नई दिल्ली
1 जून 2025
भाग्य के महल और संघर्ष की सीढ़ियां
हर मनुष्य अपने जीवन में किसी-न-किसी मोड़ पर यह सोचता है कि अगर जन्म सबका एक-सा होता है, तो फिर किस्मत इतनी अलग-अलग क्यों होती है? कोई बचपन से ही संपन्न, शिक्षित और प्रभावशाली बनता है, जबकि कोई जीवनभर दो वक़्त की रोटी और सम्मान के लिए जूझता रहता है। यह अंतर सिर्फ सामाजिक, पारिवारिक या आर्थिक पृष्ठभूमि की वजह से नहीं, बल्कि व्यक्तिगत ग्रह-योगों के कारण भी होता है — ऐसा मानता है वैदिक ज्योतिष शास्त्र। इसी संदर्भ में दो प्रमुख योगों की चर्चा होती है: राजयोग और दरिद्र योग। ये दोनों शब्द जितने प्रभावशाली लगते हैं, उतने ही गहरे भी हैं — और कई बार उतने ही भ्रमित करने वाले भी। राजयोग सुनते ही जहाँ उम्मीद, पद और ऐश्वर्य की छवि उभरती है, वहीं दरिद्र योग डर, संघर्ष और अभाव का संकेत देता है। पर क्या यह इतना सरल है? क्या जीवन केवल योगों से तय होता है, या योगों के साथ जुड़ी हमारी सोच और कर्मों की भूमिका अधिक निर्णायक है? आइए, इस लेख के माध्यम से जानने का प्रयास करें।
राजयोग
वैदिक ज्योतिष में राजयोग का अर्थ है — ऐसा ग्रह-संयोजन जो व्यक्ति को सत्ता, सम्मान, अधिकार, संपत्ति और समाज में प्रतिष्ठा दिलाए। यह जरूरी नहीं कि ऐसा व्यक्ति सचमुच राजा बने, लेकिन वह जिस भी क्षेत्र में हो — नेतृत्व की भूमिका में चमकता है। राजयोग बनता है जब कुंडली में केंद्र (1, 4, 7, 10 भाव) और त्रिकोण (1, 5, 9 भाव) के स्वामी आपस में युति करें, एक-दूसरे की राशि में स्थित हों, या शुभ ग्रहों जैसे बृहस्पति, शुक्र, चंद्रमा आदि से दृष्ट हो। विशेष रूप से दशम (10वां) भाव — जो कर्मस्थान है — अगर मजबूत हो, और उसमें लग्नेश या पंचमेश की युति हो, तो जातक उच्च प्रशासनिक पदों तक पहुँच सकता है। परंतु राजयोग केवल बाहरी वैभव का ही प्रतीक नहीं है, बल्कि यह बुद्धि, संकल्प, प्रभाव और दृष्टिकोण का योग भी होता है। महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, नरेंद्र मोदी, अंबानी, सचिन तेंदुलकर, रतन टाटा जैसे लोगों की कुंडलियों में कई शक्तिशाली राजयोग पाए गए हैं — पर उनका जीवन केवल योगों से नहीं, उनके कर्म और ध्येय से भी बना।
दरिद्र योग
दरिद्र योग शब्द सुनते ही भय उत्पन्न होता है, लेकिन इसका सही अर्थ समझना ज़रूरी है। दरिद्र योग का अर्थ केवल आर्थिक तंगी नहीं, बल्कि अवसरों की कमी, बार-बार असफलता, रिश्तों में खटास, और मानसिक असंतुलन भी हो सकता है। यह योग तब बनता है जब द्वितीय (धन), पंचम (बुद्धि), नवम (भाग्य) या एकादश (आय) भाव में अशुभ ग्रहों की युति हो, या उनके स्वामी नीच, शत्रु राशि में हों, या राहु-केतु और शनि की दृष्टि में हों। यदि लग्नेश भी निर्बल हो जाए, और चंद्रमा पीड़ित हो — तो व्यक्ति को जीवन में स्थायित्व नहीं मिलता। लेकिन यह योग भी अनिवार्य नहीं है — उसका परिणाम इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति अपने जीवन में किस प्रकार की सोच, प्रयास और मार्ग चुनता है। कई बार दरिद्र योग वाले व्यक्ति — लेखक, कलाकार, संत, और समाजसेवी बनकर ऐसी ऊँचाइयों तक पहुँचते हैं जहाँ धन बेमानी हो जाता है। दरिद्र योग अगर आत्मबल बढ़ा दे, तो वह जीवन का वरदान बन सकता है।
योग बनाते हैं नक्शा
अब सवाल उठता है — क्या ये योग जीवन का भाग्य तय कर देते हैं? इसका उत्तर है: नहीं। राजयोग और दरिद्र योग किसी व्यक्ति के भीतर छिपी संभावनाओं और बाधाओं का नक्शा भर होते हैं, न कि उसकी मंज़िल। यह बिल्कुल वैसा है जैसे किसी के पास एक शानदार नाव हो (राजयोग), लेकिन वह उसका उपयोग न करे — तो वह कभी यात्रा नहीं कर सकता। वहीं किसी के पास टूटी नाव हो (दरिद्र योग), लेकिन वह लगातार उसे सुधारता जाए, तो वह समुद्र पार भी कर सकता है। यही कारण है कि कई राजयोग वाले व्यक्ति सफलता के बावजूद अपने जीवन से असंतुष्ट रहते हैं, और कई दरिद्र योग वाले संतोष, संयम और साधना के कारण अपने समाज में पूज्य हो जाते हैं। इसलिए ज्योतिष का यह संकेतक तंत्र आपकी तैयारी, सोच, और कर्म के बिना अधूरा है।
उपाय और सजगता
अगर किसी की कुंडली में दरिद्र योग या कमजोर राजयोग हैं, तो उसके लिए ज्योतिष में कुछ परंपरागत उपाय सुझाए जाते हैं — जैसे मंत्र जाप, दान, व्रत, ध्यान और विशेष ग्रहों की शांति। परंतु सबसे प्रभावशाली उपाय है — अपने कर्मों को सुधारना, समय को समझना, और अवसर की पहचान करना। शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है — “नास्ति दैवं परं बलम्” — यानी मनुष्य के लिए कोई दैव (भाग्य) इतना बलवान नहीं जितना उसका पुरुषार्थ। आप जब जागरूक होकर अपने ग्रह-योगों को दिशा देने लगते हैं, तो वे भी आपको नई ऊर्जा देते हैं। राजयोग निष्क्रिय पड़ा हो तो उसे कर्म से सक्रिय किया जा सकता है, और दरिद्र योग हो तो उसे विनम्रता, सेवा, और तप से संतुलित किया जा सकता है।
योग एक संकेत
“आपकी कुंडली का राजयोग आपको सिंहासन दिखा सकता है, लेकिन वहाँ बैठने के लिए रास्ता तय आपको करना होता है। दरिद्र योग रास्ते में कांटे बिछा सकता है, लेकिन चलना न छोड़ें तो मंज़िल पक्की है। क्योंकि जीवन में सबसे बड़ा योग है — सचेत और संघर्षशील मनुष्य।”