नई दिल्ली- 28 जुलाई 2025, संसद के मानसून सत्र में सोमवार को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर बहस की शुरुआत से ठीक पहले संसद कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने एक सशक्त सांस्कृतिक सन्देश देते हुए ट्वीट किया, “जब रावण ने लक्ष्मण रेखा पार की, लंका जल गई। जब पाकिस्तान ने भारत की सीमा लांघी, आतंकी ठिकाने राख हो गए।” यह बयान भारतीय संसद में होने वाली ऐतिहासिक बहस से पहले एक स्पष्ट और आक्रामक संकेत माना जा रहा है कि केंद्र सरकार आतंकवाद पर किसी तरह की ढिलाई के मूड में नहीं है।
आज लोकसभा में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इस बहस की शुरुआत करेंगे, जिसमें गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर, और अन्य वरिष्ठ मंत्री भी शामिल होंगे। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी लोकसभा और राज्यसभा दोनों में हस्तक्षेप कर सकते हैं। इस बहस में पहलगाम आतंकी हमले और उसके जवाब में भारत द्वारा किए गए सीमापार सैन्य अभियान “ऑपरेशन सिंदूर” की रणनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य समीक्षा होगी।
किरण रिजिजू के रामायण सन्दर्भ ने बहस की भावनात्मक गहराई बढ़ा दी है। उन्होंने एक तरफ सांस्कृतिक चेतना को जोड़ा, वहीं दूसरी तरफ यह स्पष्ट किया कि भारत अब अपनी सीमा की “लाल रेखा” को पवित्र मानते हुए उस पर किसी भी अतिक्रमण को निर्णायक कार्रवाई के रूप में लेता है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में भारतीय वायुसेना और सेना ने पीओके में मौजूद कई आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों को तबाह कर दिया था। सरकार का दावा है कि इन हमलों में पाकिस्तान आधारित आतंकी नेटवर्क को भारी क्षति हुई है।
वहीं विपक्ष इस बहस को लेकर हमलावर रुख अपना रहा है। कांग्रेस, राजद, और वामपंथी दलों ने केंद्र से सवाल पूछा है कि हमला होने से पहले खुफिया तंत्र विफल क्यों हुआ और क्या इस ऑपरेशन का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई कूटनीतिक विरोध आया है? उन्होंने यह भी जानना चाहा है कि अमेरिका की ओर से आए युद्धविराम से जुड़े बयान और घटनाक्रम की सच्चाई क्या है।
सार्वजनिक और रणनीतिक दोनों ही दृष्टियों से यह बहस ऐतिहासिक मानी जा रही है। यह सिर्फ एक आतंकी जवाबी कार्रवाई का मसला नहीं, बल्कि भारत के राष्ट्रीय स्वाभिमान, सुरक्षा नीति और राजनीतिक दृष्टिकोण का सार्वजनिक परीक्षण है। रामायण का प्रतीकात्मक उपयोग बताता है कि भारत की सुरक्षा नीति अब शांति के साथ-साथ प्रतिकार की भावना से भी निर्देशित है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर हो रही बहस केवल भारत-पाक सीमा तक सीमित नहीं है — यह भारत के सामरिक आत्मविश्वास, संसदीय जवाबदेही और वैश्विक नीति का नया दस्तावेज़ बन सकती है। किरण रिजिजू का रामायण-संदर्भ संसद में बहस का भावनात्मक प्रवेश द्वार बन चुका है, और पूरे देश की निगाहें अब इस ऐतिहासिक चर्चा पर टिकी हैं।