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ओली पर टूटा जनओला: भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी से ध्वस्त हुई नेपाल सरकार

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काठमांडू 9 सितम्बर 2025

नेपाल में जनता का विस्फोट

नेपाल की सड़कों पर युवाओं का गुस्सा इस कदर भड़का कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को आखिरकार कुर्सी छोड़नी पड़ी। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने की तानाशाही मानसिकता ने Gen Z को आगबबूला कर दिया और आंदोलन संसद की दीवारों तक जा पहुंचा। यह सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं था, यह युवा पीढ़ी की आवाज थी जिसने भ्रष्ट सत्ता को उखाड़ फेंका।

भ्रष्टाचार की अंधेरी गाथा

ओली सरकार पर लगातार यह आरोप लगता रहा कि सार्वजनिक योजनाओं से लेकर सरकारी ठेकों तक सब कुछ चुने हुए उद्योगपतियों और राजनीतिक दोस्तों को बांटा गया। सरकारी खजाने का पैसा विकास की जगह कुछ चुनिंदा घरानों की तिजोरियों में जाता रहा। फर्जी योजनाएं, अधूरी परियोजनाएं और बड़े ठेकों में धांधली ही इस शासन की असली पहचान बन चुकी थी।

बेरोजगारी से टूटे सपने

नेपाल का युवा वर्ग सबसे ज्यादा पीड़ित रहा। शिक्षा पूरी करने के बाद भी नौकरियां गायब हो चुकी थीं। लाखों युवा मजबूरी में विदेशों का रुख करने लगे और देश का भविष्य खाली होता चला गया। जिनके पास विदेश जाने की ताकत नहीं थी, वे टूटी व्यवस्था में बेरोजगारी और निराशा झेलते रहे। यही दुख और निराशा आज क्रांति की ज्वाला में बदल गई।

महंगाई ने तोड़ी कमर

चावल, दाल, ईंधन और रोजमर्रा की चीजें आसमान छू चुकी थीं। गरीब और मध्यमवर्ग महंगाई के बोझ तले पिस रहे थे, जबकि मंत्री और बड़े नेता महंगी गाड़ियों और विलासिता भरे जीवन का दिखावा करते रहे। जनता की जेब से निकला हर रुपया भ्रष्टाचार और फिजूलखर्ची में बहाया गया, जिससे महंगाई पर काबू पाना असंभव हो गया।

चीन की कठपुतली सत्ता

ओली सरकार की विदेशी नीति भी जनता को अपमानित करने वाली थी। प्रधानमंत्री ने नेपाल को बार-बार चीन के इशारों पर नचाया। आत्मसम्मान और संप्रभुता को ताक पर रखकर नेपाल का भविष्य अंतरराष्ट्रीय समझौतों में गिरवी रख दिया गया। जनता को साफ दिखने लगा कि सरकार देश की बजाय केवल अपनी अंतरराष्ट्रीय दलाली में लगी हुई है।

जनता की क्रांति और सत्ता का पतन

ओली सरकार का पतन केवल एक इस्तीफे की कहानी नहीं, बल्कि वह क्रांति है जो दशकों से सड़ते भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ जनता ने छेड़ दी है। सोशल मीडिया बैन इस विद्रोह की चिंगारी बना, लेकिन असल गुस्से की जड़ें बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और महंगाई की गहरी खाई में थीं। संसद के बाहर गूंजते नारों ने बता दिया कि अब नेपाल किसी भ्रष्ट नेता या पार्टी की जागीर नहीं रह गया—यह जनता का लोकतंत्र है और जनता ही अब इसकी दिशा तय करेगी।

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