नई दिल्ली, 18 अगस्त 2025
संसद का मॉनसून सत्र अपने 18वें दिन एक अहम मोड़ पर पहुंच गया है। आज लोकसभा में केंद्र सरकार एक ऐसा बिल पेश करने जा रही है, जिसका उद्देश्य मामूली अपराधों को डिक्रिमिनलाइज करना है। इस विधेयक के जरिए उन धाराओं और प्रावधानों को बदला जाएगा, जिनके कारण छोटी मोटी गलतियों पर भी आम नागरिकों और कारोबारी जगत को आपराधिक मुकदमों का सामना करना पड़ता है।
सरकार का उद्देश्य और सुधार की दिशा
केंद्र सरकार का मानना है कि कई कानून ऐसे हैं जो बेहद पुराने हो चुके हैं और उनमें छोटे अपराधों को भी आपराधिक श्रेणी में रखा गया है। इन कानूनों की वजह से न सिर्फ अदालतों पर बोझ बढ़ता है बल्कि नागरिकों और व्यापारियों को भी अनावश्यक कानूनी जटिलताओं से गुजरना पड़ता है। सरकार चाहती है कि इन छोटे अपराधों को आपराधिक मामलों की बजाय सिविल दायरे में लाकर निपटारा किया जाए, ताकि न्यायिक प्रक्रिया तेज हो सके और न्यायपालिका का बोझ हल्का हो।
संसद में संभावित बहस और विपक्ष की रणनीति
आज लोकसभा में इस बिल पर चर्चा के दौरान विपक्षी दल सरकार से सवाल उठा सकते हैं कि कहीं यह सुधार गंभीर अपराधों को भी छोटे अपराध की परिभाषा में शामिल कर राहत देने का रास्ता तो नहीं खोल देगा। विपक्ष यह भी मांग कर सकता है कि किसी भी डिक्रिमिनलाइजेशन प्रक्रिया में जनता की सुरक्षा और अधिकार सर्वोपरि रहना चाहिए। वहीं सरकार यह तर्क देने की तैयारी में है कि यह कदम व्यापार और निवेश के लिए भी बेहद जरूरी है, क्योंकि कई विदेशी और देशी कंपनियां कानूनी जटिलताओं से परेशान होकर निवेश करने से हिचकिचाती हैं।
जनता और कारोबारी जगत की उम्मीदें
इस बिल से आम लोगों और कारोबारी वर्ग को राहत मिलने की उम्मीद है। छोटे मोटे लाइसेंस, परमिट, कागज़ी त्रुटियों और तकनीकी उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर देने से जहां कारोबारियों को आसानी होगी, वहीं आम नागरिकों को भी छोटे मामलों में जेल या लंबी अदालती लड़ाई से बचाया जा सकेगा। यह कदम ‘Ease of Doing Business’ और ‘Minimum Government, Maximum Governance’ के एजेंडे की दिशा में एक और ठोस पहल माना जासकता है।
सुधार की दिशा में बड़ा कदम
आज लोकसभा में पेश होने वाला यह बिल भारतीय न्याय व्यवस्था और शासन प्रणाली में सुधार का हिस्सा है। अगर यह विधेयक पारित होता है तो यह न केवल कानूनी ढांचे को आधुनिक बनाएगा बल्कि नागरिकों और व्यवसायों को अनावश्यक आपराधिक मामलों से राहत भी देगा। हालांकि, इस पर संसद में गहन बहस और विपक्षी निगरानी का होना तय है, जिससे लोकतांत्रिक विमर्श और मजबूत होगा।