14 अगस्त 2025 को पाकिस्तान ने अपने 78वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक नई सैन्य इकाई — ‘आर्मी रॉकेट फोर्स कमांड’ (ARFC) — के गठन की घोषणा की। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इसे पाकिस्तान की रक्षा क्षमताओं को नई दिशा देने वाला ऐतिहासिक कदम बताया। यह फोर्स चीन की ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी रॉकेट फोर्स’ (PLARF) से प्रेरित है और इसका उद्देश्य लंबी दूरी की सटीक मारक क्षमता (प्रिसिजन स्ट्राइक) को बढ़ाना है। घोषणा के दौरान शरीफ ने दावा किया कि यह फोर्स पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने और क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने में मदद करेगी। हालांकि, पड़ोसी भारत के लिए यह संदेश जितना धमकी भरा लगता है, उतना ही यह पाकिस्तान के घरेलू दर्शकों के लिए राजनीतिक संतोष का माध्यम भी प्रतीत होता है।
क्या करेगी नई रॉकेट फोर्स?
ARFC के तहत पाकिस्तान अपनी बैलिस्टिक मिसाइलें, क्रूज मिसाइलें और रॉकेट आर्टिलरी को एकीकृत करने की योजना बना रहा है। इसमें ‘फतह-IV’ क्रूज मिसाइल (750 किमी रेंज) और ‘फतह-I’ टैक्टिकल रॉकेट सिस्टम जैसे हथियार शामिल होंगे। इन हथियारों का उपयोग दुश्मन के हवाई ठिकानों, वायु रक्षा प्रणालियों और सामरिक लक्ष्यों पर तेज और सटीक हमले के लिए किया जाएगा। लेकिन रक्षा विश्लेषकों का कहना है कि इनकी मारक क्षमता सीमित है — खासकर तब, जब मुकाबले में भारत जैसा विशाल और तकनीकी रूप से उन्नत देश हो, जिसके पास ब्रह्मोस, पिनाका और S-400 जैसी शक्तिशाली प्रणालियाँ पहले से मौजूद हैं।
ऑपरेशन सिंदूर और पाकिस्तान की प्रेरणा
इस नई फोर्स के पीछे एक बड़ा कारण मई 2025 में हुआ ‘ऑपरेशन सिंदूर’ है। उस समय भारत ने ब्रह्मोस मिसाइलों का इस्तेमाल कर पाकिस्तान के कई सैन्य ठिकानों पर सटीक हमले किए थे, जिससे उसके हवाई अड्डों और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुँचा था। यह ऑपरेशन पाकिस्तान के लिए सैन्य और मनोवैज्ञानिक दोनों ही स्तर पर झटका था। इसी पृष्ठभूमि में पाकिस्तान अब ऐसी फोर्स खड़ी करने की कोशिश कर रहा है, जो भविष्य में भारत की मिसाइल ताकत का सामना कर सके। हालांकि, कई विशेषज्ञ मानते हैं कि यह प्रयास तत्काल प्रभाव में भारत को चुनौती देने के बजाय दीर्घकालिक संदेश देने के लिए है।
चीन की छाया और आर्थिक वास्तविकता
पाकिस्तान की इस पहल में चीन का प्रभाव साफ दिखता है। सोशल मीडिया और रक्षा हलकों में चर्चाएँ हैं कि बीजिंग पाकिस्तान को PHL-11 और SR-5 जैसे आधुनिक मल्टीपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम दे सकता है। लेकिन सवाल यह है कि आर्थिक संकट से जूझ रहा पाकिस्तान इन महंगे हथियारों का भुगतान कैसे करेगा? चर्चा यह भी है कि अमेरिकी सहायता या अंतरराष्ट्रीय कर्ज के जरिए इन सौदों को वित्तपोषित किया जा सकता है। फिर भी, किसी भी नई सैन्य तकनीक को पूरी क्षमता से तैनात करने में वर्षों लगते हैं — और तब तक भारत अपनी रक्षा तकनीक को और भी उन्नत कर चुका होगा।
भारत के सामने खतरा या ‘ख्याली पुलाव’?
भारत के लिए यह घोषणा सतही तौर पर एक चुनौती की तरह पेश की जा रही है, लेकिन असल में यह खतरे से ज्यादा एक रणनीतिक संदेश है। भारत के पास न केवल S-400 और अग्नि-5 जैसी लंबी दूरी की क्षमताएँ हैं, बल्कि थिएटर कमांड, इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स और बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस जैसी आधुनिक संरचनाएँ भी हैं। पाकिस्तानी ARFC को इनसे मुकाबला करने के लिए न केवल तकनीकी छलांग लगानी होगी, बल्कि आर्थिक, प्रशिक्षण और लॉजिस्टिक चुनौतियों को भी पार करना होगा। फिलहाल, यह ज्यादा ‘ख्याली पुलाव’ जैसा है, जिसे पाकिस्तान अपनी राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक बढ़त के लिए पका रहा है।
घोषणा बड़ी, असर सीमित
पाकिस्तान की ‘आर्मी रॉकेट फोर्स कमांड’ का गठन उसके सैन्य आधुनिकीकरण की दिशा में एक महत्वाकांक्षी कदम है, लेकिन भारत की उन्नत मिसाइल और रक्षा प्रणालियों के सामने इसकी वास्तविक उपयोगिता सीमित दिखती है। यह पहल पाकिस्तान के लिए घरेलू राजनीति में आत्मविश्वास और अंतरराष्ट्रीय मंच पर ध्यान आकर्षित करने का जरिया हो सकती है, लेकिन इसके वास्तविक सैन्य परिणाम आने में लंबा समय लगेगा। सवाल यही है कि क्या यह नई फोर्स भविष्य में भारत के लिए वास्तविक खतरा बनेगी, या 14 अगस्त के भाषण का एक और चमकदार वादा साबित होगी।