पटना/नई दिल्ली 15 अक्टूबर 2025
बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मियों के बीच प्रशांत किशोर (PK) के चुनाव न लड़ने के ऐलान ने सियासी हलचल मचा दी है। बिहार ही नहीं, बल्कि देशभर में इस फैसले को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों तक एक ही सवाल गूंज रहा है — क्या प्रशांत किशोर वाकई बदलाव लाने आए हैं, या किसी छिपी सियासी डील का हिस्सा हैं?
राजनीतिक विश्लेषकों और विपक्षी दलों का कहना है कि प्रशांत किशोर का “जन सुराज आंदोलन” असल में एक “वोट कटुआ प्रोजेक्ट” है, जो बीजेपी को परोक्ष रूप से फायदा पहुंचाने के लिए तैयार किया गया है। कई लोगों ने आरोप लगाया है कि प्रशांत किशोर पहले भी मोदी और नीतीश कुमार दोनों के एजेंट के रूप में काम कर चुके हैं, और उनकी भूमिका हमेशा सत्ता के अनुकूल रही है।
जनता के बीच भी यह चर्चा जोरों पर है कि अगर PK सचमुच राजनीति बदलना चाहते हैं, तो खुद मैदान में उतरने से डर क्यों रहे हैं? राजनीतिक टिप्पणीकार ने तंज कसते हुए कहा, “राजनीति बदलने का ढिंढोरा पीटने वाला व्यक्ति खुद चुनाव नहीं लड़ रहा — इससे ज्यादा हास्यास्पद बात क्या हो सकती है?”
दरअसल, प्रशांत किशोर ने हाल ही में बयान दिया था कि वे बिहार विधानसभा चुनाव 2025 नहीं लड़ेंगे, बल्कि जनता के बीच रहकर आंदोलन को आगे बढ़ाएंगे। मगर इस घोषणा ने उनके नेतृत्व और ईमानदारी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
कई विपक्षी नेताओं का कहना है कि जन सुराज आंदोलन अब धीरे-धीरे “BJP के लिए बैकडोर एंट्री रूट” बन गया है। बिहार की जनता अब यह समझ रही है कि PK का “सुराज” नहीं, बल्कि सियासी सुराग बीजेपी की रणनीति से जुड़ा है। अब देखना यह होगा कि प्रशांत किशोर इस बढ़ते अविश्वास का जवाब कैसे देते हैं — जनता के बीच या प्रेस कॉन्फ्रेंस के मंच से?