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ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी का झटका: बंगाल का ‘डाब-चिंगरी’ न्यूयॉर्क की थालियों से हो सकता है गायब

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कोलकाता 9 सितम्बर 2025

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई टैरिफ नीति ने भारतीय झींगा उद्योग को गहरा आघात पहुंचाया है, खासकर पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध व्यंजन ‘डाब-चिंगरी’ (ताजा नारियल के पानी में पकाया गया झींगा करी) को। जुलाई 2025 में लागू हुए 25% आयात शुल्क को अगस्त में अतिरिक्त 25% बढ़ाकर कुल 50% (कुछ मामलों में एंटी-डंपिंग ड्यूटीज सहित 58% तक) कर दिया गया है। इससे अमेरिकी बाजार में भारतीय झींगे की कीमतें 15-20% तक बढ़ सकती हैं, जिसके चलते न्यूयॉर्क, लॉस एंजिल्स और अन्य शहरों के भारतीय रेस्टोरेंट्स में यह लोकप्रिय बंगाली डिश मेन्यू से धीरे-धीरे गायब हो सकती है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2026 में भारत के झींगा निर्यात में 15-18% की गिरावट आ सकती है, जिससे $5 बिलियन से अधिक का व्यापार जोखिम में पड़ गया है।

अमेरिकी बाजार पर निर्भर भारतीय झींगा उद्योग: आंकड़ों की पड़ताल

भारत विश्व का सबसे बड़ा झींगा निर्यातक है, और अमेरिका इसका सबसे बड़ा खरीदार। 2024 में, भारत ने अमेरिका को लगभग 648 मिलियन पाउंड (लगभग 2.94 लाख मीट्रिक टन) झींगा निर्यात किया, जिसकी कीमत $2.3 बिलियन (करीब 19,200 करोड़ रुपये) थी। यह अमेरिकी झींगा आयात का 38-40% हिस्सा है। पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और ओडिशा जैसे तटीय राज्य इस उद्योग के केंद्र हैं, जहां 10 लाख से अधिक किसान और मजदूर झींगा पालन से जुड़े हैं। बंगाल में ‘डाब-चिंगरी’ जैसे व्यंजनों के लिए वैनमे (व्हाइटलेग श्रिंप) की मांग खासतौर पर अधिक है, जो अमेरिकी प्रवासी भारतीयों और रेस्टोरेंट्स में बेहद लोकप्रिय है।

हालांकि, 2025 के पहले छमाही (जनवरी-जून) में भारत का कुल झींगा निर्यात 3.46 लाख मीट्रिक टन रहा, जो पिछले वर्ष से 4% अधिक था, और मूल्य में 13% की वृद्धि ($3.5 बिलियन से अधिक) दर्ज की गई। लेकिन टैरिफ लागू होने के बाद जुलाई-अगस्त में व्यापार लगभग रुक-सा गया। अमेरिकी आयातक अब वियतनाम (जिसका हिस्सा 20% है) या थाईलैंड जैसे प्रतिस्पर्धियों की ओर रुख कर रहे हैं, जहां टैरिफ कम हैं। कुल मिलाकर, भारत का समुद्री खाद्य निर्यात 2024 में $7.7 बिलियन था, जिसमें झींगा का योगदान 63% है—अमेरिका ही इसका 50% से अधिक हिस्सा लेता है।

किसानों और निर्यातकों की बढ़ी चिंता: आर्थिक असर का विस्तृत विश्लेषण

झींगा पालन करने वाले किसानों के लिए यह संकट गंभीर है। उत्पादन लागत पहले से ही ऊंची (प्रति किलो 200-250 रुपये) है—बीज, चारा, बिजली और श्रम पर निर्भर। टैरिफ के बाद निर्यातक किसानों को मिलने वाले दामों में 20% की कटौती कर रहे हैं, जिससे लाभ मार्जिन लगभग शून्य हो गया है। पश्चिम बंगाल के सुंदरबन और दक्षिण 24 परगना जिले के हजारों छोटे किसान, जो 1-2 एकड़ के तालाबों पर निर्भर हैं, सबसे अधिक प्रभावित हैं। एक अनुमान के अनुसार, यदि निर्यात 15-18% गिरा, तो किसानों की आय में 25-30% की कमी आ सकती है, जिससे 2-3 लाख नौकरियां जोखिम में पड़ सकती हैं।

उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश (भारत के झींगा उत्पादन का 60%) के किसान पहले से ही 25% प्रारंभिक टैरिफ से निपट रहे थे, लेकिन अब 50% टैरिफ ने स्थिति बिगाड़ दी है। कई किसान मछली पालन या अन्य फसलों की ओर मुड़ने की सोच रहे हैं, लेकिन यह संक्रमण महंगा और जोखिम भरा है। निर्यातकों को भी नुकसान: अनुबंध टूटने से $1-1.5 बिलियन का अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है। CRISIL की रिपोर्ट के मुताबिक, उद्योग की मार्जिन 5-7% से घटकर 1-2% रह सकती है, और स्टॉक मार्केट में झींगा निर्यातक कंपनियों (जैसे अवanti फीड्स) के शेयर 12% तक लुढ़क चुके हैं। कुल आर्थिक असर: भारत के GDP में 0.1-0.2% की हानि, मुख्य रूप से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर।

वैश्विक प्रतिस्पर्धा का असर: बाजार हिस्सेदारी पर खतरा

अमेरिका में भारतीय झींगे महंगे होने से वियतनाम (2024 में US को 25% आपूर्ति), थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे देश फायदा उठा सकते हैं। ये देश कम लागत (प्रति किलो 150-200 रुपये) और कम टैरिफ (10-15%) का लाभ लेते हैं। यदि टैरिफ बने रहे, तो भारत अपनी US बाजार हिस्सेदारी को 40% से घटाकर 25-30% तक खो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि वैकल्पिक बाजार जैसे यूरोप या चीन ढूंढना मुश्किल होगा, क्योंकि वहां भी मांग सीमित है और गुणवत्ता मानक सख्त। लंबे समय में, यह भारतीय झींगा उद्योग की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को कमजोर कर सकता है।

भारतीय व्यंजनों की पहचान पर संकट: सांस्कृतिक आयाम

‘डाब-चिंगरी’ केवल एक डिश नहीं, बल्कि बंगाली संस्कृति का प्रतीक है—पूजा-पाठ और पारिवारिक भोज का हिस्सा। अमेरिकी प्रवासी समुदाय (लगभग 4 मिलियन भारतीय-अमेरिकी) के लिए यह घर की याद दिलाता है। लेकिन टैरिफ से रेस्टोरेंट्स कीमतें बढ़ाने को मजबूर होंगे (प्रति प्लेट $25 से $30 तक), जिससे मांग घटेगी। इससे न केवल आर्थिक नुकसान होगा, बल्कि भारतीय पाक-परंपरा की वैश्विक पहुंच पर भी असर पड़ेगा। न्यूयॉर्क के प्रसिद्ध बंगाली रेस्टोरेंट्स जैसे ‘सोना’ या ‘बंगाली स्वीट हाउस’ पहले से ही मेन्यू बदलने की सोच रहे हैं।

भारत सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण

कुल मिलाकर, ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी (जो रूस से तेल खरीदने और हथियार सौदों पर केंद्रित है) ने भारतीय झींगा उद्योग के सामने अभूतपूर्व चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। किसानों की आजीविका, निर्यात अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक निर्यात सभी जोखिम में हैं। अब सभी की नजरें भारत सरकार की कूटनीतिक प्रयासों पर हैं—क्या मोदी प्रशासन WTO में शिकायत करेगा या द्विपक्षीय वार्ता से राहत दिला पाएगा? यदि टैरिफ कम नहीं हुए, तो उद्योग को $1 बिलियन से अधिक का वार्षिक नुकसान हो सकता है।

 

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