नई दिल्ली
22 जुलाई 2025
राजनीतिक हस्तक्षेप बनाम संस्थागत स्वायत्तता की बहस फिर गर्म
सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को एक बेहद महत्वपूर्ण बहस देखने को मिली, जब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच प्रक्रियाओं को लेकर अदालत ने तल्ख टिप्पणी की। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई के दौरान सवाल उठाया, “क्या प्रवर्तन निदेशालय को राजनीतिक लड़ाइयों के लिए एक औजार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है?” इस सवाल ने राजनीतिक गलियारों के साथ-साथ कानूनी हलकों में भी गहरी हलचल पैदा कर दी है।
इस टिप्पणी की पृष्ठभूमि में विपक्षी नेताओं द्वारा दायर की गई याचिकाएं थीं, जिनमें आरोप लगाया गया था कि केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करके राजनीतिक विरोधियों को निशाना बना रही है। याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने कोर्ट को बताया कि ईडी की कार्रवाइयों में प्रक्रियागत पारदर्शिता की भारी कमी है और गिरफ्तारियों से पहले पुख्ता साक्ष्य का अभाव होता है। याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि यह केवल वित्तीय अनियमितताओं की जांच नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रतिशोध का एक स्वरूप है, जिसे “कानूनी आवरण” में प्रस्तुत किया जा रहा है।
मुख्य न्यायाधीश ने इस पर स्पष्ट रुख दिखाते हुए कहा, “राजनीतिक लड़ाईयों को कोर्ट के दरवाज़े पर लाना खतरनाक चलन है। अगर ईडी जैसी संस्था पर संदेह पैदा होता है, तो उसका असर केवल एक केस तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरी संस्थागत साख पर पड़ेगा।” कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि अगर किसी संस्था का राजनीतिकरण होता है, तो लोकतंत्र की नींव कमजोर हो जाती है।
इस पर जवाब देते हुए भारत सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को आश्वस्त करते हुए कहा कि, “यह एक सुनियोजित प्रयास है — जिसमें प्रवर्तन निदेशालय और अन्य स्वतंत्र संस्थाओं की छवि को धूमिल किया जा रहा है।” उन्होंने कहा कि बार-बार संस्थाओं पर संदेह जताना और सार्वजनिक मंचों पर उनके खिलाफ विमर्श चलाना केवल जांच को बदनाम करने और जनता के बीच भ्रम फैलाने की रणनीति है। सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा कि ईडी की अधिकांश जांचें तथ्यात्मक आधार पर होती हैं और अदालतें पहले भी इसके कामकाज को वैध ठहरा चुकी हैं।
उन्होंने जोर देते हुए कहा कि ईडी केवल कानून के मुताबिक अपना कार्य करती है, और यदि किसी को जांच प्रक्रिया में आपत्ति है, तो उसके लिए कानूनी रास्ते खुले हैं। उन्होंने इसे “जनता को भड़काने और संस्थाओं की वैधता को कमजोर करने का एक खतरनाक प्रयास” बताया।
यह बहस ऐसे समय में सामने आई है, जब कई विपक्षी नेता और क्षेत्रीय दल लगातार आरोप लगा रहे हैं कि ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स जैसी संस्थाएं विपक्ष को कमजोर करने के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं। इन आरोपों की राजनीतिक और सामाजिक गूंज इतनी व्यापक हो गई है कि अब न्यायपालिका को भी इस पर टिप्पणी करनी पड़ी है।
अब सुप्रीम कोर्ट के आगे की कार्यवाही तय करेगी कि जांच एजेंसियों की स्वायत्तता बनाम राजनीतिक दखल की इस बहस में कानून का पलड़ा किस ओर झुकेगा। फिलहाल, इतना स्पष्ट है कि संस्थाओं की निष्पक्षता और लोकतंत्र की पारदर्शिता को लेकर देश में एक नया विमर्श तेज़ी से उभर रहा है, और अदालत उसकी धुरी बन गई है।