चंडीगढ़/ नई दिल्ली 18 अक्टूबर 2025
दिल्ली और पूरे उत्तर भारत की पुलिस बिरादरी में एक अभूतपूर्व हड़कंप मच गया है — IPS अधिकारी पूरन कुमार सिंह के मामले में अब जो विस्फोटक और चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं, उन्होंने न केवल व्यक्तिगत रूप से इस अधिकारी के साथ हुए व्यवहार, बल्कि पूरे कानूनी और पुलिसिंग तंत्र की साख पर गहरे और अपूरणीय सवाल खड़े कर दिए हैं। विश्वसनीय सूत्रों और प्राथमिक जांचों से मिली जानकारी के अनुसार, पूरन सिंह पूरे पाँच दिनों (5 Days) तक एक अज्ञात स्थान से ‘लापता’ रहे, और अब इस पर एक सनसनीखेज खुलासा हुआ है कि यह कोई सामान्य गुमशुदगी या प्रशासनिक छुट्टी का मामला नहीं था — बल्कि यह “इनक्वायरी के नाम पर की गई गैरकानूनी हिरासत (Illegal Detention)” का एक गंभीर मामला हो सकता है, जिसने ‘गिरफ्तारी’ और ‘अपहरण’ के बीच की कानूनी रेखा को पूरी तरह से धुंधला दिया है। इस पूरी घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जब कानून के रक्षक खुद ही कानून के भक्षक बन जाते हैं, तो व्यवस्था कितनी खोखली और व्यक्तिगत बदले की भावना से प्रेरित हो सकती है।
पूछताछ नहीं, किडनैपिंग जैसी कार्रवाई! — मानसिक प्रताड़ना और कबूलनामे का दबाव
सामने आई जानकारी के अनुसार, IPS पूरन कुमार सिंह को शराब कारोबारियों से कथित रूप से वसूली (Extortion) करने के आरोप में पूछताछ के लिए उठाया गया था, लेकिन पूछताछ की प्रक्रिया ने जो रूप लिया, उसने पूरे कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों को ही सवालों के घेरे में ला दिया है। यह कहा जा रहा है कि पूछताछ के नाम पर, सिंह को ग़ैरक़ानूनी रूप से हिरासत में रखा गया, जहाँ उन्हें अमानवीय माहौल में रखा गया, मानसिक रूप से तोड़ा गया और एक निर्धारित स्क्रिप्ट के तहत गुनाह कबूलने का भयंकर दबाव डाला गया।
सबसे गंभीर बात यह है कि पूरे पाँच दिनों की इस लंबी अवधि के दौरान, न उन्हें कानूनी रूप से अनिवार्य मैजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, न उन्हें किसी बाहरी व्यक्ति या वकील से मिलने दिया गया, और न ही उनके चिंतित परिवार को उनकी सही लोकेशन या स्वास्थ्य के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी दी गई। यह सब कुछ ऐसे दौर में हुआ है जब देश के हर पुलिस थाने में सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार CCTV कैमरे और डिजिटल लॉग सिस्टम अनिवार्य हैं — फिर भी, इन पाँच दिनों की हिरासत या गतिविधि की कोई भी वैध रिकॉर्डिंग उपलब्ध नहीं है, जिससे यह कार्रवाई क़ानून के राज का सीधा उल्लंघन सिद्ध होती है।
सीसीटीवी फुटेज गायब — किसने मिटाए सबूत और क्यों यह एक सिस्टमेटिक कवर-अप है?
इस पूरे सनसनीखेज घटनाक्रम का सबसे विस्फोटक और आपराधिक मोड़ सीसीटीवी फुटेज का ‘गायब’ होना है। सूत्रों का स्पष्ट कहना है कि जिस अज्ञात या गुप्त स्थान पर पूरन सिंह को कथित रूप से अवैध हिरासत में रखा गया था, उस अवधि की सभी सीसीटीवी फुटेज ‘गायब’ या ‘ओवरराइट’ हो चुकी हैं। यह सवाल अब सिर्फ़ एक विभागीय जांच का नहीं रहा, बल्कि यह एक संवैधानिक चुनौती बन गया है कि जब पुलिस विभाग खुद ही गंभीर आरोपों के घेरे में है, तो सबूतों का इस तरह से सुनियोजित गायब होना क्या सीधे तौर पर एक “सिस्टमेटिक कवर-अप” नहीं कहलाएगा?
इस पूरे घटनाक्रम ने पुलिस विभाग के भीतर की ‘साइलेंट डिसिप्लिन’ (Silent Discipline) और ‘कोड ऑफ कंडक्ट’ पर भी गहरी चोट की है, क्योंकि एक सीनियर IPS अधिकारी के साथ इस तरह का अमानवीय, नियम-विरुद्ध और आपराधिक व्यवहार न केवल भ्रष्टाचार की हदें पार करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सत्ता की परतों के नीचे कानून और निर्धारित प्रक्रियाएँ कितनी नाज़ुक, विकृत और व्यक्तिगत प्रतिशोध के आगे बेमानी हो चुकी हैं।
‘कहां रखा गया था पूरन?’ — पाँच दिनों का रहस्य और संविधानिक आपदा
IPS पूरन सिंह के पाँच दिनों तक गायब रहने का यह रहस्य अभी तक नहीं सुलझा है कि उन्हें वास्तव में कहाँ रखा गया था और किसके आदेश पर यह पूरी गैरकानूनी कार्रवाई की गई थी। न उनके परिवार को कोई सूचना थी, न उन्हें कानूनी सलाह या वकील से मिलने दिया गया। यह पूरा मामला अब भारतीय लोकतंत्र और कानूनी शासन के समक्ष एक संविधानिक आपदा की तरह सामने आ रहा है, क्योंकि किसी भी अधिकारी या नागरिक को बिना कोर्ट वारंट, औपचारिक एफआईआर या न्यायिक आदेश के इतने लंबे समय तक गुप्त और अवैध हिरासत में रखना मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन और एक गंभीर अपराध है।
यदि ये आरोप सही पाए गए और यह सिद्ध हुआ कि पुलिस तंत्र ने जानबूझकर कानून को तोड़ा है, तो यह न केवल पुलिस व्यवस्था की निष्पक्षता, बल्कि पूरी न्याय प्रणाली की नींव पर एक काला और अमिट धब्बा साबित होगा, जिससे आम नागरिकों का कानून पर से विश्वास उठ सकता है।
जांच की मांग तेज़, विपक्षी और मानवाधिकार संगठनों का प्रहार
इस सनसनीखेज घटना के बाद, IPS एसोसिएशन के कई वरिष्ठ और ईमानदार सदस्यों ने सार्वजनिक रूप से आकर इस पूरे घटनाक्रम की निष्पक्ष और स्वतंत्र न्यायिक जांच की मांग की है। देश के प्रमुख विपक्षी दलों ने इस कार्रवाई को “कानूनी तानाशाही” और “सत्ता के दुरुपयोग” का चरम उदाहरण बताया है। वहीं, मानवाधिकार संगठनों ने भी कड़े बयान जारी करते हुए कहा है कि — “अगर कानून के रक्षक ही खुद कानून तोड़ेंगे और अपराधियों की तरह व्यवहार करेंगे, तो इस देश में न्याय का क्या अर्थ रह जाएगा?”
पूरन सिंह के परिवार का कहना है कि उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से भयंकर प्रताड़ित किया गया, ताकि वे उच्च अधिकारियों के निर्देशानुसार तैयार किए गए ‘स्क्रिप्टेड बयान’ पर हस्ताक्षर कर दें। यह मामला अब केवल एक अधिकारी की जांच का नहीं रहा है, बल्कि यह सिस्टम के भीतर व्याप्त सड़ांध को उजागर करने वाली एक राष्ट्रीय बहस बन चुका है।
सवाल बड़ा है: क्या सिस्टम अपने ही ईमानदार अफ़सरों को निगल रहा है?
IPS पूरन कुमार सिंह का केस अब किसी एक व्यक्ति की त्रासदी नहीं रहा है — यह भारतीय संस्थागत पतन (Institutional Decay) का एक खतरनाक और भयावह प्रतीक बन चुका है। जब देश में कानून की रक्षा करने वाले हाथों से ही अन्याय और प्रतिशोध की गूंज सुनाई देने लगे, तो यह समझना चाहिए कि व्यवस्था अपने नैतिक आधार पर सड़ चुकी है।
पूरन कुमार सिंह की यह दुखद कहानी इस देश के हर उस ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अफ़सर की कहानी बन चुकी है, जो भ्रष्टाचार या राजनीतिक दबाव के खिलाफ खड़ा होता है, सिस्टम से टकराता है, और फिर वही भ्रष्ट सिस्टम उसे मिटाने या दबाने के लिए गैरकानूनी और अमानवीय हथकंडे अपनाना शुरू कर देता है। यह मामला सत्ता और नैतिकता के बीच की खाई को स्पष्ट रूप से उजागर करता है और जवाबदेही की मांग करता है।