इस्लामाबाद/रियाध, 19 सितम्बर 2025
पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुआ नया रणनीतिक पारस्परिक रक्षा समझौता (Strategic Mutual Defence Pact) पूरे मध्य-पूर्व में हलचल मचा रहा है। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री खवाज़ा मोहम्मद आसिफ ने ऐलान किया है कि इस समझौते के तहत ज़रूरत पड़ने पर सऊदी अरब को पाकिस्तान की परमाणु क्षमता (nuclear capability) उपलब्ध कराई जाएगी।
परमाणु छत्र की पेशकश
खवाज़ा आसिफ ने साफ कहा – “पाकिस्तान के पास जो कुछ है, वह इस रक्षा समझौते के तहत सऊदी अरब के लिए उपलब्ध होगा।” यह बयान संकेत देता है कि रियाध को पाकिस्तान की परमाणु छत्रछाया (nuclear umbrella) हासिल हो सकती है। यह पहली बार है कि इस तरह का खुला ऐलान आधिकारिक स्तर पर किया गया है।
समझौते की अहम बातें
- दोनों देशों ने वादा किया कि किसी एक पर हमला, दोनों पर हमला माना जाएगा।
- इसमें सैन्य प्रशिक्षण, हथियारों का साझा उपयोग और संयुक्त रक्षा तंत्र शामिल हैं।
- आसिफ ने दावा किया कि यह समझौता रक्षात्मक है, आक्रामक नहीं।
- साथ ही, उन्होंने इशारा किया कि अन्य अरब देश भी इस समझौते में शामिल हो सकते हैं।
परमाणु हथियार या केवल सुरक्षा गारंटी?
हालाँकि, समझौते के टेक्स्ट में परमाणु हथियारों के हस्तांतरण का सीधा ज़िक्र नहीं है। आसिफ ने बाद में कहा कि “परमाणु हथियार रडार पर नहीं हैं” यानी फिलहाल बात केवल सुरक्षा सहयोग और सामरिक छत्र की है, न कि हथियार देने की। फिर भी बयानबाज़ी ने अंतरराष्ट्रीय हलकों में हलचल मचा दी है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं और आकांक्षाएं
- भारत और इज़राइल चिंतित – यह समझौता दोनों देशों के लिए सुरक्षा चुनौती साबित हो सकता है।
- ईरान की नाराज़गी – ईरान और सऊदी अरब की पुरानी खींचतान के बीच यह कदम नई तनातनी को जन्म दे सकता है।
- अमेरिका की भूमिका पर सवाल – सऊदी अरब का यह कदम अमेरिकी सुरक्षा गारंटी पर उसके घटते भरोसे का संकेत माना जा रहा है।
- IAEA की नज़र – अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी इस डील की पारदर्शिता और नियंत्रण तंत्र को लेकर सख्त निगरानी कर सकती है।
असर और भविष्य
यह सौदा सिर्फ पाकिस्तान-सऊदी रिश्तों को नई ऊँचाई नहीं देता, बल्कि पूरे मध्य-पूर्व की सुरक्षा राजनीति का नक्शा बदल सकता है। परमाणु हथियारों के अप्रसार (non-proliferation) के वैश्विक ढांचे को भी यह समझौता गंभीर चुनौती दे सकता है।