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स्कूली छात्रों का तकनीक और पर्यावरण की दिशा में क्रांतिकारी प्रयोग

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लुधियाना, पंजाब । 29 जुलाई 2025

पंजाब के लुधियाना शहर से एक अत्यंत प्रेरणादायक खबर सामने आई है, जिसने न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में नई संभावनाओं के द्वार खोले हैं, बल्कि यह साबित किया है कि यदि युवा तकनीक और जागरूकता को साथ लेकर चलें, तो वे बड़े बदलाव की बुनियाद रख सकते हैं। लुधियाना के BCM आर्य मॉडल स्कूल के दो बारहवीं कक्षा के छात्र — अभिषेक धान्दा और प्रभकीरत सिंह — ने मिलकर एक स्वचालित और तकनीकी रूप से अत्याधुनिक वर्मी-कंपोस्टिंग सिस्टम विकसित किया है, जिसका नाम उन्होंने “Prithvi Rakshak” रखा है। यह प्रणाली जैविक कचरे को पारंपरिक विधियों की तुलना में तीन गुना तेज़ी से खाद में बदलने में सक्षम है। जहां पहले इस प्रक्रिया में 60 से 90 दिन लगते थे, वहीं इन छात्रों की प्रणाली इसे मात्र 38 दिनों में पूरा कर देती है। यह एक बेहद अहम नवाचार है, जो कचरा प्रबंधन और पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध हो सकता है।

इस कम्पोस्टिंग प्रणाली की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह पूरी तरह से IoT (Internet of Things) और AI (Artificial Intelligence) तकनीकों पर आधारित है। सिस्टम में तापमान और आर्द्रता सेंसर्स, एक स्वचालित रोबोटिक इकाई (VermiDoot), और एक विशेष रूप से विकसित बायो-एंजाइम फॉर्मूला का उपयोग किया गया है, जो कचरे के विघटन को तेजी से और अधिक प्रभावी ढंग से संपन्न करता है। इसकी निगरानी और नियंत्रण एक मोबाइल ऐप — “VermiVeda” — के माध्यम से किया जाता है, जिससे उपयोगकर्ता किसी भी समय प्रणाली के आँकड़ों को ट्रैक कर सकते हैं और ज़रूरत पड़ने पर हस्तक्षेप कर सकते हैं। इस प्रकार तकनीक के उपयोग से यह व्यवस्था पूरी तरह स्वचालित हो जाती है, जिससे मानवीय त्रुटियाँ कम होती हैं और निष्कर्ष अधिक सुनिश्चित होते हैं।

“Prithvi Rakshak” प्रणाली वर्तमान में प्रति माह 12,000 किलो जैविक कचरा संसाधित करने में सक्षम है। इस पहल के पहले ही चरण में यह प्रणाली ₹1 लाख मासिक राजस्व उत्पन्न कर रही है, और आने वाले समय में इसके ₹2.5–3 लाख प्रति माह तक बढ़ने की संभावना है। इतना ही नहीं, इस प्रणाली द्वारा तैयार किए गए उत्पाद — वर्मिवॉश और वर्मीकम्पोस्ट (Vermiwash & Vermistick) — को जैविक खेती में उपयोग किया जा सकता है, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ती है और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होती है। इस प्रकार यह मॉडल पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से एक ट्रिपल-बेनेफिट सिस्टम बन जाता है — एक ऐसा मॉडल जो पर्यावरण संरक्षण को उद्यमशीलता के साथ जोड़ता है।

इस परियोजना को न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिल चुकी है। छात्रों को IIT गुवाहाटी के TechNiche, IEEE की जूनियर वैज्ञानिक प्रतियोगिता (ट्यूनीशिया), World Robot Olympiad (WRO) Nationals, Eco-Innovators Ideathon जैसी प्रतियोगिताओं में सम्मानित किया गया है। इसके अतिरिक्त, इन छात्रों की परियोजना को Amazon-MoEFCC Eco-Hackathon में 1.9 लाख प्रविष्टियों में से शीर्ष 35 में स्थान मिला है, जो एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। यह सफलता यह दर्शाती है कि यदि शिक्षा व्यवस्था छात्रों को तकनीक, नवाचार और सामाजिक उत्तरदायित्व के साथ जोड़ सके, तो युवा पीढ़ी किसी भी चुनौती का समाधान खोजने में सक्षम है।

यह खबर इसलिए भी विशेष है क्योंकि यह हमें इस बात का प्रमाण देती है कि पर्यावरण संरक्षण केवल सरकारों, एनजीओ या वैज्ञानिकों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि समाज का हर वर्ग — विशेष रूप से युवा — इस दिशा में योगदान दे सकता है। ‘Prithvi Rakshak’ न केवल एक तकनीकी समाधान है, बल्कि यह एक प्रतीक है उस नई सोच का, जो भारत के हर गांव, हर शहर और हर स्कूल से जन्म ले सकती है। यदि राज्य और केंद्र सरकारें इस मॉडल को समर्थन दें और इसे अन्य स्थानों पर लागू करने में मदद करें, तो भारत जैविक कचरे की समस्या से निपटने के साथ-साथ हजारों युवाओं को रोजगार और नवाचार का अवसर भी प्रदान कर सकता है।

इस प्रेरणादायक उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि तकनीक, शिक्षा और सामाजिक उद्देश्य जब मिलते हैं, तो वे केवल मशीनें नहीं बनाते — वे भविष्य गढ़ते हैं। लुधियाना के ये दो छात्र हमें यही सिखा रहे हैं — कि पृथ्वी की रक्षा अब केवल नारा नहीं, बल्कि एक क्रियाशील समाधान बन चुकी है।

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