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भारतीय तालिबानी है RSS, स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका शून्य, इतिहास के भ्रष्टतम जालसाज, फंडिंग भी अवैध : कांग्रेस

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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद बी.के. हरिप्रसाद ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर अब तक का सबसे बड़ा हमला बोलते हुए उसे “भारतीय तालिबान” करार दिया। हरिप्रसाद ने कहा कि आरएसएस ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कोई योगदान नहीं दिया और यह संगठन केवल समाज को बांटने, नफ़रत फैलाने और सत्ता के लिए राजनीति करने में ही लगा रहा। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि एक ऐसा संगठन जो आज़ादी की लड़ाई से गायब रहा, आज अगर खुद को राष्ट्रवाद का ठेकेदार कहता है तो यह शहीदों की कुर्बानी का अपमान है।

स्वतंत्रता संग्राम से ग़ैरहाज़िर था आरएसएस

हरिप्रसाद ने तीखे सवाल उठाए – “जब महात्मा गांधी सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन चला रहे थे, जब सुभाष चंद्र बोस आज़ाद हिंद फौज खड़ी कर रहे थे, जब भगत सिंह और अशफ़ाक़ उल्ला खां जैसे नौजवान शहीद हो रहे थे – तब आरएसएस कहां था?” कांग्रेस नेता का आरोप है कि संघ उस दौर में अंग्रेजों के खिलाफ़ संघर्ष करने के बजाय अपने संगठन को मज़बूत करने और हिंदू राष्ट्रवाद की विचारधारा फैलाने में व्यस्त था। यही कारण है कि इतिहास के पन्नों में कहीं भी आरएसएस का नाम स्वतंत्रता संग्राम के योगदानकर्ताओं में दर्ज नहीं है।

“लालकिले से संघ की प्रशंसा करना शर्मनाक”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा वार करते हुए हरिप्रसाद ने कहा कि स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले से ऐसे संगठन की तारीफ करना जो कभी स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा ही नहीं रहा, देश की जनता और शहीदों के बलिदान का अपमान है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार आरएसएस की कठपुतली की तरह काम कर रही है और जनता को गुमराह करने के लिए उसे “सबसे बड़ा सेवा संगठन” बताती है। जबकि सच्चाई यह है कि आरएसएस का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम के योगदान से खाली है।

आरएसएस की फंडिंग और पंजीकरण पर गंभीर सवाल

बी.के. हरिप्रसाद ने आरएसएस की वैधता पर भी गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि भारत में कोई भी गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) बिना पंजीकरण के काम नहीं कर सकता, लेकिन आरएसएस आज तक पंजीकृत संगठन नहीं है। न ही यह स्पष्ट है कि इसकी फंडिंग कहां से आती है और इतने बड़े नेटवर्क के संचालन के लिए पैसा आखिर किस स्रोत से आता है। कांग्रेस नेता ने कहा कि आरएसएस की वित्तीय पारदर्शिता पर देश को जवाब चाहिए और सरकार को इसकी जांच करानी चाहिए।

भाजपा-आरएसएस : “इतिहास के सबसे बड़े जालसाज़”

कांग्रेस नेता ने भाजपा और आरएसएस पर इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि भाजपा-आरएसएस ने हमेशा से झूठी कहानियों के जरिए कांग्रेस को बदनाम करने की कोशिश की है। असलियत यह है कि बंगाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री एके फजलुल हक ने सबसे पहले विभाजन का प्रस्ताव रखा था और जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी इसमें शामिल थे। यहां तक कि जिन्ना और सावरकर दोनों अलग-अलग धर्मों के लिए अलग राज्य के पक्षधर थे। फिर भी भाजपा लगातार इस ज़िम्मेदारी को कांग्रेस पर थोपकर जनता को गुमराह करती रही है।

“देश की शांति भंग करने वाला संगठन है आरएसएस”

हरिप्रसाद ने कहा कि आरएसएस की विचारधारा हमेशा नफ़रत और विभाजन पर टिकी रही है। यह संगठन न कभी समावेशी राष्ट्रवाद का समर्थक रहा और न ही लोकतांत्रिक मूल्यों का। उन्होंने आरोप लगाया कि आरएसएस लगातार समाज में जहर घोलता है, अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफ़रत फैलाता है और धर्म के नाम पर लोगों को लड़ाकर सत्ता हासिल करता है। उन्होंने कहा – “आरएसएस भारत के लोकतंत्र और संविधान के लिए सबसे बड़ा खतरा है।”

विपक्ष का समर्थन और भाजपा की असहज स्थिति

कांग्रेस नेताओं के अलावा एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी पहले आरएसएस को स्वतंत्रता संग्राम से अनुपस्थित बताकर हमला कर चुके हैं। विपक्षी दल लगातार यह कहते रहे हैं कि आरएसएस का इतिहास सांप्रदायिक राजनीति और विभाजनकारी विचारधारा का रहा है। हरिप्रसाद का यह बयान अब कांग्रेस के वैचारिक रुख को और मज़बूत करता है और भाजपा को असहज स्थिति में ला खड़ा करता है।

कांग्रेस का पलटवार : असली राष्ट्रवादी कौन?

विशेषज्ञ मानते हैं कि कांग्रेस अब इस बयान को एक वैचारिक हथियार की तरह इस्तेमाल करेगी। कांग्रेस का संदेश साफ है – असली राष्ट्रवादी वही हैं जिन्होंने अंग्रेजों से लड़कर आज़ादी दिलाई, न कि वे जो परछाइयों में छुपकर बैठे रहे और आज सत्ता में आकर खुद को देशभक्त साबित करने में लगे हैं। यह बहस अब केवल इतिहास की नहीं बल्कि चुनावी राजनीति की भी धुरी बनने जा रही है।

 

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