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प्रशांत किशोर मीडिया की उपज हैं, जनता के नहीं, ‘उनके पास देने को कुछ नहीं, बस बातें हैं : तेजस्वी यादव

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पटना, 27 अक्टूबर 2025 | विशेष रिपोर्ट

बिहार की राजनीतिक तपिश एक बार फिर अपने चरम पर है, खासकर आगामी विधानसभा चुनावों की आहट के साथ। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्रमुख नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने हाल ही में तीखे शब्दों में चुनावी रणनीतिकार से सक्रिय ‘राजनीतिक आकांक्षी’ बने प्रशांत किशोर (PK) पर सीधा हमला बोला है। मीडिया से विशेष बातचीत में तेजस्वी ने दो टूक शब्दों में कहा कि “प्रशांत किशोर केवल मीडिया की उपज हैं, उन्हें किसी भी मायने में जननेता नहीं कहा जा सकता।” तेजस्वी का यह बयान प्रशांत किशोर के ‘जन सुराज अभियान’ की बढ़ती पब्लिसिटी के खिलाफ एक बड़ा राजनीतिक पलटवार है। उन्होंने अपने तर्क को विस्तार देते हुए कहा कि जो व्यक्ति वास्तविक जनसंघर्षों में कभी शामिल नहीं हुआ, जिसने सड़क पर उतरकर लोगों की तकलीफों को करीब से नहीं समझा, वह केवल टीवी कैमरों और सोशल मीडिया के सहारे खुद को नेता के रूप में स्थापित नहीं कर सकता। उनकी राजनीति का आधार मिट्टी नहीं, बल्कि केवल मीडिया की सुर्खियाँ हैं, जो अंततः बिहार की जागरूक जनता द्वारा खारिज कर दी जाएँगी।

“PK के पास जनता के लिए कुछ नहीं, बस भाषण और प्रचार है” — तेजस्वी यादव का गंभीर आरोप

तेजस्वी यादव ने एक गहन इंटरव्यू में प्रशांत किशोर की राजनीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि बिहार की जनता अब यह बात स्पष्ट रूप से समझ चुकी है कि “प्रशांत किशोर एक प्रचारक हैं, वे किसी भी प्रकार से जनसेवक की भूमिका में नहीं हैं।” तेजस्वी ने सीधे तौर पर हमला करते हुए कहा: “प्रशांत किशोर मीडिया की उपज हैं, वे जननेता नहीं। वो सिर्फ पब्लिक रिलेशन, डेटा एनालिसिस और चुनावी रणनीति के सहारे नेताओं को सलाह देने वाले व्यक्ति थे। उनके पास जमीनी संघर्ष करने या जनता के साथ भावनात्मक रूप से खड़े होने की ताकत और अनुभव का अभाव है।”

 तेजस्वी ने जोर देकर कहा कि पीके के पास बिहार की करोड़ों जनता को देने के लिए कोई ठोस विचार, कोई स्पष्ट विजन या कोई प्रभावी नीति नहीं है; उनके पास है तो बस खोखले भाषणों और आकर्षक विज्ञापनों का अंबार। तेजस्वी ने कहा कि आज की राजनीति केवल आकर्षक स्लोगन या पावरपॉइंट प्रेजेंटेशन से नहीं चलती, जनता अब ठोस परिणाम और संघर्ष की भागीदारी चाहती है। उन्होंने पीके की राजनीति को विशुद्ध रूप से ‘पॉलिटिकल क्लास’ तक सीमित बताया, जबकि उनका मानना है कि असली राजनीति ‘पब्लिक क्लास’ के बीच में रहकर होती है।

“बिहार को प्रयोगशाला नहीं चाहिए, स्थिरता चाहिए” — नीतिगत विमर्श पर तेजस्वी का फोकस

तेजस्वी यादव ने प्रशांत किशोर की राजनीति को ‘प्रयोग’ करार देते हुए कहा कि बिहार राज्य पहले ही कई राजनीतिक प्रयोगों का शिकार हो चुका है — जिसमें कभी ‘सुशासन बाबू’ के नाम पर शासन हुआ, तो कभी ‘डबल इंजन सरकार’ के वादे किए गए। उन्होंने कहा कि अब ‘जन सुराज अभियान’ के नाम पर एक और प्रयोग की तैयारी हो रही है। तेजस्वी ने स्पष्ट लहजे में कहा कि “बिहार अब किसी राजनीतिक प्रयोगशाला का विषय नहीं है, इसे अब दिखावे से थक चुकी जनता के लिए वास्तविक स्थिरता चाहिए।” 

उनका मानना है कि जनता दिखावटी राजनीति से उब चुकी है और वह ऐसे नेता को चाहती है जो उनके सुख-दुख में साथ खड़ा हो, न कि सिर्फ कैमरे के सामने खड़े होकर भाषण देता रहे। तेजस्वी ने पीके की राजनीति की आलोचना करते हुए कहा कि उनकी पूरी राजनीति डेटा और सर्वे तक सीमित है, जबकि बिहार की असली राजनीति जनता के दर्द को समझने, उनकी समस्याओं को जीने और उनके बीच रहकर संघर्ष करने से पैदा होती है। उन्होंने कहा कि बिहार के मतदाता अब पावरपॉइंट प्रेजेंटेशन पर नहीं, बल्कि भावनाओं, भरोसे और संघर्ष की विश्वसनीयता पर वोट करते हैं।

तेजस्वी यादव का राजनीतिक पलटवार — “PK को जनता में नहीं मिलती कोई पहचान”

तेजस्वी यादव ने अपने राजनीतिक अनुभव का हवाला देते हुए कहा कि प्रशांत किशोर की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि उनके पास कोई राजनीतिक परंपरा, कोई जमीनी संघर्ष का इतिहास, या जनता में कोई स्वाभाविक पहचान नहीं है। उन्होंने कहा कि “राजनीति में सिर्फ रणनीति ही नहीं चलती, बल्कि जनविश्वास और जनस्वीकार्यता चलती है।” तेजस्वी ने व्यंग्य करते हुए चुनौती दी: “वो दावा करते हैं कि बिहार को पूरी तरह से बदल देंगे। लेकिन आप बिहार के किसी भी सामान्य गाँव में जाकर पूछ लीजिए, कितने लोग प्रशांत किशोर को उनके नाम से जानते और पहचानते हैं?” उन्होंने कहा कि एक सच्चा नेता वोट से पहले जनसंपर्क और भावनात्मक जुड़ाव से अपनी पहचान बनाता है। 

पीके के पास वह जमीनी जुड़ाव ही नहीं है, क्योंकि उन्हें सिर्फ कैमरे की फ्लैश और मीडिया की चकाचौंध में दिखना पसंद है। तेजस्वी ने सवाल उठाया कि जो व्यक्ति कभी विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा, जिसने किसी पंचायत या संगठन में जमीनी स्तर पर काम नहीं किया, वह बिहार की करोड़ों जनता की नब्ज़ को गहराई से कैसे समझेगा? उन्होंने प्रशांत किशोर की राजनीतिक कार्यशैली को मार्केटिंग प्रोजेक्ट करार दिया, जिसमें स्लोगन बेचने की कोशिश की जा रही है, लेकिन बिहार की जागरूक जनता अब सिर्फ प्रचार नहीं, बल्कि ठोस परिणाम चाहती है।

“PK का ‘जन सुराज अभियान’ सिर्फ पब्लिसिटी स्टंट है” — तेजस्वी का सीधा तंज

तेजस्वी यादव ने प्रशांत किशोर के “जन सुराज अभियान” को केवल एक पब्लिसिटी स्टंट और ब्रांडिंग प्रोजेक्ट बताते हुए उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि पीके के इस अभियान में जनता की वास्तविक भागीदारी कम है और प्रचार की चमक अत्यधिक है। तेजस्वी ने आरोप लगाया: “वे जहां भी जाते हैं, वहां सबसे पहले मीडिया का कैमरा जाता है, और उसके बाद उनका बयान आता है। जबकि एक असली जन आंदोलन में लोग अपनी मर्जी से पहले आते हैं, और मीडिया बाद में उस आंदोलन को कवर करने पहुँचता है।”

 तेजस्वी ने तंज कसते हुए कहा कि “PK के अभियान में जोश कम है, लेकिन जुमलों की भरमार है। यह कोई जन आंदोलन नहीं है, बल्कि एक सुनियोजित कॉर्पोरेट ब्रांडिंग प्रोजेक्ट है।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जब कोई व्यक्ति जनता से जुड़ने के बजाय केवल पब्लिसिटी एजेंसियों पर भरोसा करता है, तो उसका राजनीतिक परिणाम भी वही होता है — खाली शब्दों, बड़े-बड़े दावों और शून्य जमीनी बदलाव का ढेर। उन्होंने कहा कि बिहार की जनता अब उन ‘मैनेजरों’ पर भरोसा नहीं करेगी जो सिर्फ आलोचना करते हैं लेकिन बिहार को बेहतर बनाने के लिए कोई ठोस नीतिगत समाधान या विस्तृत योजना पेश नहीं करते।

 बिहार की सियासत में विचार बनाम प्रचार की जंग

तेजस्वी यादव के ये तीखे बयान बिहार की राजनीति में एक निर्णायक “विचार बनाम प्रचार” की वैचारिक बहस को जन्म देते हैं। एक तरफ राष्ट्रीय जनता दल (RJD) अपने पारंपरिक जन संघर्ष, सामाजिक न्याय और जमीनी संपर्क के आधार पर राजनीति कर रही है। दूसरी तरफ, प्रशांत किशोर डेटा, तकनीक, आधुनिक रणनीति और नए नारों के सहारे खुद को बिहार के लिए एक ‘तीसरे विकल्प’ के रूप में स्थापित करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। लेकिन तेजस्वी यादव का मूलभूत और निर्णायक तर्क अत्यंत स्पष्ट है — “जो नेता जनता के संघर्षों में नहीं रहा, जिसने उनके दर्द को नहीं जिया, वह कभी भी जनता का विश्वसनीय नेता नहीं बन सकता।” 

बिहार की जनता को अंततः यही तय करना है कि वे संघर्ष की राजनीति करने वाले नेता पर भरोसा करती है या फिर केवल रणनीति और ब्रांडिंग पर आधारित एक राजनीतिक ‘सेल्समैन’ पर। तेजस्वी यादव के अंतिम शब्द स्थिति को पूरी तरह स्पष्ट करते हैं: “प्रशांत किशोर जननेता नहीं हैं, वे एक जनरेटेड इमेज हैं — और यह कृत्रिम इमेज, जब जमीनी सच्चाई और जनता के संघर्ष से टकराती है, तो अनिवार्य रूप से टूट जाती है।”

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