अडानी साम्राज्य और आरोपों का सिलसिला
भारत की अर्थव्यवस्था में सबसे प्रभावशाली उद्योगपति गौतम अडानी का नाम पिछले ढाई दशकों में बार-बार विवादों में घिरा रहा है। अडानी समूह पर लगे आरोप केवल व्यावसायिक नहीं, बल्कि वित्तीय व्यवस्था, नीति निर्माण, और राजनीतिक संरक्षण से जुड़ी गहरी चिंताओं को जन्म देते हैं। चाहे वह मनी लॉन्ड्रिंग का मामला हो, बैंक घोटाले, शेल कंपनियों के जरिए फर्जी लेनदेन, रिश्वतखोरी या शेयर हेराफेरी — लगभग हर दशक में अडानी समूह का नाम किसी न किसी बड़े विवाद में उभरता रहा है। और यह विडंबना है कि जहाँ अन्य देशों में ऐसे आरोपों पर तत्काल कार्रवाई होती, भारत में सब कुछ “सब चलता है” के अंदाज़ में आगे बढ़ता रहा।
केतन पारेख शेयर हेराफेरी घोटाला (1999-2001)
इस घोटाले में अडानी प्रमोटर्स पर आरोप था कि उन्होंने स्टॉक मार्केट के कुख्यात ब्रोकर केतन पारेख के साथ मिलकर अडानी एंटरप्राइजेज के शेयरों की कीमतें कृत्रिम रूप से बढ़ाईं। यह हेराफेरी लगभग $75 मिलियन की बताई गई, जिसमें 14 निजी कंपनियों के माध्यम से सर्कुलर ट्रेडिंग की गई थी। SEBI ने इस पर कार्रवाई करते हुए कंपनी पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन बाद में मामूली जुर्माने के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। यह घटना दर्शाती है कि कैसे प्रभावशाली कॉर्पोरेट समूह अपनी ताकत से वित्तीय नियामकों के शिकंजे से बच निकलते हैं।
डायमंड ट्रेडिंग घोटाला (2004-2006)
राजेश अडानी और समीर वोरा पर आरोप था कि उन्होंने UAE, सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग की शेल कंपनियों के माध्यम से हीरे के आयात और निर्यात में फर्जीवाड़ा किया। उन्होंने ₹6.8 अरब का फर्जी निर्यात क्रेडिट क्लेम किया, जबकि असल में कोई व्यापार नहीं हुआ था। जांच में स्पष्ट हुआ कि यह “सर्कुलर ट्रेडिंग” का मामला था — यानी वस्तुएं केवल कागज़ों पर घूम रही थीं। राजेश अडानी की गिरफ्तारी भी हुई, लेकिन बाद में न केवल उन्हें छोड़ दिया गया, बल्कि समूह में उच्च पद पर पदोन्नति दी गई। यह घटना बताती है कि कॉर्पोरेट अपराधों के लिए हमारे देश में दंड नहीं, बल्कि इनाम मिलता है।
आयरन ओर निर्यात रिश्वत घोटाला (2011)
कर्नाटक में अवैध खनन और निर्यात के सबसे बड़े मामलों में से एक में अडानी समूह का नाम सामने आया। आरोप था कि आयरन ओर निर्यात के हर जहाज के लिए अधिकारियों को ₹50,000 रिश्वत दी जाती थी। यह रिश्वत ₹600 अरब के बड़े घोटाले का हिस्सा थी, जिसकी पुष्टि राज्य ओम्बड्समैन की रिपोर्ट में भी हुई। रिपोर्ट में अडानी को इस अवैध निर्यात नेटवर्क के “मुख्य लाभार्थी” के रूप में चिन्हित किया गया। परंतु, कार्रवाई की जगह यहाँ भी मौन बरता गया — न सज़ा, न जवाबदेही।
पावर उपकरण ओवर-इनवॉइसिंग घोटाला (2014)
2014 में डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (DRI) ने खुलासा किया कि अडानी समूह ने UAE की डमी कंपनियों के माध्यम से पावर प्रोजेक्ट्स के उपकरणों की कीमतें कृत्रिम रूप से बढ़ाईं। विनोद अडानी द्वारा नियंत्रित इन कंपनियों के जरिए ₹39.74 अरब की ओवर-वैल्यूएशन की गई, जिससे करीब $900 मिलियन विदेशी खातों में ट्रांसफर हुए। यह रकम बाद में मॉरीशस की शेल कंपनियों में निवेश के रूप में दिखाई गई। जांच ने यह साबित किया कि यह एक सुनियोजित मनी लॉन्ड्रिंग का मामला था, लेकिन कोई ठोस दंडात्मक कार्रवाई नहीं हुई।
इंडोनेशियन कोल ओवर-इनवॉइसिंग (2016)
यह मामला अडानी समूह के ऊर्जा कारोबार से जुड़ा है, जहाँ इंडोनेशिया से आयातित कोयले की कीमतों को 50 से 100 प्रतिशत तक बढ़ाकर दिखाया गया। इससे न केवल बिजली दरें कृत्रिम रूप से महंगी हुईं, बल्कि सार्वजनिक धन का भी दुरुपयोग हुआ। जांच में पाया गया कि दुबई और सिंगापुर की शेल कंपनियों के जरिए पैसे को इधर-उधर किया गया। DRI ने मामले में जांच शुरू की, लेकिन राजनीतिक दबावों के कारण फाइलें फिर से बंद कर दी गईं।
1MDB फ्रॉड से जुड़ी शेल इकाइयां (2015-2019)
अमिकॉर्प नामक फंड मैनेजमेंट कंपनी ने अडानी समूह के लिए मॉरीशस, साइप्रस और UAE में शेल कंपनियाँ स्थापित कीं। इन्हीं के ज़रिए लगभग $4.5 अरब की रकम का लेनदेन किया गया, जो मलेशिया के चर्चित 1MDB घोटाले से जुड़ा था। इन पैसों का उपयोग अडानी समूह के स्टॉक्स में गुप्त निवेश के लिए किया गया। अंतरराष्ट्रीय जांच एजेंसियों ने इसे मनी लॉन्ड्रिंग की श्रेणी में रखा, लेकिन भारत में फिर वही चुप्पी — “कानून सबके लिए समान” का दावा यहाँ ढह जाता दिखा।
हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट (जनवरी 2023)
इस रिपोर्ट ने अडानी साम्राज्य की साख को वैश्विक स्तर पर हिला दिया। अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग ने आरोप लगाया कि अडानी समूह ने शेयर मैनिपुलेशन, ऑफशोर टैक्स हेवन्स का दुरुपयोग, और अकाउंटिंग फ्रॉड किया है। रिपोर्ट आने के बाद अडानी की कंपनियों की मार्केट वैल्यू $104 अरब तक गिर गई। यह रिपोर्ट भारत के कॉर्पोरेट सेक्टर में पारदर्शिता पर सबसे बड़ा सवाल बनकर सामने आई, पर फिर वही कहानी — जांच शुरू हुई, पर निष्कर्ष गायब।
OCCRP ऑफशोर फंड्स रिपोर्ट (अगस्त 2023)
Organized Crime and Corruption Reporting Project (OCCRP) की इस रिपोर्ट ने खुलासा किया कि अडानी परिवार ने मॉरीशस फंड्स के ज़रिए अपनी ही कंपनियों में निवेश किया। यह प्रत्यक्ष रूप से इनसाइडर ट्रेडिंग और शेयर हेराफेरी का मामला था। रिपोर्ट ने बताया कि यह पूरा खेल अडानी समूह के शेयरों के भाव बढ़ाने और निवेशकों को भ्रमित करने के लिए रचा गया था। SEBI ने जांच का वादा किया, लेकिन अभी तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया।
कोल प्राइस इन्फ्लेशन घोटाला (2023-2024)
इस ताज़ा मामले में अडानी समूह पर आरोप है कि उन्होंने घटिया गुणवत्ता के कोयले को उच्च गुणवत्ता बताकर 50 से 100 प्रतिशत तक कीमतें बढ़ाईं। यह धोखाधड़ी दुबई और सिंगापुर की शेल कंपनियों के माध्यम से की गई। OCCRP और Financial Times की रिपोर्टों ने यह मामला उजागर किया। नतीजा यह हुआ कि बिजली कंपनियों ने आम उपभोक्ताओं पर महंगे टैरिफ का बोझ डाला, जबकि अडानी समूह ने अरबों की कमाई की।
अमेरिकी रिश्वत और सिक्योरिटीज फ्रॉड अभियोग (नवंबर 2024)
नवंबर 2024 में अमेरिकी न्याय विभाग (US DOJ) और सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (SEC) ने अडानी समूह और उसके 8 अधिकारियों पर $250 मिलियन की रिश्वत देने और सोलर एनर्जी कॉन्ट्रैक्ट्स में धोखाधड़ी के आरोप लगाए। यह मामला अमेरिकी कानून के तहत फॉरेन करप्ट प्रैक्टिस एक्ट का उल्लंघन था। इस आरोप के बाद अडानी की कंपनियों की मार्केट वैल्यू $28 अरब तक गिर गई। हालांकि भारत में फिर वही पुरानी कहानी — “विदेशी साज़िश” का तर्क और “देश का सम्मान बचाने” की आड़ में जिम्मेदारी से बचाव।
क्या भारत में कानून सबके लिए समान है?
इन सभी घोटालों से यह साफ झलकता है कि अडानी समूह के खिलाफ आरोप केवल वित्तीय अनियमितताओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह भारत के न्याय और नियामक तंत्र की सीमाओं को भी उजागर करते हैं। जहाँ किसी साधारण व्यापारी के लिए एक मामूली कर चोरी पर भी जेल तय होती है, वहीं अडानी जैसे बड़े नाम कानून की धारा से अछूते रहते हैं। यह सवाल केवल अडानी पर नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर है — क्या भारत में कानून वास्तव में सबके लिए समान है, या कुछ लोगों के लिए सिर्फ एक दिखावा?
 

 


