नई दिल्ली, 27 अक्टूबर 2025 | विशेष रिपोर्ट
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की हवा एक बार फिर से जानलेवा ज़हर में तब्दील हो चुकी है, और इस बार का खतरा सिर्फ मौसमी नहीं, बल्कि दीर्घकालिक और घातक है। जैसे-जैसे सर्दी का मौसम अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है, वैसे-वैसे राजधानी की हवा में घुलता धुआं और सूक्ष्म प्रदूषक कण (PM 2.5 व PM 10) लोगों की सांसों में उतरकर एक ‘साइलेंट किलर’ की भूमिका निभा रहे हैं। शहर के प्रमुख अस्पतालों की आपातकालीन सेवाओं में इन दिनों सांस लेने में तकलीफ, लगातार खांसी, सीने में दर्द और आँखों में गंभीर जलन की शिकायतों वाले मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का स्पष्ट मत है कि यह समस्या अब केवल पराली या दिवाली की आतिशबाजी तक सीमित नहीं रही है, बल्कि दिल्ली के लिए यह एक स्थायी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (Permanent Health Emergency) का रूप ले चुकी है। अपोलो हॉस्पिटल के सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट और पल्मोनरी डिजीज विशेषज्ञ डॉ. संदीप गोयल ने एक गंभीर चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि दिल्ली की हवा अब “धीमी मौत” का पर्याय बन चुकी है। उन्होंने वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर बताया कि प्रदूषित हवा में लगातार रहने से फेफड़ों का कैंसर, दिल की मांसपेशियों की कमजोरी, ब्लड प्रेशर में गंभीर असंतुलन और हृदय की पंपिंग क्षमता में कमी जैसे अपरिवर्तनीय और जानलेवा स्वास्थ्य परिणाम सामने आ रहे हैं।
हर सांस में जहर — शरीर का हर अंग हो रहा है कमजोर
डॉ. संदीप गोयल ने अपने विश्लेषण में विस्तार से बताया कि दिल्ली की हवा में मौजूद सूक्ष्म कण (PM 2.5) सबसे अधिक खतरनाक क्यों हैं। उन्होंने कहा कि ये कण इतने छोटे होते हैं कि वे हवा में लंबे समय तक बने रहते हैं और सांस लेने पर सीधे फेफड़ों से होते हुए रक्त प्रवाह (Bloodstream) में पहुँच जाते हैं। रक्तप्रवाह में पहुँचने के बाद ये सूक्ष्म जहर धीरे-धीरे शरीर के अन्य महत्वपूर्ण अंगों — दिल, मस्तिष्क और किडनी — तक पहुँचकर उन्हें प्रभावित करते हैं। डॉ. गोयल ने कहा: “प्रदूषित हवा केवल सांस की बीमारियाँ जैसे अस्थमा या ब्रोंकाइटिस ही नहीं लाती, बल्कि यह शरीर की सभी कार्य प्रणालियों को अंदरूनी तौर पर कमजोर कर देती है।
यह एक धीमा, अदृश्य जहर है जो धीरे-धीरे हमारे शरीर की प्राकृतिक कार्यक्षमता को खत्म कर देता है।” विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि जो लोग पहले से ही अस्थमा, सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज), या किसी भी प्रकार के हृदय रोग से पीड़ित हैं, उनके लिए दिल्ली की हवा अब जीवन-मरण का सवाल बन चुकी है। हाल के हफ्तों में अपोलो, एम्स और गंगाराम जैसे बड़े अस्पतालों में सांस की तकलीफ वाले मरीजों की संख्या में 35\% तक की भारी वृद्धि दर्ज की गई है, जिसका सबसे अधिक और घातक असर बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ रहा है।
दिल की पंपिंग क्षमता पर असर, रक्त में ऑक्सीजन की कमी का खतरा
अपोलो अस्पताल के कार्डियोलॉजिस्टों ने हालिया जांचों और अध्ययनों में एक चिंताजनक प्रवृत्ति पाई है: प्रदूषित हवा में लंबे समय तक लगातार रहने से दिल की पंपिंग क्षमता (Ejection Fraction) पर नकारात्मक असर पड़ता है और यह क्षमता घटने लगती है। हवा में मौजूद नाइट्रोजन ऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे अत्यधिक हानिकारक तत्व रक्त में मिलने वाली ऑक्सीजन की मात्रा को गंभीर रूप से कम कर देते हैं। इसका सीधा और विनाशकारी असर दिल की मांसपेशियों की ताकत पर पड़ता है।
डॉ. गोयल के अनुसार: “ऑक्सीजन की मात्रा कम होने के कारण दिल को शरीर में पर्याप्त रक्त पंप करने के लिए लगातार अधिक मेहनत करनी पड़ती है। यह निरंतर तनाव और अतिरिक्त प्रयास की स्थिति अंततः हृदयाघात (Heart Attack), हृदय विफलता (Heart Failure) और अनियमित धड़कनों (Arrhythmias) के खतरे को कई गुना बढ़ा देती है।” उन्होंने बताया कि अब ऐसे मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है, जिनका पूर्व में कोई कार्डियक इतिहास नहीं रहा था, लेकिन प्रदूषण के निरंतर संपर्क के कारण उनके दिल की पंपिंग क्षमता जो सामान्यतः 60\% होती है, वह घटकर 40-45\% तक पहुँच गई है। यह दर्शाता है कि दिल धीरे-धीरे ‘थकने’ लगा है, और मरीज को सामान्य जीवन में भी बिना किसी शारीरिक मेहनत के सांस फूलने की शिकायत होने लगती है।
कैंसर का खतरा बढ़ा — हवा में ‘कार्सिनोजेनिक’ तत्वों का खतरनाक स्तर
डॉ. गोयल ने एक और बेहद गंभीर पहलू की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए बताया कि दिल्ली की हवा में अब “कार्सिनोजेनिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (PAHs)” की मात्रा खतरनाक स्तर तक बढ़ चुकी है। ये तत्व वैज्ञानिक रूप से फेफड़ों का कैंसर (Lung Cancer), गले का कैंसर (Throat Cancer) और यहाँ तक कि रक्त कैंसर (Blood Cancer) से भी सीधे जुड़े माने जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्टों के अनुसार, लगातार 5 से 10 वर्षों तक इतनी गंभीर रूप से प्रदूषित हवा में सांस लेना फेफड़ों में स्थायी कोशिका क्षति और DNA स्तर पर परिवर्तन का कारण बन सकता है। डॉ. गोयल ने अपनी बात को बल देते हुए कहा: “हर साल सर्दियों के दौरान, दिल्ली की हवा सचमुच एक जहरीले रासायनिक मिश्रण में बदल जाती है।
यह मिश्रण हमारे शरीर के DNA स्तर पर परिवर्तन पैदा करता है, जो अंततः कैंसर की कोशिकाओं को जन्म देता है। यह स्थिति धीरे-धीरे शरीर के भीतर एक विस्फोटक और घातक स्वास्थ्य स्थिति तैयार करती है।” एम्स के पूर्व पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. रणदीप गुलेरिया भी इस बात से सहमत हैं कि दिल्ली की हवा अब केवल एक अस्थायी मौसमी खतरा नहीं रही, बल्कि यह दीर्घकालिक और लाइलाज बीमारियों की जड़ बन चुकी है। उनका अनुमान है कि अगर प्रदूषण का यह स्तर यूँ ही बना रहा, तो अगले दस सालों में दिल्ली में रहने वाले हर चौथे व्यक्ति को गंभीर श्वसन या हृदय संबंधी बीमारी का सामना करना पड़ सकता है।
डॉक्टरों की चेतावनी — अब नहीं संभले तो ‘स्वास्थ्य आपातकाल’ घोषित करना पड़ेगा
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने अब साफ शब्दों में यह घोषणा कर दी है कि दिल्ली की स्थिति को केवल सामान्य प्रदूषण नियंत्रण के प्रशासनिक उपायों से नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे ‘स्वास्थ्य आपातकाल’ (Health Emergency) के रूप में तुरंत मान्यता देनी होगी। डॉक्टरों ने सरकार को सुझाव दिया है कि स्कूलों में एयर मॉनिटरिंग सिस्टम को अनिवार्य किया जाना चाहिए, प्रदूषण के उच्च स्तर के दौरान बच्चों के बाहरी खेलकूद पर सीमित प्रतिबंध लगाने चाहिए, और सभी बड़े अस्पतालों में “पल्मोनरी हेल्थ वार्ड्स” की व्यवस्था तुरंत की जानी चाहिए। डॉ. गोयल ने एक भयावह आंकड़ा देते हुए चेतावनी दी: “अगर मौजूदा हालात ऐसे ही बने रहे, तो अगले कुछ वर्षों में दिल्ली में औसत जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) कम से कम 6 से 8 साल तक घट सकती है। यह हवा अब किसी प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदा से कम नहीं है।” उन्होंने जोर देकर कहा कि नागरिकों, सरकार और सभी संबंधित संस्थानों को अब मिलकर इस संकट से लड़ना होगा, क्योंकि यह लड़ाई अब केवल हवा को साफ करने की नहीं, बल्कि दिल्ली के नागरिकों के जीवन को बचाने की है।
दिल्ली की हवा नहीं, अब ज़िंदगी दांव पर
यह कड़वी सच्चाई है कि दिल्ली की हवा अब केवल “प्रदूषित” नहीं रही है — यह एक ऐसे घातक, अदृश्य जहर में तब्दील हो चुकी है जो हर सांस के साथ शरीर में गहराई तक उतर रहा है। यह जहर भले ही आंखों को दिखाई न दे, पर यह हमारे दिल, फेफड़ों और मस्तिष्क को अंदर ही अंदर कमजोर और बीमार कर रहा है। यदि सरकार, नागरिक और प्रशासनिक संस्थान अब भी इस आसन्न खतरे को गंभीरता से नहीं लेंगे और निर्णायक कदम नहीं उठाएँगे, तो कुछ ही वर्षों में दिल्ली वह शहर बन जाएगा जहाँ साफ हवा में सांस लेना “नागरिक अधिकार” नहीं, बल्कि “जानलेवा जोखिम” माना जाएगा। डॉ. गोयल के शब्दों में, जो इस संकट की भयावहता को दर्शाते हैं: “दिल्ली में अब यह जहर हमारी सांस से नहीं, बल्कि हमारे जीवन से सीधा लड़ रहा है — और यह लड़ाई समय के खिलाफ है।”
 

 


