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राहुल गांधी का सवाल — क्या दलितों की ज़मीन भी अब सत्ता की संपत्ति बन गई है?

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1800 करोड़ की जमीन, 300 करोड़ में खरीदी, टैक्स माफ कर के 500 रुपए स्टांप ड्यूटी 

महाराष्ट्र की राजनीति में इस वक्त एक बड़ा भूचाल आ गया है। पुणे की बहुचर्चित भूमि घोटाला केस में एनसीपी अध्यक्ष अजित पवार के बेटे पार्थ पवार का नाम सामने आने के बाद कांग्रेस ने केंद्र और राज्य सरकार दोनों पर तीखा हमला बोला है। राहुल गांधी ने इस घोटाले को “ज़मीन चोरी” करार देते हुए इसे दलितों के अधिकारों की खुली लूट बताया है। यह मामला सिर्फ़ एक आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की जड़ों पर प्रहार है — क्योंकि जिस ज़मीन पर दलितों के पुनर्वास और कल्याण की योजनाएँ बननी थीं, उसे सत्ता से जुड़े पूंजीपतियों को सौंप दिया गया। राहुल गांधी का यह सवाल सिर्फ़ एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि उस गहरी विडंबना की ओर इशारा है जो आज के शासन तंत्र में साफ़ दिखती है — जहां सत्ता और संपत्ति का रिश्ता अब खुलकर सामने आ गया है। उन्होंने कहा कि जब दलितों और वंचितों के नाम पर बनी सरकारी ज़मीनें सत्ता से जुड़े परिवारों की कंपनियों को औने-पौने दामों में बेच दी जाती हैं, जब ₹1800 करोड़ की ज़मीन ₹300 करोड़ में और ₹500 रुपये की स्टांप ड्यूटी में निपटा दी जाती है, तब सवाल उठना लाज़मी है — क्या दलितों की ज़मीनें अब विकास नहीं, सत्ता की संपत्ति बन चुकी हैं?

राहुल गांधी का यह आरोप दरअसल उस व्यवस्था की पोल खोलता है जहां नीति, न्याय और नैतिकता सब कुछ  ताक़तवरों के कब्ज़े में है — और आम आदमी, विशेषकर दलित, अपने अधिकार की लड़ाई में एक बार फिर ठगा जा रहा है।

“विकास नहीं, विलास की राजनीति”

राहुल गांधी ने कहा कि यह सरकार विकास की नहीं बल्कि विलास की राजनीति कर रही है — जहां गरीबों की ज़मीनों पर सत्ता के महल खड़े किए जा रहे हैं। उनका बयान केवल एक घोटाले की प्रतिक्रिया नहीं बल्कि पूरे शासन मॉडल की आलोचना है, जो सामाजिक समानता की जगह अब धनिकों के हितों की रक्षा में लगा है।

उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा —“महाराष्ट्र में ₹1800 करोड़ की सरकारी ज़मीन, जो दलितों और वंचितों के लिए आरक्षित थी, सिर्फ़ ₹300 करोड़ में मंत्री जी के बेटे की कंपनी को बेच दी गई। ऊपर से ₹500 की स्टांप ड्यूटी भरकर सब कुछ वैध कर दिया गया। मतलब एक तो लूट, और उस पर कानूनी मुहर में भी छूट! यही है मोदी सरकार की ‘नई पारदर्शिता’।”

दलितों की ज़मीन, सत्ता के सौदे और ‘वोट चोरी की सरकार’

कांग्रेस नेता ने कहा कि यह ज़मीन महाराष्ट्र सरकार के राजस्व विभाग के अधीन थी और अनुसूचित जाति के पुनर्वास प्रोजेक्ट के लिए आरक्षित थी। आरोप है कि पार्थ पवार की कंपनी ने सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से ₹1800 करोड़ की ज़मीन को मात्र ₹300 करोड़ में खरीदा और उस पर स्टांप ड्यूटी केवल ₹500 जमा की।

राहुल गांधी ने कहा —“यह वही सरकार है जो ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा देती है लेकिन असल में ‘सबका अधिकार, कुछ का विकास’ करती है। यह सौदा न सिर्फ़ भ्रष्टाचार का उदाहरण है बल्कि यह दिखाता है कि दलितों और पिछड़ों के नाम पर बने कानूनों को किस तरह मुनाफे के लिए तोड़ा जा रहा है।”

उन्होंने यह भी जोड़ा कि भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियां जानती हैं कि चाहे जितनी भी लूट हो, वोट चोरी के सिस्टम से वे फिर सत्ता में लौट आएंगी। “यह सरकार जनता के भरोसे पर नहीं, बल्कि चोरी के वोटों पर चल रही है। यही कारण है कि इनसे न लोकतंत्र की परवाह है, न संविधान की, और न ही दलितों के अधिकारों की।”

मोदी सरकार की चुप्पी बहुत कुछ कहती है

राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला बोलते हुए पूछा  “मोदी जी, आपकी चुप्पी बहुत कुछ कहती है। क्या इसलिए मौन हैं क्योंकि आपकी सरकार उन्हीं लुटेरों पर टिकी है जो दलितों, वंचितों और किसानों का हक़ हड़पते हैं? अगर कोई आम आदमी ₹10 की स्टांप ड्यूटी चुकाने में देरी करे तो नोटिस आ जाता है, लेकिन जब ₹1800 करोड़ की ज़मीन ₹300 करोड़ में बेची जाती है, तो पूरा सिस्टम अंधा-बहरा हो जाता है।”

उन्होंने कहा कि यह मामला केवल भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि न्याय और समानता के मूल सिद्धांतों पर हमला है। राहुल गांधी ने चेतावनी दी कि कांग्रेस इस मुद्दे को संसद से सड़क तक उठाएगी और यह सुनिश्चित करेगी कि दलितों की ज़मीन और अधिकार किसी भी सूरत में किसी कॉरपोरेट या राजनीतिक परिवार की संपत्ति न बनें।

राजनीतिक गलियारों में हड़कंप, विपक्ष हमलावर

अजित पवार के बेटे पार्थ पवार पर लगे आरोपों के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में बवंडर मच गया है। भाजपा की सहयोगी एनसीपी के भीतर असहजता देखी जा रही है। कांग्रेस और शिवसेना (UBT) ने इसे “सत्ता की डील और परिवारवाद की लूट” बताया है। विपक्ष का कहना है कि महाराष्ट्र में विकास और पारदर्शिता की जगह अब “मनी-लॉन्ड्रिंग और प्रॉपर्टी डील्स” का नया मॉडल बन गया है।

लोकतंत्र में जवाबदेही की परीक्षा

राहुल गांधी के इस बयान ने एक बार फिर उस मूल प्रश्न को जीवित कर दिया है जो हर बार किसी घोटाले के बाद जनता के मन में उठता है — क्या सत्ता में बैठे लोग वास्तव में कानून से ऊपर हैं? क्या दलितों और वंचितों के नाम पर बनी योजनाएँ अब सिर्फ़ अमीरों की संपत्ति बढ़ाने के औज़ार बन चुकी हैं? यह मामला सिर्फ़ एक ज़मीन का नहीं, बल्कि ज़मीर का है। और जैसा राहुल गांधी ने कहा — “जब सरकार खुद लुटेरों के सहारे चल रही हो, तो उसे अपनी ही बनाई लूट पर चुप रहना पड़ता है — क्योंकि इस तरह हर लूट के लिए पहले से एक नया ‘बलि का बकरा’ तैयार रखा गया होता है।”

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