लक्षद्वीप द्वीप समूह, जो भारत का संवेदनशील तटीय क्षेत्र है, समुद्री जलस्तर में हो रही तेज़ वृद्धि की वजह से गंभीर संकट का सामना कर रहा है। UN की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 15 वर्षों में समुद्र का स्तर यहाँ औसतन 9 मिमी प्रति वर्ष की दर से बढ़ा है, जो वैश्विक औसत से अधिक है।
इसके कारण द्वीपों का किनारा कट रहा है और ताज़ा पानी के स्रोत खारे हो रहे हैं। कृषि भूमि कम हो रही है और नारियल, केला जैसे फसलें बर्बाद हो रही हैं। स्थानीय लोग शिकायत कर रहे हैं कि पीने के पानी की कमी और मिट्टी के कटाव ने उनके जीवन को असुरक्षित बना दिया है।
भारत सरकार ने ‘ब्लू इकोनॉमी मिशन’ के तहत यहाँ जलवायु-अनुकूल आधारभूत ढाँचा विकसित करने की योजना बनाई है। लेकिन पर्यावरणविदों का कहना है कि यदि वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन नहीं रोका गया, तो 2100 तक लक्षद्वीप के कई द्वीप मानचित्र से मिट सकते हैं।