पटना 21 अक्टूबर 2025
बिहार की राजनीति में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) हमेशा से खुद को “सामाजिक न्याय” और समावेशी राजनीति का सबसे बड़ा अलम्बरदार बताता रहा है, लेकिन हालिया विधानसभा चुनाव के टिकट बंटवारे ने इस दावे की पोल खोल दी है और पार्टी की नीतियों में गंभीर विसंगति को उजागर किया है। RJD का पारंपरिक और सफल “MY फॉर्मूला” (मुस्लिम-यादव गठजोड़) अब सवालों के घेरे में है, क्योंकि उपलब्ध आंकड़े और तथ्य एकतरफा झुकाव को दर्शाते हैं, जिससे पार्टी के सबसे वफादार वोट बैंक यानी मुस्लिम समुदाय में तीव्र असंतोष फैल रहा है। आँकड़ों पर गौर करें तो, बिहार में मुस्लिम आबादी लगभग 18% है, और ऐतिहासिक रूप से यह समुदाय 90–100% की वफादारी के साथ RJD के साथ खड़ा रहता है, जिससे वह पार्टी का सबसे मजबूत और गारंटीशुदा आधार बन जाता है।
इसके विपरीत, यादव समुदाय, जो बिहार की आबादी का लगभग 14% है, 60–70% तक ही RJD के प्रति स्थायी वफादारी दिखाता है, क्योंकि इसका कुछ हिस्सा अन्य दलों, खासकर बीजेपी या जदयू की ओर भी जाता है। इसके बावजूद, RJD ने 2025 के विधानसभा चुनाव में कुल 143 उम्मीदवारों में से केवल 18 मुस्लिम उम्मीदवारों (12.6%) को टिकट दिया है, जबकि 51 टिकट (36%) यादव उम्मीदवारों के पाले में डाले गए हैं। यह तीव्र असमानता साफ तौर पर यह पक्षपात दर्शाती है कि RJD अपने सबसे विश्वसनीय समर्थक वर्ग को प्रतिनिधित्व और सत्ता की हिस्सेदारी देने में कंजूसी बरत रहा है।
“सामाजिक न्याय” या एकतरफा जातीय तुष्टीकरण? कार्यकर्ताओं में गहरा असंतोष
RJD प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने अपने पूरे राजनीतिक करियर में सामाजिक न्याय की वकालत की है और वंचितों की आवाज बनने का दावा किया है, लेकिन टिकट बंटवारे का यह पैटर्न सीधे उनके सिद्धांतों और कथनी-करनी पर प्रश्नचिह्न लगाता है। आलोचकों का स्पष्ट कहना है कि पार्टी मुस्लिम समुदाय को केवल एक “वोट बैंक” के रूप में इस्तेमाल कर रही है, जिसकी वफादारी को गारंटीड मान लिया गया है, जबकि सत्ता और निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी वास्तविक हिस्सेदारी को जानबूझकर नजरअंदाज किया जा रहा है। प्रमुख सवाल यही है: अगर मुस्लिम समुदाय हर बार RJD का साथ देता है, तो टिकटों में उनकी हिस्सेदारी उनकी आबादी और वफादारी के अनुपात में इतनी कम क्यों है? क्या यह “MY फॉर्मूला” केवल यादवों को राजनीतिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने का जरिया बनकर रह गया है?
पार्टी के भीतर और बाहर के मुस्लिम कार्यकर्ताओं में इस बार खासी नाराजगी देखी जा रही है। एक वरिष्ठ मुस्लिम कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर यह तीखी टिप्पणी की कि “हम हर बार RJD के लिए वोट जुटाते हैं, लेकिन जब टिकट देने की बारी आती है, तो हमें किनारे कर दिया जाता है। क्या सेक्युलरिज्म का बोझ सिर्फ हमारा है?” यह असंतोष दर्शाता है कि RJD की रणनीति में मुस्लिम वोटों की “गारंटी” को हल्के में लिया जा रहा है, और पार्टी को लगता है कि विकल्पों की कमी के कारण यह समुदाय कहीं नहीं जाएगा, जबकि यादव वोटों को एकजुट रखने के लिए उन्हें अत्यधिक प्रतिनिधित्व दिया जा रहा है।
महागठबंधन की खामियां और मुस्लिम प्रतिनिधित्व में लगातार गिरावट का ट्रेंड
RJD के इस असमान टिकट बंटवारे की आलोचना केवल RJD तक सीमित नहीं है, बल्कि यह महागठबंधन के अन्य सहयोगी दलों पर भी लागू होती है, जो “सेक्युलर” छवि का दावा करते हैं। उदाहरण के लिए, VIP (विकासशील इंसान पार्टी) जैसी सहयोगी पार्टी ने अपने हिस्से की सीटों पर एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया, जबकि कांग्रेस और अन्य छोटे सहयोगी दलों ने भी मुस्लिम उम्मीदवारों को नाममात्र का प्रतिनिधित्व दिया, जिससे महागठबंधन की पूरी “सेक्युलर” साख पर सवाल उठ रहे हैं। ऐतिहासिक संदर्भ को देखें तो, यह विसंगति और भी गहरी दिखाई देती है: 2015 के विधानसभा चुनाव में RJD ने 101 में से 14.8% मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, जो 2020 में 144 में से 13.2% हो गया, और 2025 में यह संख्या घटकर केवल 12.6% रह गई है।
यह ट्रेंड स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि मुस्लिम प्रतिनिधित्व में लगातार कमी आ रही है, जबकि यादव उम्मीदवारों की संख्या में स्थिर वृद्धि हो रही है। सोशल मीडिया और ग्राउंड रिपोर्ट्स के आधार पर, मुस्लिम मतदाताओं में असंतोष बढ़ रहा है, जहाँ यूजर्स टिप्पणी कर रहे हैं कि “RJD का MY फॉर्मूला अब सिर्फ Y (यादव) तक सीमित है। M (मुस्लिम) को सिर्फ वोट देना है, हिस्सेदारी नहीं मिलेगी।”
RJD के सामने सुधार की चुनौती और बिहार की सियासत में नए समीकरण
RJD का “MY फॉर्मूला” अब एकतरफा, “Y-केंद्रित” दिख रहा है, और यह पार्टी के सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों से भटकाव का स्पष्ट संकेत है। RJD और महागठबंधन के सामने अब सुधार की बड़ी चुनौती है: या तो वे टिकट बंटवारे में मुस्लिम समुदाय को उनकी आबादी और अटूट वफादारी के अनुरूप सम्मानजनक हिस्सेदारी दें, या फिर भविष्य में वैकल्पिक नेतृत्व के उदय का सामना करने के लिए तैयार रहें। यदि RJD अपनी इस विभेदकारी रणनीति को नहीं बदलती है, तो मुस्लिम मतदाता भविष्य में AIMIM जैसे दलों की ओर रुख कर सकते हैं, जो बिहार में धीरे-धीरे अपनी पैठ बना रहे हैं और इस असंतोष को भुनाने की कोशिश में हैं।
यह स्थिति बिहार की राजनीति में नए समीकरण बना सकती है। इस चुनाव में मुस्लिम मतदाता शायद अभी भी विकल्पों की कमी के चलते RJD को वोट दे दें, लेकिन उनका धैर्य जवाब दे रहा है। सामाजिक न्याय का दावा करने वाली पार्टी को अब अपने सिद्धांतों पर खरा उतरना होगा और “M” को सिर्फ वोट बैंक की जगह सम्मान और बराबरी का हक देना होगा, अन्यथा बिहार की सियासत में स्थायी उलटफेर आना तय है।