पटना, बिहार
17 जुलाई 2025
बिहार की राजनीति एक बार फिर भोजन और भावनाओं के मेल से गरमा गई है। जेडीयू के वरिष्ठ नेता और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह सावन महीने में अपने समर्थकों के लिए आयोजित मटन पार्टी को लेकर चर्चा के केंद्र में आ गए हैं। जहां उनके समर्थक इसे एक ‘सामान्य आयोजन’ बता रहे हैं, वहीं विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने इसपर कड़ी आपत्ति जताते हुए इसे “धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़” और “राजनीतिक दिखावा” करार दिया है।
सावन का महीना हिंदू समाज में विशेष आस्था और व्रत-उपवास के लिए जाना जाता है। ऐसे में किसी बड़े नेता द्वारा सार्वजनिक रूप से मटन भोज का आयोजन करना न केवल चर्चा का विषय बना, बल्कि सियासी बहस का कारण भी। सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे पर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। तस्वीरों और वीडियो में ललन सिंह अपने समर्थकों के साथ बैठकर भोज करते नज़र आ रहे हैं, जिसमें मटन प्रमुख व्यंजन बताया जा रहा है।
इस आयोजन पर RJD प्रवक्ताओं ने तीखा हमला बोला है। पार्टी का कहना है कि एनडीए और उसके नेता धर्म का उपयोग केवल चुनावी फायदे के लिए करते हैं, लेकिन असल आचरण में आस्था या संस्कृति के प्रति कोई गंभीरता नहीं दिखाते। एक RJD नेता ने कहा, “जब चुनाव आता है तो ये लोग मंदिर-मंदिर घूमते हैं, लेकिन जैसे ही वोटिंग खत्म होती है, इन्हें न उपवास याद रहता है, न आस्था। सावन में मटन पार्टी उसी दोहरे चरित्र का हिस्सा है।”
हालांकि जेडीयू और ललन सिंह खेमे की ओर से अभी तक इस विवाद पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं ने “इस आयोजन को निजी और गैर-राजनीतिक” बताया है। उनका तर्क है कि बिहार की सामाजिक बनावट में इस तरह के आयोजनों को सांस्कृतिक तौर पर गलत नहीं माना जाता, और इसे अनावश्यक रूप से विवाद का विषय बनाया जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में धर्म, जाति और भोजन का मेल हमेशा से राजनीतिक विमर्श का हिस्सा रहा है। चाहे वह लालू यादव के ‘भोज-भात’ की राजनीति हो या नीतीश कुमार की समाज सुधार यात्राएं, यहां हर सार्वजनिक गतिविधि को राजनीतिक चश्मे से देखा जाता है। ऐसे में ललन सिंह की यह भोज पार्टी एक सामान्य आयोजन से बढ़कर एक राजनीतिक प्रतीक बन गई है, जिसका उपयोग विपक्ष सरकार की छवि पर हमला करने के लिए कर रहा है।
अब देखना यह होगा कि यह विवाद आने वाले समय में एनडीए और जेडीयू की छवि पर कितना असर डालता है, और क्या ललन सिंह खुद इस मुद्दे पर सफाई देते हैं या इसे नजरअंदाज़ कर आगे बढ़ जाते हैं। फिलहाल इतना तय है कि बिहार की राजनीति में ‘मटन पार्टी’ सावन के सन्नाटे में एक तीखा तड़का बनकर उभरी है।