विशेष संवाददाता
लखनऊ/रामपुर 13 अक्टूबर
उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर उस मोड़ पर पहुंच गई है जहाँ सत्ता और रणनीति का संगम दिखाई दे रहा है। राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार ने समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता और रामपुर के कद्दावर मुस्लिम चेहरा आज़म ख़ान की ‘वाई श्रेणी सुरक्षा’ बहाल करने का फैसला लिया है। यह फैसला जितना प्रशासनिक दिखता है, उतना ही राजनीतिक रूप से प्रतीकात्मक भी है — क्योंकि आज़म ख़ान हाल ही में लगभग दो वर्षों की जेल यात्रा के बाद बाहर आए हैं। सरकार के इस निर्णय ने न सिर्फ सत्ता गलियारों में बल्कि विपक्षी खेमे में भी गहरी हलचल पैदा कर दी है।
सूत्रों के अनुसार, यूपी गृह विभाग को हाल ही में एक खुफिया रिपोर्ट मिली थी जिसमें आज़म ख़ान के जीवन पर संभावित खतरे की आशंका जताई गई थी। रिपोर्ट में कहा गया कि उनकी रिहाई के बाद रामपुर और आसपास के इलाकों में उनकी लोकप्रियता एक बार फिर बढ़ी है और यह स्थिति कुछ स्थानीय समूहों और विरोधियों को नागवार गुज़री है। इसी आधार पर गृह विभाग ने सुरक्षा का पुनर्मूल्यांकन करते हुए आज़म ख़ान को ‘वाई श्रेणी सुरक्षा’ देने का आदेश जारी किया। इस सुरक्षा में अब उनके साथ हर समय एक पायलट कार, एस्कॉर्ट वाहन, व्यक्तिगत सुरक्षा अधिकारी (PSO), और हथियारबंद गार्ड तैनात रहेंगे।
लेकिन सवाल यही है कि — क्या यह फैसला केवल सुरक्षा के लिए है, या इसके पीछे राजनीति की कोई गहरी परतें हैं? उत्तर प्रदेश की राजनीति में आज़म ख़ान सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि मुस्लिम प्रतिनिधित्व और सपा की वैचारिक जड़ का प्रतीक हैं। समाजवादी पार्टी के भीतर लंबे समय से यह चर्चा रही है कि पार्टी नेतृत्व ने आज़म ख़ान की उपेक्षा की, खासकर उनके जेल में रहने के दौरान। अब जब वे बाहर हैं, उनके समर्थक और पुराने सपा कैडर फिर सक्रिय हो रहे हैं। ऐसे में योगी सरकार द्वारा सुरक्षा बहाल करना यह संदेश भी देता है कि भाजपा सरकार मुस्लिम समुदाय के प्रभावशाली चेहरों को लेकर आक्रामक नहीं बल्कि “नियंत्रित संवाद” की नीति अपना रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम योगी सरकार की रणनीतिक दूरदर्शिता का हिस्सा है। 2027 के विधानसभा चुनाव और उससे पहले लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र भाजपा अब “एकपक्षीय टकराव” की छवि से बचना चाहती है। आज़म ख़ान जैसे नेताओं को सम्मानजनक दूरी के साथ सुरक्षा देना भाजपा को एक संवेदनशील और तटस्थ शासन का चेहरा दिखाने में मदद करेगा। यह नीति उन वर्गों में भरोसा पैदा कर सकती है जो अब तक भाजपा से दूरी बनाए हुए हैं — खासकर अल्पसंख्यक समाज के प्रभावशाली तबके में।
हालांकि सपा ने इस कदम को “राजनीतिक ढोंग” बताया है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा — “जब आज़म साहब को झूठे मुकदमों में फँसाया गया, तब सरकार को उनकी सुरक्षा की याद नहीं आई। अब जब जनता उनके साथ खड़ी हो रही है, तो अचानक खतरा दिखने लगा?” सपा का तर्क है कि योगी सरकार की यह चाल राजनीतिक बैलेंसिंग की है, ताकि रामपुर और पश्चिमी यूपी में भाजपा का नुकसान कम किया जा सके, जहाँ अल्पसंख्यक वोटर बड़ी संख्या में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
वहीं भाजपा के भीतर से अलग संकेत मिल रहे हैं। एक वरिष्ठ भाजपा रणनीतिकार ने नाम न बताने की शर्त पर कहा — “यह फैसला न सॉफ्ट है, न हार्ड। यह पूरी तरह लॉ-एंड-ऑर्डर की दृष्टि से लिया गया कदम है। कोई भी व्यक्ति, चाहे वह सपा का हो या भाजपा का, अगर खतरे में है तो उसे सुरक्षा मिलनी चाहिए।” भाजपा चाहती है कि यह संदेश साफ़ जाए कि योगी सरकार बदले की राजनीति नहीं करती, बल्कि शासन-प्रशासन को नियमों के अनुसार चलाती है।
फिर भी, यह बात छिपी नहीं है कि आज़म ख़ान अब भी सपा में मुस्लिम जनाधार के सबसे प्रभावशाली नेता हैं। उनकी छवि “पीड़ित नेता” के रूप में उभर रही है, जो भाजपा और सपा दोनों के लिए चुनौती है। भाजपा यह जानती है कि अगर आज़म ख़ान सक्रिय राजनीति में फिर से लौटते हैं, तो वे न केवल सपा के भीतर समीकरण बदल सकते हैं, बल्कि पूरे पश्चिमी यूपी में मुस्लिम वोट बैंक की दिशा पर असर डाल सकते हैं।
आज की तारीख में यह फैसला सिर्फ एक प्रशासनिक आदेश नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संकेत है — यह बताने का कि योगी सरकार अपने विरोधियों को भी पूरी सुरक्षा और सम्मान देने की नीति पर चल रही है। यह नीति आने वाले वर्षों में भाजपा की “सबका साथ, सबका विश्वास” रणनीति के नए संस्करण के रूप में देखी जा सकती है, जहाँ टकराव की राजनीति को छोड़कर “नियंत्रित संवाद” और “सुरक्षा-संवेदना” की राजनीति को आगे बढ़ाया जा रहा है।
आज़म ख़ान की ‘वाई श्रेणी सुरक्षा’ की बहाली भले ही सुरक्षा कारणों से की गई हो, लेकिन इसका असर न सिर्फ रामपुर की गलियों में, बल्कि लखनऊ के सत्ता गलियारों से लेकर दिल्ली की राजनीतिक गणनाओं तक महसूस किया जाएगा।