नई दिल्ली, 1 नवंबर 2025
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने आज एक बार फिर केंद्र सरकार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और तथाकथित “भोंपू मीडिया” पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि उन्हें सरदार वल्लभभाई पटेल की मृत्यु के बाद संसद में पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा पारित प्रस्ताव को ध्यान से पढ़ना चाहिए। खेड़ा ने कहा कि “यह प्रस्ताव सिर्फ श्रद्धांजलि नहीं था, बल्कि राष्ट्रीय दृष्टि और मूल्यों का दस्तावेज़ था, जिसे आज की सत्ता ने पूरी तरह भुला दिया है।”
खेड़ा ने कहा कि 15 दिसंबर 1950 को जब सरदार पटेल का निधन हुआ, तब संसद में नेहरू जी ने जिस तरह से राष्ट्र की भावनाओं को शब्दों में ढाला, वह आज के राजनेताओं के लिए एक सबक है। “नेहरू ने पटेल को राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि राष्ट्रनिर्माता कहा। उन्होंने कहा था कि सरदार हमारे संघर्षों के समय मार्गदर्शक रहे, विजय के क्षणों में प्रेरणा बने और हमेशा मजबूती का स्तंभ रहे। आज वही भावना गायब है। आज के नेता केवल विभाजन की राजनीति में व्यस्त हैं, राष्ट्रनिर्माण के मूल्यों से नहीं।”
पवन खेड़ा ने आगे कहा कि नेहरू के उस ऐतिहासिक वक्तव्य में जो संवेदनशीलता और आत्ममंथन था, वह आज के सत्ता प्रतिष्ठान में पूरी तरह लुप्त हो गया है। “नेहरू ने कहा था कि हमें अपने काम को जारी रखना चाहिए, क्योंकि सरदार जैसे कर्मठ नेता कभी नहीं चाहते कि देश का कार्य रुक जाए। आज की सरकार अपने स्वार्थ और प्रचार के लिए संस्थानों को कमजोर कर रही है, जबकि सरदार पटेल ने संस्थाओं की मज़बूती को राष्ट्र की आत्मा माना था।”
खेड़ा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर तंज कसते हुए कहा कि “जो लोग आज पटेल के नाम पर राजनीति कर रहे हैं, उन्हें यह पढ़ना चाहिए कि नेहरू और उनके समकालीन नेताओं ने पटेल के योगदान को किस आदर और विनम्रता से याद किया था। आज की सरकार ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का दिखावा करती है, लेकिन सरदार के विचारों — एकता, धर्मनिरपेक्षता और संस्थागत जिम्मेदारी — को पूरी तरह कुचल रही है।”
कांग्रेस प्रवक्ता ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और कुछ टीवी एंकरों को भी निशाने पर लिया। उन्होंने कहा, “मोहन भागवत और उनके प्रचारक पत्रकार पटेल को RSS का प्रतीक बताने की कोशिश करते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि सरदार पटेल ने 1948 में खुद आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था, क्योंकि वह राष्ट्र की एकता को चुनौती दे रहा था। नेहरू का यह प्रस्ताव इस बात का भी स्मरण है कि भारत का लोकतंत्र केवल सत्ता की भाषा से नहीं, बल्कि संवेदनशीलता, सह-अस्तित्व और साझा जिम्मेदारी से चलता है।”
खेड़ा ने तीखे लहजे में कहा कि “प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को सिर्फ भाषण देने या मूर्तियाँ बनाने से आगे बढ़कर इतिहास की असली भावना को समझना चाहिए। सरदार पटेल और नेहरू — दोनों ने भारत को जो दिशा दी, वह एकता, विविधता और न्याय पर आधारित थी। आज जब सत्ता इसे मिटाने की कोशिश कर रही है, तो यह आवश्यक है कि हर नागरिक ‘नेहरू का वह प्रस्ताव’ पढ़े, जो आज के नेताओं के लिए नैतिक मार्गदर्शन का काम कर सकता है।”
अंत में खेड़ा ने कहा, “देश आज फिर उस मोड़ पर खड़ा है जहाँ व्यक्तिगत महिमा को राष्ट्रहित से ऊपर रखा जा रहा है। सरदार पटेल ने देश को जोड़े रखा, नेहरू ने उसे संस्थागत ढाँचा दिया — और दोनों ने एक-दूसरे का सम्मान किया। लेकिन आज की राजनीति इस एकता को तोड़ने में लगी है। यही कारण है कि नेहरू द्वारा सरदार पटेल पर कही गई बातें आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं।”
उन्होंने आह्वान किया कि “प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, आरएसएस प्रमुख और टीवी स्टूडियो में बैठा हर शोर मचाने वाला एंकर — सबको संसद में नेहरू द्वारा पढ़ा गया वह प्रस्ताव ज़रूर पढ़ना चाहिए, ताकि समझ सकें कि सच्ची राष्ट्रभक्ति क्या होती है और किस तरह का नेतृत्व भारत को महान बनाता है।”




