क्योंकि कलम पीढ़ियों को बदलती है।

 अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी — ज्ञान, संस्कृति और अनुशासन का जीता-जागता ताजमहल

वर्ष 1919 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) की औपचारिक स्थापना ने सर सैयद के सपने को एक मूर्त रूप दिया। यह केवल एक विश्वविद्यालय नहीं है; यह एक अनूठी संस्कृति, एक प्रगतिशील विचार और एक कठोर अनुशासन का जीता-जागता प्रतीक है। यहाँ की ऐतिहासिक लाल ईंटों वाली भव्य इमारतें, पुराने होस्टल (जिन्हें हॉल कहा जाता है), विशाल सेंट्रल लाइब्रेरी, प्रसिद्ध सर सैयद हॉल, और प्रतिष्ठित स्ट्रेची हॉल — सब कुछ भारत के आधुनिक शैक्षणिक इतिहास की एक गौरवशाली गवाही देते हैं। AMU वह पावन जगह है जहाँ पुराने रूढ़िवादी विचार दम तोड़ते हैं, नए विचार जन्म लेते हैं, छात्रों में संस्कार गढ़े जाते हैं, और यहीं से शिक्षित होकर निकले लोग समाज को सही दिशा देने का काम करते हैं। यहाँ का वातावरण छात्रों को राष्ट्रीय चरित्र, धर्मनिरपेक्षता और वैज्ञानिक सोच की भावना में ढालता है।

AMU की पहचान — विविधता में एकता और ‘सोचने की आज़ादी’

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की सबसे बड़ी और स्थायी पहचान यह है कि इसने अपने दरवाज़े कभी भी धर्म, जाति या क्षेत्र के आधार पर बंद नहीं किए। यहाँ हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई — सभी धर्मों के छात्र एक साथ बैठते हैं, पढ़ते हैं, तर्क-वितर्क करते हैं और आजीवन चलने वाले दोस्ती के मज़बूत बंधन बनाते हैं। AMU का एक पुराना और प्रेरणादायक नारा है — “Taught to serve, not to rule” (यानी यहाँ छात्रों को सत्ता चलाने की नहीं, बल्कि समाज की सेवा करने की भावना सिखाई जाती है)। AMU का माहौल छात्रों को बौद्धिक रूप से इतना मजबूत करता है कि वे हर बात पर सवाल उठाएँ, अपने विचार व्यक्त करें और एक आलोचनात्मक सोच विकसित करें। यही “अलीगढ़ स्पिरिट” है — जहाँ असहमति को भी सभ्यता का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, और यह सिखाया जाता है कि मतभेद नहीं, बल्कि परिपक्व और सम्मानपूर्ण संवाद ही हमारे लोकतंत्र की सच्ची ताकत है।

सर सैयद का अमर संदेश — “शिक्षा ही असली इबादत है और कौम की तरक्की का रास्ता”

सर सैयद का मूल विश्वास एक पत्थर की तरह अटल था कि “कौम की तरक्की शिक्षा के बिना नामुमकिन है।” उन्होंने उस दौर के समाज को बड़ी हिम्मत के साथ यह समझाया कि केवल धार्मिक शिक्षा से नहीं, बल्कि आधुनिक विज्ञान, तकनीक, कानून, प्रशासन, इतिहास और प्रगतिशील विचारों से ही मुसलमान और पूरा भारत आगे बढ़ सकता है। उनका स्पष्ट मत था कि धार्मिक शिक्षा आवश्यक है, लेकिन वह आधुनिक शिक्षा की जगह नहीं ले सकती। उन्होंने एक बार कहा था — “अगर तुम दुनिया में सम्मान के साथ आगे बढ़ना चाहते हो, तो कलम को अपना साथी बनाओ, तलवार को नहीं।” यह सार्वभौमिक विचार आज भी AMU के हर छात्र के दिल में एक प्रेरणा बनकर बसता है। यह संदेश भारत के प्रत्येक युवा के लिए प्रासंगिक है कि चाहे आप किसी भी धर्म या जाति के हों, ज्ञान ही वह कुंजी है जो आपके भविष्य के सभी ताले खोल सकती है।

 अलीगढ़ से निकले वो सितारे जिन्होंने देश और दुनिया को रोशन किया

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने भारत और दुनिया को असंख्य ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तित्व दिए हैं, जिन्होंने हर क्षेत्र में AMU का नाम रौशन किया है। AMU से निकले इन ‘अलीगढ़ियों’ ने यह साबित कर दिया कि सर सैयद का सपना कितना व्यापक था। इस प्रतिष्ठित संस्थान से निकले कुछ महान नाम आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं: भारत के तीसरे राष्ट्रपति जाकिर हुसैन; पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान; स्वतंत्रता सेनानी और भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद; जामिया हमदर्द के संस्थापक सैयद हमीद; भारत के उपराष्ट्रपति रहे जस्टिस मोहम्मद हिदायतुल्लाह; प्रसिद्ध मार्क्सवादी इतिहासकार इरफान हबीब; भारतीय सिनेमा के चमकते सितारे शबाना आज़मी, नसीरुद्दीन शाह और जावेद अख्तर; वर्तमान में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान; और भारत की हरित क्रांति (Green Revolution) के वास्तुकारों में से एक एम.एस. स्वामीनाथन। यह सूची इतनी लंबी है कि हर देश में, हर क्षेत्र में कोई न कोई “अलीगढ़ी” अपनी वैज्ञानिक, कलात्मक, या प्रशासनिक छाप छोड़ रहा है।

दुनियाभर में फैला अलीगढ़ परिवार और 17 अक्टूबर का भावनात्मक संकल्प

सर सैयद अहमद ख़ान ने जो पौधा रोपा था, वह आज एक विशाल वटवृक्ष बन चुका है, जिसकी जड़ें पूरी दुनिया में फैली हुई हैं। आज दुनिया के लगभग हर महाद्वीप के हर प्रमुख शहर में सक्रिय AMU Alumni Associations मौजूद हैं — चाहे वह अमेरिका हो, सऊदी अरब हो, इंग्लैंड हो, या सिंगापुर। हर साल 17 अक्टूबर को, ये पूर्व छात्र बड़े जोश, सम्मान और भावनात्मक एकता के साथ “Sir Syed Day” मनाते हैं। इस दिन, वे एक-दूसरे से मिलते हैं, अपने शिक्षकों और गुरुओं को याद करते हैं, और सबसे महत्वपूर्ण बात, वे यह संकल्प लेते हैं कि वे समाज में शिक्षा, सद्भाव और इंसानियत की मशाल को बुझने नहीं देंगे। यह एक अत्यंत भावनात्मक दिन होता है — जहाँ हर पूर्व छात्र के दिल में अलीगढ़ होता है, और होंठों पर सर सैयद का नाम होता है, जो उन्हें उनकी जिम्मेदारियों की याद दिलाता है।

 सर सैयद की विरासत — आज भी विचारों की प्रयोगशाला और सद्भाव का प्रतीक

सर सैयद का सपना केवल मुस्लिम समुदाय की प्रगति तक सीमित नहीं था। वे वास्तव में चाहते थे कि भारत का हर बच्चा — चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम — पढ़े और तरक्की करे, और देश को विश्व गुरु बनाए। उन्होंने कहा था: “अगर हिंदुस्तान को आगे बढ़ाना है, तो हिंदू और मुसलमान दोनों को मिलकर, एक होकर चलना होगा।” उनकी यह सोच अपने समय से बहुत आगे, पूरी तरह से सेक्युलर, आधुनिक और प्रगतिशील थी। आज जब कुछ ताकतें समाज में नफ़रत और विभाजन के बीज बोने की नापाक कोशिश करती हैं, तब सर सैयद की शिक्षाएँ और AMU का सद्भाव भरा माहौल और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है। AMU आज केवल एक विश्वविद्यालय नहीं है; यह विचारों की एक जीवंत प्रयोगशाला है, जहाँ हर ईंट में इतिहास है, हर दीवार में प्रेरणा है, और हर छात्र में सर सैयद की सच्ची आत्मा का अंश मौजूद है, जो उन्हें एक जिम्मेदार, विचारशील और राष्ट्र-प्रेमी नागरिक बनाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *