नई दिल्ली
16 जुलाई 2025
“हर स्वतंत्रता की एक मर्यादा होती है—अब हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की लक्ष्मण रेखा तय करनी होगी।” यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान दी, जब मध्य प्रदेश सरकार ने कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय की कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स को आपत्तिजनक, उकसाने वाला और अराजकता फैलाने वाला बताते हुए उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की।
मामला एक पुराने विवादित कार्टून से जुड़ा है, लेकिन अब यह एक राष्ट्रीय बहस का विषय बन चुका है—क्या भारत को अब फ्री स्पीच यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर स्पष्ट और व्यवहारिक गाइडलाइंस की जरूरत है? अदालत ने अब इस मामले की सुनवाई 15 अगस्त के बाद तक के लिए टाल दी है साथ ही अभिव्यक्ति की आजादी के दुरुपयोग पर गहरी चिंता जताई है.
मालवीय को सुप्रीम कोर्ट से राहत
मध्य प्रदेश सरकार की याचिका के बीच, सुप्रीम कोर्ट ने कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि जब तक पूरे मामले पर सुनवाई और मूल्यांकन नहीं हो जाता, तब तक उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। अदालत ने राज्य सरकार से पूछा, “क्या एक व्यंग्यात्मक पोस्ट इतना खतरनाक है कि व्यक्ति को जेल भेजा जाए? आलोचना और अपराध में अंतर समझना ज़रूरी है।”
राज्य सरकार का पक्ष और कोर्ट की सख्ती
राज्य सरकार ने कहा कि मालवीय ने लगातार ऐसे कार्टून और पोस्ट किए हैं जो समाज में वैमनस्य फैला सकते हैं और बार-बार चेतावनियों के बावजूद उन्होंने अपनी गतिविधियां नहीं रोकीं। इस पर न्यायमूर्ति एसके कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए पूछा,
“अगर हर आलोचना को राष्ट्रद्रोह माना जाएगा तो लोकतंत्र कैसे बचेगा?”
अभिव्यक्ति बनाम व्यवस्था: दिशा तय करेगा न्यायालय
कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि अब समय आ गया है कि देश में फ्री स्पीच पर एक स्पष्ट और सुसंगत दिशा-निर्देश तय किए जाएं। यह गाइडलाइन संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत व्यक्ति की बोलने की आज़ादी और अनुच्छेद 19(2) के तहत उसकी कानूनी सीमाओं के बीच संतुलन को परिभाषित करेगी।
न्यायमूर्ति कौल ने कहा, “अगर हर विचार पर सरकार आपत्ति जताने लगे तो लोकतंत्र केवल एक ढांचा बनकर रह जाएगा। मगर अगर कोई सोच-समझकर सीमाएं पार करता है, तो वहां हस्तक्षेप ज़रूरी है। यही संतुलन भारत के संविधान की आत्मा है।”
क्या होंगी ये गाइडलाइंस?
फिलहाल कोर्ट ने कोई मसौदा पेश नहीं किया है, लेकिन उसने संकेत दिए हैं कि एक व्यापक विमर्श और विशेषज्ञों की सलाह के साथ दिशा तय की जाएगी। ये गाइडलाइंस सोशल मीडिया, व्यंग्य, राजनीतिक आलोचना, धार्मिक टिप्पणियों और सार्वजनिक मंचों पर व्यक्त विचारों के लिए स्पष्ट दायरा और जिम्मेदारी तय करेंगी।
मूल सवाल वही है:
क्या एक कार्टून सरकार को अस्थिर कर सकता है? क्या आलोचना और व्यंग्य अब अपराध की श्रेणी में गिने जाएंगे? हेमंत मालवीय का मामला इस समय केवल एक कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक भावना की संवेदनशील परीक्षा बन चुका है। सुनवाई अब केवल अदालत का मुद्दा नहीं रही—यह तय करेगी कि भारत के नागरिक सोच सकते हैं, बोल सकते हैं और सत्ता से सवाल पूछ सकते हैं या नहीं। सुप्रीम कोर्ट की यह पहल एक नई शुरुआत हो सकती है, जो भविष्य में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को स्पष्टता और गरिमा के साथ परिभाषित कर सके।