नई दिल्ली | 1 अगस्त 2025
बिहार चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया और चुनावी संस्थाओं की साख पर सीधा हमला करते हुए जो आरोप लगाए हैं, वह भारतीय राजनीति में भूचाल ला सकते हैं। संसद भवन के बाहर मीडिया से बातचीत में राहुल गांधी ने साफ शब्दों में कहा कि उनके पास इस बात के “खुले और बंद” सबूत हैं कि चुनाव आयोग (ECI) के कई अधिकारी—ऊपर से लेकर नीचे तक—“वोट चोरी” की साज़िश में शामिल रहे हैं। उन्होंने इसे केवल चुनावी भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि देशद्रोह बताया और धमकी दी कि “जो भी इसमें शामिल है, हम उसे नहीं छोड़ेंगे। चाहे वह व्यक्ति सेवा में हो या रिटायर हो चुका हो। हम उसे ढूंढ निकालेंगे।”
राहुल गांधी के इस आरोप ने अचानक ही देश की सबसे बड़ी संवैधानिक संस्था—चुनाव आयोग—को कटघरे में खड़ा कर दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि हाल ही में संपन्न मध्य प्रदेश, लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बाद जब 1 करोड़ नए वोटर्स को बिना उचित प्रक्रिया के वोटर लिस्ट में जोड़ा गया, तो कांग्रेस को शक हुआ कि कुछ गड़बड़ है। उनका दावा है कि जब चुनाव आयोग से बार-बार पूछे जाने के बावजूद कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला, तो विपक्ष ने छह महीने लंबी स्वतंत्र जांच शुरू की। उस जांच में जो निष्कर्ष सामने आए, उन्हें राहुल ने “एटम बम” कहकर मीडिया के सामने रखा और स्पष्ट किया कि आने वाले दिनों में इससे आयोग की विश्वसनीयता पर सबसे गंभीर संकट खड़ा हो जाएगा।
इस पूरे विवाद की जड़ बिहार की ‘Special Intensive Revision’ (SIR) प्रक्रिया है, जिसे लेकर विपक्ष पहले से ही सशंकित था। शुक्रवार को ही चुनाव आयोग ने बिहार की नई ड्राफ्ट वोटर लिस्ट प्रकाशित की है, और उसी दिन विपक्ष के नेता संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। कांग्रेस, राजद, जेडीयू और अन्य विपक्षी दलों का आरोप है कि यह पूरी प्रक्रिया सत्ताधारी बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लिए की जा रही है। राहुल गांधी के बयान ने इस विवाद को कहीं ज्यादा गंभीर और संवैधानिक बना दिया है। अब यह केवल एक राज्य की मतदाता सूची का मुद्दा नहीं, बल्कि पूरे देश में चुनाव प्रणाली की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर बहस बन गया है।
इस घटनाक्रम का राजनीतिक असर दूरगामी हो सकता है। अगर राहुल गांधी और INDIA गठबंधन अपने दावों के समर्थन में सबूत सार्वजनिक करते हैं, तो चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठ सकते हैं। वहीं अगर सत्तापक्ष इसे महज एक राजनीतिक नौटंकी करार देता है, तो यह तय है कि यह मुद्दा अगले लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ा विमर्श बनेगा। साथ ही, यह संभव है कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचे या राष्ट्रपति के संज्ञान में लाया जाए। यदि इन आरोपों की पुष्टि होती है, तो यह न केवल भारत की लोकतांत्रिक छवि को चोट पहुंचाएगा, बल्कि आंतरिक संस्थागत विश्वास को भी तोड़ेगा।
चुनाव आयोग की ओर से इस पर अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन आयोग पर इस समय दोहरी जिम्मेदारी है—पहली, अपनी निष्पक्षता को सिद्ध करना और दूसरी, जनता और राजनीतिक दलों के बीच खोते विश्वास को बहाल करना। अगर आयोग इस पर चुप रहता है, तो यह चुप्पी ही विपक्ष के आरोपों को बल दे सकती है। वहीं, यदि आयोग यह साबित करता है कि वोटर लिस्ट में कोई अनियमितता नहीं हुई और प्रक्रिया पारदर्शी रही है, तो यह राहुल गांधी के बयान को राजनीतिक स्टंट के रूप में दर्शा सकता है।
इन तमाम बातों के बीच एक बड़ा सवाल खड़ा होता है—क्या राहुल गांधी का यह आरोप देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की चेतावनी है या आगामी चुनावों को ध्रुवीकृत करने की सोची-समझी रणनीति? एक बात तय है, भारत में 2025 के चुनाव अब सिर्फ महंगाई, बेरोजगारी या विकास पर नहीं, बल्कि उस आधारभूत सवाल पर लड़े जाएंगे कि “क्या भारत में वोट असली हैं?”