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रामराज्य या तानाशाही? खुद तो संसद में रो दिए, कुर्सी पर बैठे तो… मौलाना भूल गया था किसका शासन है…

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नई दिल्ली 29 सितंबर 2025

एक भी भारतीय मुसलमान — न विद्वान, न आम आदमी — कभी “ग़ज़वा-ए-हिंद” जैसी काल्पनिक बात नहीं करता, फिर भी नेता बेशर्मी से इस झूठे किस्से को हथियार बनाकर पूरी कौम को बदनाम करते हैं। “तुम्हें वैसे ही पीटेंगे जैसे बरेली में पीटा था” — ये किसी अपराधी के नहीं बल्कि देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शब्द हैं, जो खुलेआम मुसलमानों पर पुलिस की बर्बरता पर शेख़ी बघार रहे हैं। क्या यही है आपका “सबका साथ, सबका विकास”?

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का शासन गहरे अंतर्विरोध और राजनीतिक पाखंड का प्रतीक बन गया है। हाल ही में बरेली में मुसलमानों पर हुए लाठीचार्ज के बाद उन्होंने ज़हरीले बोल बोलते हुए कहा कि “मौलाना भूल गया था किसका शासन है।” एक मुख्यमंत्री से इस तरह की भाषा और धमकी भरे बयान की उम्मीद नहीं की जाती। यह वही आदित्यनाथ हैं जिन्होंने मुख्यमंत्री बनते ही अपने ऊपर के सभी आपराधिक केस वापस ले लिए — जबकि ये केस बेहद गंभीर थे, जिनमें हत्या की साजिश, दंगा भड़काने और नफरत फैलाने जैसे आरोप शामिल थे। जब इन मामलों में अदालत में सुनवाई चल रही थी और गिरफ्तारी की नौबत आई थी, तब 12 मार्च 2007 को योगी आदित्यनाथ संसद में आंसू बहाने लगे थे। उस समय लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने संवेदनशीलता दिखाई और उन्हें सांत्वना दी थी। सवाल यह है — जो व्यक्ति अपने अपराधों के केस में घिरने पर संसद में रो सकता है, वही आज सत्ता में आकर निर्दोषों पर डंडे चलवाने और घरों पर बुलडोजर चलाने में सबसे आगे क्यों है? क्या यह वही ‘रामराज्य’ है जिसकी कल्पना लोगों ने की थी?

दोहरे मापदंड का ‘रामराज्य’

योगी आदित्यनाथ अक्सर “गजवा-ए-हिंद” जैसे भावनात्मक बयान देते हैं, लेकिन ज़मीन पर हिंदुत्व के नाम पर होने वाली हिंसा रोकने में पूरी तरह नाकाम साबित हुए हैं। रामनवमी के जुलूसों में खुलेआम तलवारें लहराई जाती हैं, मस्जिदों पर भगवा झंडे गाड़े जाते हैं, और नमाज़ के वक्त डीजे पर भड़काऊ गाने बजाए जाते हैं — लेकिन प्रशासन मूकदर्शक बना रहता है। जब पत्थरबाज़ी, आगजनी और निर्दोषों की पिटाई होती है, तब कानून का डंडा गायब हो जाता है। क्या यूपी पुलिस की ताकत सिर्फ मुसलमानों पर लाठी चलाने के लिए रह गई है?

फूल बरसाने और लाठियां चलाने का पाखंड

एक ओर कांवरियों पर फूल बरसाए जाते हैं, उनके पैरों की सेवा की जाती है और सड़कें रोकने की पूरी छूट दी जाती है। दूसरी ओर, जुमा की नमाज़ में अगर कोई आधा घंटा भी मस्जिद के बाहर खड़ा हो जाए तो इसे कानून-व्यवस्था का संकट बता दिया जाता है और नमाज़ियों के खिलाफ़ तुरंत कार्रवाई कर दी जाती है। यह पाखंड तब अपनी चरम पर पहुँचता है जब बीफ के नाम पर भीड़ मासूमों की लिंचिंग करती है और मुख्यमंत्री चुप रहते हैं। विडंबना यह है कि मोदी सरकार के दौर में बीफ एक्सपोर्ट रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच चुका है और अरबों का मुनाफ़ा कमा रहा है। यानी अमीर व्यापारी बीफ बेचें तो राष्ट्रभक्ति, लेकिन गरीब मुसलमान या दलित पर शक हो जाए तो उसकी जान ले लेना — क्या यही ‘रामराज्य’ है?

न्याय नहीं, नफरत की बुलडोजर राजनीति

आज यूपी में कानून का शासन नहीं, बल्कि बुलडोजर की राजनीति चल रही है। मुख्यमंत्री खुद को न्यायाधीश मान बैठे हैं और सिर्फ शक के आधार पर किसी का घर उजाड़ देते हैं। हाल ही में भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान, पद्मश्री और अर्जुन पुरस्कार विजेता स्व. मो. शाहिद के परिवार का घर बुलडोज़र से तोड़ दिया गया। यह वही शाहिद हैं जिन्होंने भारत को ओलंपिक में गोल्ड दिलाने में अहम योगदान दिया था। यह कैसा न्याय है कि अडानी को 1 रुपये में 1050 एकड़ ज़मीन दी जा सकती है, लेकिन देश के लिए गौरव लाने वाले खिलाड़ी के परिवार को एक घर भी नहीं मिल सकता? अगर कोई दोषी है तो उसका फैसला अदालत को करना चाहिए, मुख्यमंत्री के व्यक्तिगत आदेश से किसी का घर नहीं तोड़ा जाना चाहिए।

जनता बेवकूफ नहीं है: असली मुद्दों पर लौटें

हिंदू-मुसलमान, पाकिस्तान और नफरत की राजनीति से जनता को असली मुद्दों से भटकाने का खेल अब पुराना हो चुका है। यूपी में बेरोजगारी चरम पर है, शिक्षा व्यवस्था दम तोड़ रही है, स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हैं और महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है। लेकिन सत्ता सिर्फ “गजवा-ए-हिंद नहीं होगा” जैसी बयानबाज़ी कर रही है। लोगों को अब भाषण नहीं, बल्कि बराबरी का न्याय चाहिए। अगर सरकार मुसलमानों पर डंडे चलाने और हिंदू भीड़ को छूट देने की नीति पर चलती रही तो यह शासन ज़्यादा दिन टिकने वाला नहीं है। कानून सबके लिए समान होना चाहिए, वरना यह ‘रामराज्य’ नहीं खुली तानाशाही कहलाएगी। योगी जी, आपके आंसू सिर्फ विपक्ष में रहते हुए थे — सत्ता में आने के बाद वे क्यों सूख गए?

 

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