नई दिल्ली, 28 जुलाई 2025 – पहलगाम आतंकी हमले को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम की एक टिप्पणी ने देश की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। उन्होंने हमलावरों को पाकिस्तान से आया हुआ बताने पर सवाल खड़ा करते हुए पूछा, “क्या सबूत है कि वे पाकिस्तान से आए थे?” इस बयान के बाद भारतीय जनता पार्टी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है और इसे देश की सुरक्षा व्यवस्था पर अविश्वास जताने वाला बताया है।
चिदंबरम ने ट्वीट के माध्यम से यह सवाल उठाया और कहा कि जब तक आधिकारिक जांच पूरी नहीं होती और ठोस प्रमाण सामने नहीं आते, तब तक यह मान लेना कि आतंकवादी पाकिस्तान से आए थे, जल्दबाज़ी होगी। उन्होंने सरकार से पूछा कि क्या किसी हमलावर की पहचान की गई है, क्या उन्हें पकड़ा गया है या क्या कोई पुष्टि की गई है कि वे सीमा पार से घुसे थे। चिदंबरम ने यह भी जोड़ा कि स्थानीय खुफिया तंत्र की विफलता की जांच की जानी चाहिए, क्योंकि ऐसी घटनाएं सिर्फ सीमा पार की घुसपैठ से नहीं, आंतरिक सुरक्षा चूक से भी होती हैं।
BJP ने चिदंबरम के इस बयान को “आतंकी तंत्र का बचाव” बताते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी प्रवक्ता ने कहा कि एक पूर्व गृह मंत्री का इस तरह का बयान न केवल सुरक्षा बलों का मनोबल गिराता है, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ चल रही लड़ाई को भी कमजोर करता है। उन्होंने चिदंबरम पर आरोप लगाया कि वे बार-बार ऐसी टिप्पणियाँ करते हैं जो पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद को हल्का करने का प्रयास लगती हैं।
पहलगाम हमले में कई निर्दोष नागरिकों की जान गई थी, जिसमें महिलाओं और बच्चों सहित तीर्थयात्री शामिल थे। सरकार ने शुरुआती जांच में दावा किया था कि हमला पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन द्वारा प्रायोजित था और इसे एक ट्रेंड मॉड्यूल ने अंजाम दिया, जो नियंत्रण रेखा के पार से भेजा गया था। केंद्र सरकार ने इसके बाद ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की शुरुआत की और सुरक्षा एजेंसियों को सीमा पार आतंकी बुनियादी ढांचे पर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए।
इस पूरी बहस में एक बार फिर राष्ट्र सुरक्षा और राजनीतिक बयानबाजी की सीमाएं चर्चा में आ गई हैं। विपक्ष सरकार से पारदर्शिता और सटीक जानकारी की मांग कर रहा है, वहीं सत्ता पक्ष इस मुद्दे को राष्ट्रीय गौरव और सुरक्षा बलों के समर्थन से जोड़ रहा है।
निष्कर्षतः, चिदंबरम के सवाल और भाजपा की प्रतिक्रिया के बीच जो टकराव उभरा है, वह केवल एक आतंकी हमले की व्याख्या तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की सुरक्षा रणनीति, राजनीतिक उत्तरदायित्व और लोकतांत्रिक संवाद की दिशा को दर्शाने वाला महत्वपूर्ण पड़ाव बन गया है। संसद में आगामी बहस में यह मुद्दा और भी तीव्रता से गूंज सकता है।